उत्तर प्रदेश की प्रसव पीड़ा?

Update: 2020-05-27 08:47 GMT

उत्तर प्रदेश में श्रम, श्रमिक और श्रम कानून के साथ मजाक का जो आलम है उसमें यह शीर्षक एक और मजाक है। दूसरे शब्दों में आप कह सकते हैं कि जो हो रहा है उसका सही चित्रण है। इतनी जल्दबाजी जैसे प्रसव पीड़ा हो रही हो। आम तौर पर इसका अनुवाद होता - उत्तर प्रदेश की प्रसव पीड़ा। पर चूंकि ऐसा हो ही नहीं सकता इसलिए कुछ और सोचना पड़ेगा। वह है - उत्तर प्रदेश के श्रमिकों की तकलीफ।

अभी यह तय नहीं हुआ है कि जो माता-पिता अपने बुढ़ापे के लिए बच्चों को विदेश नहीं जाने देते हैं वे सही करते हैं या गलत वैसे में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री इतनी जल्दी में हैं कि उन्होंने कह दिया, "उत्तर प्रदेश के अंदर जितनी भी मैनपॉवर हमारी है, इन सबकी स्किल मैपिंग के साथ-साथ कमिशन का गठन करके व्यापक स्तर पर रोज़गार उत्तर प्रदेश के अंदर उपलब्ध कराने की कार्रवाई सरकार कर रही है. अब अगर किसी सरकार को मैनपॉवर चाहिए, तो इस मैनपॉवर को सोशल सिक्युरिटी की गारंटी राज्य सरकार देगी, उनका बीमा कराएगी, उनको हर तरह से सुरक्षा देंगे. लेकिन साथ-साथ राज्य सरकार बिना हमारे परमिशन के हमारे लोगों को लेकर नहीं जाएगी, क्योंकि कुछ राज्यों में जो लोगों की दुर्गति हुई है, जिस प्रकार का व्यवहार हुआ है उसको देखते हुए हम इनकी सोशल सिक्युरिटी की गारंटी अपने हाथों में लेने जा रहे हैं. इसके लिए मैंने आज एक कमिशन बनाने की व्यवस्था की है।" (बीबीसी संवाददाता, सरोज सिंह की खबर से)।

मेरा मानना है कि जो मां-बाप बच्चों को विदेश जाने देते हैं उनके बारे में कहा जाता है कि वे बच्चों से प्यार नहीं करते कैसे बर्दाश्त करते हैं कि बच्चे दूर रहें और जो नहीं जाने देते हैं वे अपने स्वार्थ में बच्चों का कैरियर खराब करते हैं। ऐसे में कोई मुख्यमंत्री आपके लिए कुछ भी करे उसपर सवाल उठेंगे ही और जब वह राजनेता हो तो क्या कहने। उसमें उत्तर प्रदेश सरकार की ये शर्तें बचकानी है। जो शर्त वह दूसरे राज्यों पर अपने श्रमिकों के मामले में लगा रही है क्या वही शर्त अपने ऊपर दूसरे राज्यों के मजदूरों पर लगाएगी? अगर हां, तो शुरुआत इसी से होनी चाहिए और नहीं तो दूसरे राज्यों पर ऐसी शर्त लगाने का कोई मतलब नहीं है।

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