Navratri Kanya Pujan : कन्या पूजन के बिना अधूरा है नवरात्रि व्रत, इस तरह करें कन्या पूजन

नवरात्रि का समापन अष्टमी और नवमी तिथि को होता है। इस दिन माता के पूजन, हवन आदि के बाद कन्या पूजन की परंपरा है।

Update: 2022-10-03 13:30 GMT

नवरात्रि के व्रत का समापन अष्टमी और नवमी के दिन कन्या पूजन से किया जाता है। मान्यता है कि माता रानी को जितनी प्रसन्नता कन्या पूजन से होती है, उतनी प्रसन्नता उन्हें हवन और दान से भी नहीं होती। नवरात्रि का समापन अष्टमी और नवमी तिथि को होता है। इस दिन माता के पूजन, हवन आदि के बाद कन्या पूजन की परंपरा है। यह परंपरा सदियों से चली आ रही है।

जो भक्त नौ दिनों तक माता रानी का व्रत रखते हैं, वो कन्या पूजन के बाद अपना व्रत खोल लेते हैं। वैसे तो नवरात्रि में कन्या पूजन किसी भी दिन किया जा सकता है, लेकिन अष्टमी और नवमी के दिन करना ज़्यादा श्रेष्ठ माना जाता है।

शास्त्रों में कन्या पूजन को विशेष महत्व दिया गया है। मान्यताओं के अनुसार कन्या पूजन के बिना नवरात्रि का व्रत पूरा नहीं होता। कन्या पूजन के दौरान 9 कन्याओं को माता के नौ स्वरूप मानकर पूजा की जाती है, उनके साथ ही एक बालक को भी भोज कराया जाता है, जिसे भैरव बाबा का रूप माना जाता है। उस बालक को लांगुर कहा जाता है। कहा जाता है कि कन्याओं के साथ लागुंर को भोजन कराने के बाद ही कन्या पूजन पूरी तरह सफल होता है।

इस तरह करें कन्या पूजन

सुबह उठ कर खीर, पूड़ी, हलवा, चने आदि बना लें। माता रानी को इसका भोग लगाएं। इसके बाद कन्याओं और लांगुर को बुला कर, उनके पैर साफ़ पानी से धुलवाएं और उन्हें एक स्वच्छ आसन पर बैठाएं। इसके बाद कन्याओं और लांगुर को भोजन करवाएं। फिर माथे पर रोली से सभी का तिलक करें और सामर्थ्य के अनुसार दक्षिणा दें। इसके बाद सभी के चरण स्पर्श करें। इस तरह से कन्या भोजन कराने से माता अत्यंत प्रसन्न होती हैं और भक्त को आशीर्वाद प्रदान करती हैं।

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