असुरों का राजा गजमुख कैसे बन गया मूषक

गजमुख की ये कठोर तपस्या कई वर्षों तक चली. एक दिन शिवजी ने गजमुख की कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर उसे दर्शन दिए और वरदान .........

Update: 2021-09-15 12:17 GMT

सनातन संस्कृति में कई देवी-देवता हैं. इनमें भगवान गणेश को प्रथम आराध्य के तौर पर पूजा जाता है. भगवान गणेश की बाल रुप की भी कई कहानियां प्रचलित है. खासतौर पर बच्चे अपने प्रिय बप्पा की कहानियों को जानने में काफी दिलचस्पी रखते हैं. ये कहानियां सिर्फ सभी के लिए प्रेरणास्त्रोत नहीं बनती हैं, बल्कि यह जीवन जीने की कला भी सिखाती हैं. हम बाल गणेश के जीवन की एक ऐसी ही रोचक कहानी बताने जा रहे हैं जिसमें दुष्ट असुरराज गजमुख कैसे पहले मूषक में बदला फिर बाल गणेश का प्रिय मित्र बन गया.

यह है गणेश जी और गजमुख की कहानी

यह कहानी असुरों के राज गजमुख की है जो चारों ओर अपना आतंक मचाए हुए था और वह तीनों लोकों में सबसे धनवान और शक्तिशाली बनना चाहता था. इतना ही नहीं गजमुख की चाहत सभी देवी-देवताओं को अपने वश में करने की भी थी. यही वजह थी कि वह भगवान भोलेनाथ की हर समय तपस्या करता रहता था. भोलेनाथ से वरदान पाने के लिए वह अपने महल से निकलकर जंगल चला गया और वहां बिना भोजन-पानी के ही दिन-रात शिवजी की तपस्या में लीन हो गया.

गजमुख की ये कठोर तपस्या कई वर्षों तक चली. एक दिन शिवजी ने गजमुख की कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर उसे दर्शन दिए और वरदान मांगने का कहा. इस पर गजमुख ने शिवजी से दैवीय शक्तियां मांग ली और वह बहुत शक्तिशाली बन गया. शिवजी ने उसे वह शक्ति दी कि उसे किसी भी शस्त्र से नहीं मारा जा सकता था.वरदान मिलने के बाद गजमुख और अहंकारी हो गया और वह अपनी शक्ति का दुरुपयोग करने लगा.

उसने तीनों लोकों पर कब्जा करने के लिए देवी-देवताओं पर आक्रमण कर दिया. गजमुख के आतंक से सिर्फ ब्रह्मा, विष्णु, महेश और गणेश जी ही बच सकते थे. गजमुख चाहता था कि सभी देवी और देवता उसकी पूजा करने लगें. गजमुख के आतंक से परेशान होकर सभी देवी-देवता मदद मांगने के लिए ब्रह्मा, विष्णु और शिवजी की शरण में पहुंचे.

इस पर शिवजी ने गणेशजी को असुरराज को रोकने के लिए भेजा गजमुख जब गणेशजी की बात को नहीं माना तो दोनों के बीच भयंकर युद्ध हुआ. इस युद्ध में गजमुख बुरी तरह से घायल हो गया. लेकिन इसके बाद भी वह नहीं माना और उसने अपना रुप बदल लिया और मूषक बन गया.

इसके बाद वह मूषक रुप में बाल गणेश पर हमला करने के लिए दौड़ा. इस पर गणेश जी कूदकर उसके ऊपर बैठ गए. इसके साथ ही गणेश जी ने गजमुख को जीवनभर के लिए मूषक में बदल दिया और उसे हमेशा के लिए अपने वाहन के रुप में रख लिया. इसके बाद गजमुख मूषक रुप में गणेशजी का प्रिय मित्र बन गया.

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