क्या आप जानते हैं हवन का महत्व?

Update: 2021-07-09 08:54 GMT

हिंदू धर्म ग्रंथों में मनोकामना की पूर्ति और अनिष्ट को टालने के लिए यज्ञ कराए जाने के कई प्रसंग मिलते हैं। रामायण और महाभारत में भी यज्ञ का उल्लेख किया गया है। हिंदू धर्म में कई सारी परंपराएं सदियों से चली आ रही हैं। इन्हीं में से एक है- हवन कराना। हिंदू धर्म ग्रंथों में मनोकामना की पूर्ति और अनिष्ट को टालने के लिए यज्ञ कराए जाने के कई प्रसंग मिलते हैं। रामायण और महाभारत में भी यज्ञ और हवन का उल्लेख किया गया है। धर्म ग्रंथों के मुताबिक राजाओं ने कई महान यज्ञ कराएं हैं। हवन कराने की परंपरा आज भी जारी है। इसे आज भी उतना ही शुभ फलदायी माना जाता है जितना कि पहले था। 

फ़्रांस के "ट्रेले" नामक वैज्ञानिक ने हवन पर रिसर्च की। जिसमें उन्हें पता चला की हवन मुख्यत:आम की लकड़ी पर किया जाता है। जब आम की लकड़ी जलती है तो फ़ॉर्मिक एल्डिहाइड नामक गैस उत्पन्न होती है। जो कि खतरनाक बैक्टीरिया और जीवाणुओं को मारती है, तथा वातावरण को शुद्द करती है। इस रिसर्च के बाद ही वैज्ञानिकों को इस गैस और इसे बनाने का तरीका पता चला। गुड़ को जलाने पर भी ये गैस उत्पन्न होती है।

"टौटीक" नामक वैज्ञानिक ने हवन पर की गयी अपनी रिसर्च में ये पाया की यदि आधे घंटे हवन में बैठा जाये अथवा हवन के धुएं से शरीर का सम्पर्क हो तो टाइफाइड जैसे खतरनाक रोग फ़ैलाने वाले जीवाणु भी मर जाते हैं और शरीर शुद्ध हो जाता है।

हवन की महत्ता देखते हुए राष्ट्रीय वनस्पति अनुसन्धान संस्थान लखनऊ के वैज्ञानिकों ने भी इस पर एक रिसर्च की, क्या वाकई हवन से वातावरण शुद्ध होता है और जीवाणुओं का नाश होता है, अथवा नही? उन्होंने ग्रंथों में वर्णिंत हवन सामग्री जुटाई और जलाने पर पाया कि ये विषाणु जीवाणुओं का नाश करती है। फिर उन्होंने विभिन्न प्रकार के धुएं पर भी काम किया और देखा कि सिर्फ आम की लकड़ी 1 किलो जलाने से हवा में मौजूद विषाणु बहुत कम नहीं हुए। पर जैसे ही उसके ऊपर आधा किलो हवन सामग्री डाल कर जलायी गयी तो एक घंटे के भीतर ही कक्ष में मौजूद बैक्टीरिया का स्तर 94 % कम हो गया।

यही नहीं उन्होंने आगे भी कक्ष की हवा में मौजुद जीवाणुओ का परीक्षण किया और पाया कि कक्ष के दरवाज़े खोले जाने और सारा धुआं निकल जाने के 24 घंटे बाद भी जीवाणुओं का स्तर सामान्य से 96 प्रतिशत कम था। बार-बार परीक्षण करने पर ज्ञात हुआ कि इस एक बार के धुएं का असर एक माह तक रहा और उस कक्ष की वायु में विषाणु स्तर 30 दिन बाद भी सामान्य से बहुत कम था।

यह रिपोर्ट एथ्नोफार्माकोलोजी के शोध पत्र (resarch journal of Ethnopharmacology 2007) में भी दिसंबर 2007 में छप चुकी है। रिपोर्ट में लिखा गया कि हवन के द्वारा न सिर्फ मनुष्य बल्कि वनस्पतियों एवं फसलों को नुकसान पहुंचाने वाले बैक्टीरिया का भी नाश होता है। जिससे फसलों में रासायनिक खाद का प्रयोग कम हो सकता है।


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