तमिलनाडु के इस मंदिर में 1100 साल पहले लिखे गये थे चुनाव के कायदे-कानून, जानिए इतिहास

हमारे देश में कई ऐसे मंदिर है जिनसे जुड़ी कई पौराणिक कथाएं हैं। ऐसे ही एक मंदिर के बारे में हम आपको आज बता रहे हैं जिसका संबंध चुनाव से है। जी हाँ… सही पढ़ा आपने चुनाव…. दरअसल इस मंदिर में सबसे पहले चुनाव के कायदे-कानून लिखे गए थे। आइये आपको इस मंदिर से जुड़ी पौराणिक कथा और बाकी सभी जानकारियों के बारे में बताते हैं।;

Update: 2022-02-09 12:29 GMT

हमारे देश में कई ऐसे मंदिर है जिनसे जुड़ी कई पौराणिक कथाएं हैं। ऐसे ही एक मंदिर के बारे में हम आपको आज बता रहे हैं जिसका संबंध चुनाव से है। जी हाँ… सही पढ़ा आपने चुनाव…. दरअसल इस मंदिर में सबसे पहले चुनाव के कायदे-कानून लिखे गए थे। आइये आपको इस मंदिर से जुड़ी पौराणिक कथा और बाकी सभी जानकारियों के बारे में बताते हैं।

जयललिता ने शुरू किया था पहला चुनावी अभियान

तमिलनाडु की राजधानी चेन्नई से लगभग 90 किलोमीटर दूर एक प्राचीन स्थान उथिरामेरुर है। पिछले काफी सालों से यह जगह लोकतंत्र का जन्मस्थान माना जाता है। उथिरामेरुर मंदिर चेन्नई के मदुरंतकम से करीब 25 किमी दूर स्थित है, जहां से तीन दशक पहले तमिलनाडु की मुख्यमंत्री और अन्नाद्रमुक प्रमुख जे जयललिता ने अपना पहला चुनाव अभियान शुरू किया था।

तमिलनाडु के प्रसिद्ध कांचीपुरम से 30 किमी दूर उथिरामेरूर नाम का गांव करीब 1250 साल पुराना है। करीब 1100 साल पहले यहां गांव में एक आदर्श चुनावी प्रणाली थी और चुनाव के तरीके को निर्धारित करने वाला एक लिखित संविधान था। यह लोकतंत्र के सबसे पुराने मंदिरों में से एक है।

इस वैकुंठ पेरुमल (विष्णु) मंदिर की दीवारों पर, चोल वंश के राज्य आदेश वर्ष 920 ईस्वी के दौरान दर्ज किए गए हैं। इनमें से कई प्रावधान मौजूदा आदर्श चुनाव संहिता में भी हैं। यह ग्राम सभा की दीवारों पर खुदा हुआ था, जो ग्रेनाइट स्लैब से बनी एक आयताकार संरचना थी।

मंदिर के शिलालेखों पर लिखे हैं चुनाव प्रक्रिया

इस मंदिर का इतिहास काफी पुराना है। सदियों पहले, उथिरामेरुर के 30 वार्डों के 30 जन प्रतिनिधियों को मतपत्र द्वारा चुना गया था। शिलालेख वार्ड्स के गठन, चुनाव के लिए खड़े उम्मीदवारों की योग्यता, अयोग्यता मानदंड, चुनाव का तरीका, निर्वाचित सदस्यों के साथ समितियों के गठन, ऐसी समितियों के कार्यों और गलत-कर्ता को हटाने की शक्ति के बारे में विवरण देता है। ग्रामवासियों को यह भी अधिकार था कि यदि वे अपने कर्तव्य में विफल रहे तो निर्वाचित प्रतिनिधियों को वापस बुला सकते हैं। कहा जाता है कि पद पर रहते वक्त भ्रष्टाचार, घूसखोरी करने पर ताउम्र तक अयोग्य साबित कर दिया जाता था।

इस तरह डाले जाते थे वोट

शिलालेखों के अनुसार, एक विशाल मिट्टी का बर्तन जो मतपेटी के रूप में काम करता था, उसे शहर या गांव के एक महत्वपूर्ण स्थान पर रखा जाता था। फिर सभी मतदाता अपने पसंद के उम्मीदवार का नाम एक ताड़ के पत्ते पर लिखते थे और फिर उसे कुदम में डालते थे। इस प्रक्रिया के आखिरी में, सभी पत्तों को मतपेटी से निकालकर फिर उनकी गिनती की जाती थी। जिसे सबसे ज्यादा वोट मिलते थे, उसे ग्राम सभा का सदस्य चुना लिया जाता था। पारिवारिक व्यभिचार या दुष्कर्म करने वाला 7 पीढ़ी तक चुनाव में शामिल होने से अयोग्य हो जाता 

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