हैदराबाद की इस लैब में पैदा किया जा रहा कोरोना वायरस, ये है वजह

देश में COVID-19 केसों का आंकड़ा ऊंचा होता जा रहा है, वहीं वैज्ञानिक समुदाय इस वायरस को मात देने के लिए दिन रात जुटा हुआ है. हैदराबाद स्थित CCMB बीते दो हफ्तों से इस वायरस को लैब में उत्पन्न कर रहा है. इसका मकसद वायरस के जीनोम की बनावट और इसकी प्रकृति पर शोध करना है.

Update: 2020-04-30 16:24 GMT

कोरोना वायरस का फैलाव रोकने के लिए दुनिया भर में कोशिशें की जा रही हैं. वहीं हैदराबाद में सेंटर फॉर सेल्युलर एंड मॉलीक्यूलर बायोलॉजी (CCMB) बीते दो हफ्तों से इस वायरस को लैब में उत्पन्न कर रहा है. इसका मकसद वायरस के जीनोम की बनावट और इसकी प्रकृति पर शोध करना है. यह वायरस के बारे में अधिक से अधिक डेटा और जानकारी इकट्ठा करने की भी कोशिश है. एक नियंत्रित वातावरण में वैज्ञानिक अफ्रीकी हरे बंदर के गुर्दे की कोशिका में वायरस को विकसित कर रहे हैं.

CCMB को पांच दशक पहले ही हैदराबाद में स्थापित किया गया था. ये संस्थान देश की अहम रिसर्च लैब्स में से एक है. यहां वैज्ञानिक लगातार वायरस के प्रसार को रोकने के नए तरीके खोजने के लिए काम कर रहे हैं.

CCMB के निदेशक राकेश मिश्रा ने संस्थान की लैब में वायरस कल्चर के बारे में कहा, "हमने लैब्स में इस वायरस को बड़ी संख्या में उत्पन्न करना शुरू कर दिया है जिससे कि कोशिकाओं में इसकी वृद्धि का अध्ययन किया जा सके और साथ ही सीरम टेस्टिंग में इसका इस्तेमाल हो सके.''

राकेश मिश्रा ने कहा, "अभी तक ऐसा कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है जो यह साबित करता हो कि भारत में कोरोना वायरस दुनिया के अन्य हिस्सों से अलग है या कमजोर है." लेकिन मिश्रा इस बात से सहमत हैं कि वायरस लगातार खुद को म्युटेट कर रहा यानी बदल रहा है.

डॉ मिश्रा ने देश और राज्यों में बड़े पैमाने पर टेस्टिंग की वकालत की. उन्होंने कहा कि ऐसा इसलिए करना जरूरी है क्योंकि ऐसे केस बड़ी संख्या में हैं जहां लक्षण दिखाई ही नहीं दे रहे. डॉ मिश्रा ने लॉकडाउन को बढ़ाए जाने का भी समर्थन किया.

CCMB निदेशक ने कहा, "अगर हम सोशल डिस्टेंसिंग पर लॉकडाउन निर्देशों का पालन करते हैं तो हम जून के अंत तक स्थिति को काबू में होता देख सकते हैं. अगर हम लॉकडाउन को सही तरह से अमल में नहीं लाएंगे तो साल के आखिर तक ऐसे ही चल सकता है."

उन्होंने यह भी बताया कि CCMB के वैज्ञानिक घोड़े जैसे बड़े जानवर में वायरस एंटीबॉडी विकसित कर रहे हैं जो प्लाज्मा एंटीबॉडी के समान है.

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डॉ मिश्रा के मुताबिक ऐसा कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है कि हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन दवा COVID-19 के खिलाफ कारगर है. लेकिन साथ ही उन्होंने कहा कि यह हानिकारक भी नहीं है और इसलिए फ्रंट लाइन वर्कर्स को वायरस से सुरक्षा के रूप में इसे दिया जा रहा है.

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