महावीर जयंती का महत्व

जैन समाज के लोग मुनि प्रज्ञा सागर की बताई पूजा विधि के अनुसार घर में बैठकर ही भगवान महावीर स्वामी की अष्टद्रव्यों से भक्तिभाव से पूजा-अर्चना कर शाम को 13 दीपकों से आरती करेंगे।

Update: 2021-04-25 02:53 GMT

जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर भगवान महावीर का जन्म चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी को 599 ईसवीं पूर्व बिहार में लिच्छिवी वंश के महाराज सिद्धार्थ और महारानी त्रिशला के घर हुआ था। भगवान महावीर जी के बचपन का नाम वर्धमान था। उनके जन्म के बाद राज्य दिन दूनी रात चैगुनी तरक्की कर रहा था जिसके चलते इनका नाम वर्धमान रखा गया। महावीर जयंती का पर्व जैन अनुयायियों द्वारा पूरी दुनिया में मनाया जाता है। जैन ग्रंथों के अनुसार, 23वें तीर्थंकर पाशर््वनाथ जी के निर्वाण (मोक्ष) प्राप्त करने के 188 वर्ष बाद भगवान महावीर का जन्म हुआ था। अहिंसा परमो धर्मः अर्थात अहिंसा सभी धर्मों से सर्वोपरि है। यह संदेश उन्होंने पूरी दुनिया को दिया व संसार का मार्गदर्शन किया। पहले स्वयं अहिंसा का मार्ग अपनाया और फिर दूसरों को इसे अपनाने के लिये प्रेरित किया। 'जियो और जीने दो' का मूल मंत्र इन्हीं की देन है।

वर्धमान महावीर से जुड़ी मान्यताएं

जैन धर्म के अनुयायी मानते हैं कि वर्धमान ने 12 वर्षों की कठोर तप कर अपनी इंद्रियों पर विजय प्राप्त कर लिया जिससे उन्हें जिन कहा गया, विजेता कहा गया। उनका यह तप किसी पराक्रम से कम नहीं था। इसी के चलते उन्हें महावीर नाम से संबोधित किया गया और उनके दिखाए मार्ग पर चलने वाले जैन कहलाते हैं। जैन का तात्पर्य ही है जिन के अनुयायी। जैन धर्म का अर्थ है जिन द्वारा परिवर्तित धर्म। दीक्षा लेने के बाद भगवान महावीर ने कठिन दिगम्बर चर्या को अंगीकार किया और निर्वस्त्र रहे। हालांकि श्वेतांबर संप्रदाय के अनुसार महावीर दीक्षा उपरान्त कुछ समय छोड़कर निर्वस्त्र रहे और उन्होंने केवल ज्ञान की प्राप्ति दिगम्बर अवस्था में की। ऐसा माना जाता है कि भगवान महावीर अपने पूरे साधना काल के दौरान मौन रहे।

महावीर जी के पांच सिद्धांत

मोक्ष पाने के बाद, भगवान महावीर ने पांच सिद्धांत दर्शाए जो समृद्ध जीवन और आंतरिक शांति की ओर ले जाते हैं। इनमें शामिल हैं - अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अंतिम अपरिग्रह।

पहला सिद्धांत है:- "अहिंसा", इस सिद्धांत के अनुसार जैनों को किसी भी परिस्थिति में हिंसा से दूर रहना चाहिए। भूलकर भी किसी को कष्ट नहीं पहुंचाना है।

दूसरा सिद्धांत है:- "सत्य", भगवान महावीर कहते हैं, हे पुरुष! तू सत्य को ही सच्चा तत्व समझ जो बुद्धिमान सत्य के सान्निध्य में रहता है। लोगों को हमेशा सत्य बोलना चाहिए।

तीसरा सिद्धांत है:- "अस्तेय", अस्तेय का पालन करने वाले किसी भी रूप में अपने मन के मुताबिक वस्तु ग्रहण नहीं करते हैं। ये लोग संयम से रहते हैं और केवल वही लेते हैं जो उन्हें दिया जाता है।

चैथा सिद्धांत है:- "ब्रह्मचर्य", इस सिद्धांत के लिए जैनों को पवित्रता के गुणों का प्रदर्शन करने की आवश्यकता होती है जिसके कारण वे कामुक गतिविधियों में भाग नहीं लेते।

पांचवां और अंतिम सिद्धांत है:- "अपरिग्रह", यह शिक्षा सभी पिछले सिद्धांतों को जोड़ती है। अपरिग्रह का पालन करके, जैनों की चेतना जागती है और वे सांसारिक एवं भोग की वस्तुओं का त्याग कर देते हैं।

महावीर जी का जन्म एक राज परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम राजा सिद्धार्थ और माता रानी त्रिशला था। चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी को जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर भगवान महावीर का जन्म हुआ था। यह दिन जैन धर्म के लोगों के लिए विशेष रूप से महत्व रखता है। अहिंसा परमो धर्मः अर्थात् अहिंसा सभी धर्मों से सर्वोपरि है। यह संदेश उन्होंने पूरी दुनिया को दिया व संसार का मार्गदर्शन किया। 'जियो और जीने दो' का मूल मंत्र इन्हीं की देन है। महावीर जयंती के दौरान, दुनियाभर से लोग भारत के जैन मंदिरों में दर्शन करने के लिए आते हैं। जैनों द्वारा भगवान महावीर की प्रतिमा की शोभायात्रा निकाली जाती है लेकिन इस बार 'कोरोना वायरस' के कारण महावीर जयंती के मौके पर जैन मंदिरों में न तो सामूहिक पूजा होगी और न ही कोई कार्यक्रम।लॉकडाउन के चलते महावीर जयंती पर निकाली जाने वाली शोभायात्रा व प्रभातफेरियां भी नहीं निकलेंगी। ऐसे में घर पर ही रहकर शांति पाठ करना होगा। इस मौके पर जैन समाज के लोग मुनि प्रज्ञा सागर की बताई पूजा विधि के अनुसार घर में बैठकर ही भगवान महावीर स्वामी की अष्टद्रव्यों से भक्तिभाव से पूजा-अर्चना कर शाम को 13 दीपकों से आरती करेंगे। 

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