1958 में, मैं "भूमिहीन लोग" आंदोलन के नेता के रूप में कार्य कर रहा था। मुझे गिरफ्तार कर चार मामलों में आरोपित किया गया 1. दंगा भड़काने, 2.अतिचार, 3. हत्या का प्रयास, और 4. सरकारी कर्मचारी को उसके कर्तव्यों करने से रोकना। महाराज जी ने मुझे आश्वासन दिया था कि चिंता न करें, सब ठीक हो जाएगा। लेकिन 1964 में मुझे दोषी ठहराया गया और चार साल की कैद की सजा सुनाई गई मेंट। मैंने तुरंत फैसले की अपील की।
मैं चिंतित नहीं था, लेकिन मेरे रिश्तेदार काफी परेशान थे और उन्होंने मुझे फिर से महाराज जी के पास भेजा। महाराज जी ने मुझे एक बार फिर आश्वासन दिया और और एक नाम लेकर कहा कि जब वह न्यायाधीश पद पर होंगे, तो निर्णय उलट दिया जाएगा।
मामले पर बहस चल रही थी और एक विशेष दिन के अंत तक इसे पूरा किया जाना था। सूरज डूब चुका था और बहस के कई घंटे बाकी थे, इसलिए न्यायाधीश ने मामले को अगले दिन तक के लिए स्थगित कर दिया। उस दिन बहुत ही महत्वपूर्ण कागजात बिना किसी निशान के गायब हो गया था।
न्यायाधीश ने स्थगन का आदेश दिया साथ ही खोये कागजात के पुनर्निर्माण का आदेश दिया इस कार्य में तीन साल लग गए तब तक 1968, में महाराज जी द्वारा बताये न्यायाधीश उस पद पर नियुक्त हो चुके थे। उनके निर्णय के तहत मामला खारिज कर दिया गया था।
इस प्रकार महाराजी की कृपा से भक्त कानूनी मामले से बच गया।