ठेकेदार अवधेश श्रीवास्तव का PWD के चीफ इंजीनियर के कमरे में गोली मार लेने का सबसे बड़ा कारण है जातिवाद?

वह जातिवाद, जिसकी जड़ें सीधी प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के कार्यालय से निकल कर इन दिनों राज्य के लगभग हर प्रशासनिक अमले में फल फूल रही है।

Update: 2019-09-02 04:27 GMT

बनारस में ठेकेदार अवधेश श्रीवास्तव ने PWD के चीफ इंजीनियर के कमरे में ही बैठकर अगर खुद को गोली मार ली तो इसके लिए सिर्फ विभागीय अधिकारियों का भ्रष्टाचार ही जिम्मेदार नहीं है...बल्कि एक और चीज भी जिम्मेदार है...और वह है जातिवाद। वह जातिवाद, जिसकी जड़ें सीधी प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के कार्यालय से निकल कर इन दिनों राज्य के लगभग हर प्रशासनिक अमले में फल फूल रही है। फलते फूलते अब यह एक ऐसी विषबेल बन चुकी है, जिसे अगर समय रहते रोका नहीं गया तो प्रदेश में जातिवाद के चलते सीना तान कर भ्रष्टाचार करने वाले मुख्यमंत्री के सजातीय अधिकारी/कर्मचारी न जाने कितने गैर ठाकुर लोगों की बलि ठेकेदार अवधेश श्रीवास्तव की तरह लेते रहेंगे।

अगर ऐसा नहीं होता तो जिस चीफ इंजीनियर से अपने करोड़ों के भुगतान कराने की गुहार लगाते लगाते थकने के बाद अवधेश ने उन्हीं के कमरे में बैठकर खुद को गोली मारी, उनका नाम ठाकुर अम्बिका सिंह न होता। और न ही अवधेश से भारी कमीशन वसूल करने के बावजूद उनका भुगतान रोककर उन्हें अपमानित व प्रताड़ित करने वाले सहायक अभियन्ता का नाम ठाकुर आशुतोष सिंह व जूनियर इंजीनियर का नाम ठाकुर मनोज कुमार सिंह होता।

क्या यह संयोग है कि अवधेश को आत्महत्या के लिए मजबूर करने वाले तीनों अहम और भ्रष्ट अधिकारी ठाकुर हैं? और क्या इसे भी संयोग ही मान लिया जाए कि इस कदर खुलेआम सीना तानकर भ्रष्टाचार करने और अवधेश द्वारा शासन प्रशासन आदि में शिकायत करने, गुहार लगाने से लेकर हर संभव प्रयास करने के बावजूद उनका कुछ नहीं बिगड़ा? और यह भी कोई बड़ी बात नहीं कि इस मामले में हल्ला गुल्ला थम जाने के बाद तीनों ठाकुर बंधुओं को लखनऊ में बैठे उनके सजातीय आका किसी न किसी तरीके से बचा ही ले जाएं।

दरअसल, योगी आदित्यनाथ ने जब से उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री का पद संभाला है, तभी से उन्होंने अपने गोरखपुर के उसी ठाकुरवाद को लखनऊ में अपने सलाहकारों की नियुक्ति से लेकर उत्तर प्रदेश के हर विभाग में प्रश्रय दिया है, जिसके दम पर उन्होंने गोरखपुर में दशकों से अपना वर्चस्व बनाये रखा है। कौन नहीं जानता कि योगी आदित्यनाथ ने गोरखपुर में चले आ रहे दशकों पुराने ब्राह्मण-ठाकुर संघर्ष में अपनी जाति यानी ठाकुरों का राजनीतिक नेतृत्व हथियाकर न सिर्फ ठाकुरों को वहां ब्राह्मणों के मुकाबले मजबूत स्थिति में ला दिया बल्कि खुद भी गोरखपुर से होते हुए पूर्वांचल और अब लखनऊ में कब्जा करके समूचे उत्तर प्रदेश में अपना सिक्का जमा लिया है।

योगी आदित्यनाथ के आते ही शासन प्रशासन में बैठे ठाकुर अधिकारी/कर्मचारी किस तरह सीना तानकर भ्रष्टाचार करने लगे थे, इसका एक गवाह और पीड़ित तो मैं खुद भी रहा हूँ। बतौर बिल्डर अपने प्रोजेक्ट की फ़ाइल को मैं दो बरस तक इसलिए पास नहीं करा पाया कि एक ठाकुर अधिकारी ने अपने नीचे बैठे एक अन्य ठाकुर अधिकारी के साथ मिलकर दो साल तक छाती ठोंक कर मुझे चुनौती दी कि दम है तो फ़ाइल पास करवा कर दिखाओ।

फ़ाइल में कानूनी रूप से कोई कमी न होने के बावजूद जब हर प्रयास करके भी मैं फ़ाइल को टस से मस नहीं करा सका तो बजाय अवधेश श्रीवास्तव की तरह खुद को गोली मारने या किसी और को गोली मारने के मैंने मीडिया का सहारा लिया। बिल्डर बनने से पहले एक दशक तक पत्रकार रहने का फायदा मुझे यह था कि दिल्ली से लेकर लखनऊ तक के पत्रकार मुझे व्यक्तिगत रूप से जानते या पहचानते हैं।

पत्रकारों या इसी तरह के अन्य पेशे जैसे वकीलों में से कुछ लोगों में एक अच्छी बात यह होती है कि जाति से कहीं ज्यादा वे अपने हमपेशा को तरजीह देते हैं...या सच के साथ खड़े हो जाते हैं, भले ही इसके लिए उन्हें अपनी ही जाति के खिलाफ खड़ा होना पड़ जाए। इसलिए खुशी की बात यह रही कि अन्य चंद लोगों के साथ एक मजबूत ठाकुर पत्रकार भी मेरे लिए मुख्यमंत्री कार्यालय तक पहुंच गए। जाहिर है, वहां भी एक ठाकुर अधिकारी से ही से उन्होंने मेरे लिए पैरवी की। नतीजा यह हुआ कि मेरी फ़ाइल अप्रूव हो गयी। मगर उन दोनों भ्रष्ट ठाकुर अधिकारियों का कुछ नहीं बिगड़ा। एक को लखनऊ से भी बढ़िया पोस्टिंग देकर नोएडा भेज दिया गया तो दूसरा आज भी वहीं जमा है।

मुलायम सिंह यादव या अखिलेश यादव के कार्यकाल में मीडिया या प्रदेश में हर कोई इस बात का रोना रोता है कि यादववाद करके सपा ने प्रदेश का सत्यानाश कर दिया है तो मायावती के राज में दलितवाद फैलाकर प्रदेश को बर्बाद करने का आरोप लगाया जाता है। मगर अब कोई यह क्यों नहीं बोल रहा कि योगी आदित्यनाथ ने ठाकुरवाद की इंतिहा करके प्रदेश का बेड़ा गर्क कर दिया है। मीडिया और लोगों के बीच पसरी यह खामोशी इसी तरह एक के बाद एक अवधेश श्रीवास्तव को आत्महत्या के लिए मजबूर करती रहेगी। देखना यह है कि चुनाव में जनता इस खामोशी को तोड़कर योगी आदित्यनाथ के ठाकुरवाद पर अपना क्या फैसला सुनाती है। 

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