शरद पूर्णिमा के दिन खुले मे क्यो रखी जाती है खीर और हिन्दू धर्म मे क्या है महत्व जानें

Update: 2022-10-09 06:37 GMT

शरद पूर्णिमा के दिन मान्यता है कि चंद्रमा पृथ्वी के सबसे निकट होता है. इससे चंद्रमा के प्रकाश की किरणें पृथ्वी पर स्वास्थ्य की बौछारें करती हैं. इस दिन चंद्रमा की किरणों में विशेष प्रकार के लवण व विटामिन होते हैं. कहा जाता है कि इस दिन चंद्रमा की किरणों से नाग का विष भी अमृत बन जाता है. ऐसी भी मान्यता है कि प्रकृति इस दिन धरती पर अमृत वर्षा करती है. अध्ययन के अनुसार, दूध में लैक्टिक अम्ल और अमृत तत्व होता है. यह तत्व किरणों से अधिक मात्रा में शक्ति का शोषण करता है.

चावल में स्टार्च होने के कारण यह प्रक्रिया और आसान हो जाती है. इसी कारण ऋषि-मुनियों ने शरद पूर्णिमा की रात्रि में खीर खुले आसमान में रखने का विधान किया है. चेहरे पर आती है सुंदरता शरद पूर्णिमा की रात को चंद्रमा का पूजन कर भोग लगाया जाता है. इससे आयु बढ़ती है और चेहरे पर सुंदरता आती है. शरीर स्वस्थ रहता है. शरद पूर्णिमा की मनमोहक सुनहरी रात में वैद्यों की ओर से जड़ी बूटियों से औषधि का निर्माण किया जाता है. चंद्र किरणों में तैयार होती है खीर इसी प्रकार वैद्य विभिन्न प्रकार के रोगियों के लिए इस रात चंद्र किरणों में खीर तैयार करते हैं.

व्रत रखने वाले लोग चंद्र किरणों में पकाई गई खीर को अगले रोज प्रसाद के रूप में ग्रहण कर अपना व्रत खोलते हैं. सौंदर्य व छटा मन हर्षित करने वाली शरद पूर्णिमा की रात को नौका विहार करना, नदी में स्नान करना शुभ माना जाता है. शरद पूर्णिमा की रात प्रकृति का सौंदर्य और छटा मन को हर्षित करने वाली होती है. नाना प्रकार के पुष्पों की सुगंध इस रात में बढ़ जाती है, जो मन को लुभाती है. वहीं, तन को भी मुग्ध करती है.

यह पर्व स्वास्थ्य, सौंदर्य व उल्लास बढ़ाने वाला माना गया है. रात्रि जागरण का है महत्व इससे रोगी को सांस और कफ दोष के कारण होने वाली तकलीफों में काफी लाभ मिलता है. रात्रि जागरण के महत्व के कारण ही इसे जागृति पूर्णिमा भी कहा जाता है. इसका एक कारण रात्रि में स्वाभाविक कफ के प्रकोप को जागरण से कम करना है. इस खीर को मधुमेह से पीड़ित रोगी भी ले सकते हैं. बस इसमें मिश्री की जगह प्राकृतिक स्वीटनर स्टीविया की पत्तियों को मिला दें. शरद ऋतु का होता है प्रारंभ शरद ऋतु के प्रारंभ में दिन थोड़े गर्म और रातें शीतल हो जाया करती हैं. आयुर्वेद के अनुसार, यह पित्त दोष के प्रकोप का काल माना जाता है

और मधुर तिक्त कषाय रस पित्त दोष का शमन करते हैं. खीर खाने से पित्त का शमन होता है. शरद में ही पितृ पक्ष (श्राद्ध) आता है. पितरों का मुख्य भोजन खीर है. इस दौरान 5-7 बार खीर खाना हो जाता है. इसके बाद शरद पूर्णिमा को रातभर पात्र में रखी खीर सुबह खाई जाती है (चांदी का पात्र न हो तो चांदी का चम्मच खीर में डाल दे, लेकिन बर्तन मिट्टी, कांसा या पीतल का हो

. क्योंकि स्टील जहर और एल्यूमिनियम, प्लास्टिक, चीनी मिट्टी महा-जहर है). यह खीर विशेष ठंडक पहुंचाती है. गाय के दूध की हो तो अति उत्तम, विशेष गुणकारी (आयुर्वेद में घी से अर्थात गौ घी और दूध गौ का) इससे मलेरिया होने की संभावना नहीं के बराबर हो जाती है.

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