Parshuram Jayanti : भगवान विष्णु के छठें अवतार हैं परशुराम, जानिए- परशुराम की अमरता का क्या है रहस्य?

भगवान परशुराम को ऋषि जमगग्नि का पुत्र होने के कारण जामदग्न्य भी कहा जाता है।

Update: 2023-04-22 04:52 GMT

Parshuram Jayanti : आज भगवान परशुराम की जयंती है। भगवान परशुराम का जन्म वैशाख माह के शुक्ल पक्ष के तीसरे दिन हुआ था, इस दिन अक्षय तृतीया (Akshaya Tritiya) भी मनाई जाती है। वह त्रेता युग (रामायण काल) में एक भट्ट ब्राह्मण ऋषि के यहां जन्मे थे और भगवान विष्णु के छठवें अवतार कहलाए। जानकारी के अनुसार उनका जन्म महर्षि भृगु के पुत्र महर्षि जमदग्नि द्वारा सम्पन्न पुत्रेष्टि यज्ञ से प्रसन्न देवराज इन्द्र के वरदान स्वरूप उनकी पत्नी रेणुका के गर्भ से हुआ था।

ऐसा माना जाता है कि मध्यप्रदेश के इन्दौर जिला में ग्राम मानपुर के जानापाव पर्वत में उनका जन्म हुआ। उनके नामकरण के पीछे भी एक दिलचस्प कहानी है। महाभारत और विष्णुपुराण के अनुसार परशुराम जी का मूल नाम राम था किन्तु जब भगवान शिव ने उन्हें अपना परशु नामक अस्त्र प्रदान किया तभी से उनका नाम परशुराम जी हो गया। 

 इन्हें ऋषि जमगग्नि का पुत्र होने के कारण जामदग्न्य भी कहा जाता है। लेकिन यह परशुरामजी के नाम से अधिक विख्यात हैं। परशुरामजी भगवान शिव के भक्त और शिष्य भी हैं। इनकी भक्ति, योग्यता को देखते हुए भगवान शिवजी ने इन्हें विद्युदभि नामक अपना परशु प्रदान किया था। सदैव परशु धारण करने के कारण यह जगत में परशुराम नाम से विख्यात हैं।

पौराणिक कथाओं में भगवान परशुरामजी की कई ऐसी कथाओं का वर्णन मिलता है जिससे मालूम होता है कि परशुरामजी अत्यंत क्रोधी स्वभाव के हैं। साथ ही कथाओं से मालूम होता है कि परशुरामजी अमर हैं और सृष्टि के अंत तक वह धरती पर विराजमान रहेंगे। 

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ऐसी कथा है कि सीता स्वयंवर के समय जब भगवान राम ने शिवजी का धनुष तोड़ा तब पृथ्वी कांप उठी। परशुरामजी के पता चला कि शिवजी का धनुष किसी ने तोड़ दिया है। इस पर मन की गति से चलने वाले परशुरामजी तुरंत महाराजा जनक के दरबार में पहुंच गए और शिवजी का धनुष तोड़ने पर भगवान राम को युद्ध के लिए ललकारने लगे। उस समय भगवान राम ने परशुरामजी के यह आभास कराया कि वह भगवान विष्णु के अवतार हैं। भगवान राम का रहस्य जानने के बाद परशुरामजी का क्रोध शांत हो गया और भगवान श्रीराम ने उनके अहंकार का नाश कर दिया। साथ ही भगवान राम ने परशुरामजी को अमर रहने का वरदान देते हुए यह जिम्मेदारी सौंपी कि आप मेरे अगले अवतार होने तक मेरा सुदर्शन चक्र संभालकर रखें। अगले अवतार में मुझे इसकी आवश्यकता होगी तब आप मुझे यह लौटा देंगे। 

भगवान विष्णु ने जब द्वापर में श्रीकृष्ण अवतार लिया तब परशुरामजी और भगवान श्रीकृष्ण की भेंट उस समय हुई जब भगवान श्रीकृष्ण गुरु सांदीपनि के आश्रम में शिक्षा प्राप्त कर वापस अपने घर लौटने की तैयारी में थे। उस समय परशुरामजी ऋषि संदीपनी के आश्रम में पधारे और भगवान श्रीकृष्ण को उनका सुदर्शन चक्र लौटाते हुए कहा कि अब यह युग आपका है। आप अपना यह सुदर्शन चक्र संभालिए और धरती पर पाप का भार बहुत बढ़ गया है उस भार को कम कीजिए।

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