महान वैज्ञानिक आइंस्टाइन ने जब इस बात को स्वीकार कर लिया था, तो हम किस खेत की मूली है!

जिसने हमें बनाया, उस तक पहुंचने के लिए विज्ञान अभी पूरी तरह से लाचार है तो फिर.....

Update: 2020-10-25 10:24 GMT

आइंस्टाइन कहते थे कि ईश्वर पांसा फेंक कर दुनिया नहीं चलाता। ( GOD doesn't play dice) .... यानी इस दुनिया में जो कुछ भी हुआ, हो रहा है या होगा , वह ईश्वरीय नियमों के तहत हो रहा है। या यूं कह लें कि सब कुछ पहले से ही तय है। जाहिर है, नियम अगर अटल और पहले से तय हैं तो इन्हें बनाने वाला भी तो कोई होगा ... इसलिए अगर यह कहा जाए कि आइंस्टाइन ईश्वर का अस्तित्व स्वीकार करते थे तो गलत नहीं होगा।

दूसरी ओर, अनिश्चितता का सिद्धांत यानी इस दुनिया में जो कुछ भी हो रहा है , वह पहले से तय नहीं है बल्कि अनिश्चित पैटर्न पर बस घटित होता जा रहा है.... इस थेओरी को मानने वाले हाएजेनबर्ग या स्टीफन हॉकिंग जैसे कई वैज्ञानिक ईश्वर को ही मानने से इंकार करते रहे।

लिहाजा धर्म की तरह अंध विश्वासों में बंधकर विज्ञान ने कभी भी ईश्वर को नहीं स्वीकारा। जिन अटल या पहले से तय नियमों को वैज्ञानिक अपने विज्ञान के ज्ञान से समझकर सृष्टि की गुत्थी सुलझाने की कोशिश में जुटे हैं, उन्हें वह किसी रचयिता के बनाए हुए नियम मानने को एकमत से तैयार ही नहीं हैं।

आइंस्टाइन ने जब यह बताया था कि स्पेस की तरह समय भी कहीं शुरू होकर कहीं खत्म हो जाता है तो विज्ञान पर आधारित वैज्ञानिकों की समझ में अभूतपूर्व इजाफा हो गया था। फिर दशकों बाद आइंस्टाइन की इसी समझ को आगे बढ़ाते हुए स्टीफेन हॉकिंग ने भी बताया कि ब्लैक होल में समय और प्रकाश जैसी हर चीज समाहित होकर सिंगुलैरिटी यानी एक ऐसे बिंदु में बदल जाती है , जहां समय, स्पेस आदि कुछ नहीं होता है।

यही नहीं, आइंस्टाइन के बताने के बाद ही समय को किसी रेखा की तरह अलग-अलग प्वाइंट पर एकसेस करने यानी टाइम ट्रैवल का ख्याल भी वैज्ञानिकों को दिन - रात आने लगा। अब टाइम ट्रैवल से वैज्ञानिक जिस दिन समय में आगे- पीछे जाने लगेंगे तो उसी दिन आइंस्टाइन की वह बात भी खुद ब खुद साबित हो जाएगी कि ईश्वर पांसा फेंककर दुनिया नहीं चलाता बल्कि यहां हर पल पहले से रचा हुआ है। तभी तो भविष्य में जाकर यह देखा जा पाना संभव हो पाएगा कि तब दुनिया में क्या घटित हो रहा होगा।

कितनी दिलचस्प बात है कि आइंस्टाइन के बताने के हजारों साल पहले से ही लगातार लगभग हर अध्यात्मिक या धार्मिक दर्शन ईश्वर के बारे मैं कहता है कि समय जहां न हो यानी उसकी शुरुआत से पहले और खत्म होने के बाद .... ईश्वर वही अकाल अथवा समय से परे है... मतलब साफ है कि विज्ञान ईश्वर को तलाशने निकलेगा तो अकाल या समय से परे ईश्वर तो उसे तब ही मिल पाएगा, जब वह न सिर्फ टाइम ट्रवेल कर ले बल्कि टाइम की शुरुआत / अंत से भी आगे या पीछे आ- जा सके।

इसके अलावा, वैज्ञानिक स्पेस का भी आदि अंत तलाशने में जुटे हैं ताकि ब्रह्माण्ड के रहस्य सुलझाने के साथ- साथ हमारे जैसी ही सभ्यता या जीवन का पता लगाया जा सके। जबकि लगभग सारे आध्यात्मिक दर्शन कहते हैं कि ईश्वर की न तो कोई शुरुआत हुई है और न ही उसका कोई अंत है। वह अनादि और अनंत है। यानी इस नजरिए से अगर ईश्वर का पता करना होगा तो स्पेस के आरपार जाने की क्षमता पहले इंसान को हासिल करनी होगी। जबकि अभी जितना ब्रह्मांड हम विज्ञान की मदद से जान पाए हैं, उसमें हमारे सौरमंडल तो क्या गैलक्सी का वजूद नगण्य दिखता है ...और विज्ञान की सारी समझ लगाकर भी हम अभी तक चांद तक ही अपने कदम रख पाए हैं। यानी ईश्वर को जानने के लिए स्पेस का ओर - छोर तो तब मिलेगा, जब हम पहले अपने सौरमंडल और फिर गैलक्सी से बाहर निकल कर ब्रह्मांड की यात्रा तो शुरू कर पाएं।

कुल मिलाकर यह कि यदि ईश्वर को मानकर हम यह कहें कि जिसने हमें बनाया, उस तक पहुंचने के लिए विज्ञान अभी पूरी तरह से लाचार है तो फिर तो शायद अध्यात्म ही एकमात्र आसरा बचता है एक आम इंसान के पास ईश्वर के बारे में कही गई हर बात को मानने का.

Tags:    

Similar News