पटना

आखिर बिहारी कोरोना से लड़ाई में भगवान भरोसे क्यों? एक बार जरूर पढ़िये

Shiv Kumar Mishra
19 July 2020 12:01 PM IST
आखिर बिहारी कोरोना से लड़ाई में भगवान भरोसे क्यों? एक बार जरूर पढ़िये
x
12 करोड़ की विशाल आबादी वाले इस राज्य में प्राइमरी हेल्थ सेंटर की बात करे तो वह सिर्फ 2000 और कम्यूनिटी हेल्थ सेंटर सिर्फ 150 है।

अलोक सिंह

एक बार फिर से #बिहार अपनी अच्छाई को लेकर नहीं बल्कि कोरोना संकट और बाढ़ की विभीषिका से उपजे बेबसी व लचारी के कारण नेशनल $मीडिया में जगह पाने में कामयाब हो पाया है। बीते दो दिन से टीवी स्क्रीन पर कोरोना और बाढ़ की बदहाली की खबरें तैर रही हैं। आखिर क्या वजह है कि 15 साल के सुशासन की सरकार होने के बाद भी बिहार और बिहारी इस तरह की गुरबत की जिंदगी जीने को मजबूर हो रहे हैं। आखिर कोरोना से लड़ाई में बिहारी ही क्यों भगवान भरोसे है? इस सवाल का जवाब तलाशन के लिए मैंने बिहार की स्वास्थ्य व्यवस्था का हाल खंगालने की कोशिश की तो पता चला कि 15 साल जंगल राज में तो स्वास्थ्य सिस्टम को सत्यानाश किया ही गया, सुशासन में भी इसका बुरा हाल ही बना रहा है।

लौटते हैं कि #कोरोना संकट के बीच बिहार को लेकर सबसे अधिक डर का माहौल क्यों है? क्यों इसे बुहान और ग्लोबल हॉट—स्पॉट बनने की आशंका जताई जा रही है तो शुरू करते हैं नीती आयोग द्वारा हर साल जारी #हेल्थ इंडेक्स की रिपोर्ट पर। साल 2019 के इस इंडेक्स पर नजर डाले तो बिहार पूरे देश में नीचले पायदान से सिर्फ एक पायदान उपर था। यही नहीं 2018 के मुकाबले स्वास्थ्य व्यवस्था में सुधार की जगह 6.35 अंक का गिरावट दर्ज की गई। इसी इंडेक्स में देश के बड़े राज्यों में बिहार सबसे निचले 21वें पायदान पर रहा। यह सिर्फ साल 2019 में ही नहीं बल्कि 2017 और 2018 में भी रैंकिंग पूरे देश में सबसे खराब रही।

इस सब के बावजूद #सरकारी अकर्मण्यता देखिये कि राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन निधि के तहत मिले फंड का बिहार सराकर ने पूरा इस्तेमाल नहीं किया। पिछले साल केंद्र से लगभग राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के तहत 3,300 करोड़ मिले, लेकिन उसने केवल 50% ही खर्च किया गया। बिहार में अस्तपाल और बेड की उपलब्धता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि 100000 लोगों पर सिर्फ 1 बेड है। डब्ल्यूएचओ के अनुसार, 43,788 लोगों को देखने के लिए सिर्फ एक डॉक्टर हैं। इसी कारण स्वास्थ्य सेवा को लेकर बिहार सबसे निचले पायदान पर है। सुशासन बाबू अपने काम का जितना डंका पीटे लेकिन हकीकत यह भी है कि राज्य में 11,373 स्वीकृत डाक्टर के पद में से 50 फीसदी सीट खाली हैं। 12 करोड़ की विशाल आबादी वाले इस राज्य में प्राइमरी हेल्थ सेंटर की बात करे तो वह सिर्फ 2000 और कम्यूनिटी हेल्थ सेंटर सिर्फ 150 है।

अब लौटते हैं तो कोरोना संकट पर बिहार में स्थिति कैसे नाजुक है? इसको ऐसे समझें कि देश में कोरोना #संक्रमण की रफ्तार 6.37 फीसदी की दर से है तो बिहार में यह 13 फीसदी की दर से बढ़ रहा है। इसके साथ ही बिहार में कोरोना के मामले 8 दिन में डबल हो रहे हैं जबकि राष्ट्रीय औसत 13 दिन का है। यह आंकड़ा तब है जब बिहार में प्रति हाजार जांच की संख्या पूरे देश में सबसे कम है। अगर जांच बढ़े तो स्थिति और भयावह हो सकती है। इससे स्थिति की गंभीरता का आकलन करना बहुत ही आसान है।

वैसे #चुनाव है तो आने वाले दिनों में एक बार फिर से जनता को लॉलीपॉप दिया जाएगा इसमें भी कोई शक नहीं है। डबल इंजन की सरकार अपनी अपस्थिति दर्ज कराने के लिए जोर लगाएगी लेकिन सवाल तो बनता है मेरे दोस्तों और इस बार किसी भी पार्टी का नेता वोट मांगने आए तो जरूर पूछें कि उसके पास कोई एजेंडा है इस गंभीर हालात से आपके विधानसभा को बाहर निकालने का। इस बार जात—पात से ऊपर ऊठ कर सोचने की जरूरत है। बाकी आपकी मर्जी...

Next Story