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आसमान छूता आधुनिक चिकित्सा विज्ञान एवं लाइलाज चमकी बुखार और बेपरवाह बिहार सरकार
![आसमान छूता आधुनिक चिकित्सा विज्ञान एवं लाइलाज चमकी बुखार और बेपरवाह बिहार सरकार आसमान छूता आधुनिक चिकित्सा विज्ञान एवं लाइलाज चमकी बुखार और बेपरवाह बिहार सरकार](https://www.specialcoveragenews.in/h-upload/2019/06/17/266278-d9o8m8buiayikg7.jpg)
यह सही है कि मनुष्य की जब मौत होती है तभी वह मरता है लेकिन यह भी सही है कि कभी कभी मनुष्य की मौत नेचुरल मौत आने के पहले ही हो जाती है जिसे अकाल मौत कहा जाता है। अकाल मौत का मतलब होता है कि मनुष्य अपनी स्वाभाविक मौत से नहीं बल्कि किसी शारीरिक खराबी अथवा आकस्मिक घटना दुर्घटना के चलते समय पर स्वास्थ्य सुविधा न मिल पाने के कारण हो जाती हैं। देश व प्रदेश की सरकार का यह परम दायित्व होता है कि वह अपने नागरिकों स्वास्थ्य सेवा उपलब्ध कराकर उन्हें बेमौत मरने से बचाए। आज हम भले ही चांद पर पहुंच गये हो एवं दुनिया में एक महाशक्ति के रूप में उभर रहे हो लेकिन दुख की बात है इसके बावजूद आज भी देश में हजारों लोग चिकित्सा सुविधा उपलब्ध न होने के कारण मर रहे हैं और हम चाहकर भी कुछ कर नहीं पा रहे हैं।
मनुष्य का जीवन बहुत कीमती माना गया है जिसकी कोई कीमत नहीं होती है तथा वह अनमोल होता है इसलिए इसे बचाना खुद का और सरकार का सर्वोच्च धर्म होता है। आज हम स्वास्थ्य के क्षेत्र में किसी से पीछे नहीं रह गए हैं और देश में खुले विभिन्न रिसर्च सेंटर एवं बड़े बड़े एम्स मेडिकल कॉलेज जैसे अस्पताल खुले हुए हैं।ऐसी कोई बीमारी नहीं है जिसका इलाज चिकित्सा विज्ञान में असंभव हो।इसके अलावा देश में हजारों छोटे बड़े सरकारी अस्पतालों के साथ प्राइवेट चिकित्सा संस्थान खुले हुए हैं जिन पर करोड़ों अरबों रुपये खर्च हो रहा है।चिकित्सा विभाग किसी को बेमौत न मरने देने का दावा कर रहा है इसके बावजूद विभिन्न क्षेत्रों पिछले कई दशकों से बच्चों बूढ़ों की जान की दुश्मन बनी विभिन्न बीमारियों की पहचान करके स्थाई निदान नहीं कर पा रहा है। पूर्वी उत्तर प्रदेश एवं बिहार में एक लम्बे अरसे से साल में एक बार अजब बीमारी महामारी का रूप धारण कर मौत का तांडव करती है और सैकड़ों बच्चों बूढ़ों की अकाल मौत हो जाती है।यह बीमारी अक्सर गर्मी के मौसम में बुखार बनकर आती है और मौसम बदलने तक अपना तांडव करती है जिसे इंसफ्लिट्स दिमागी जपानी चमकी बुखार आदि कहते हैं।इन बुखारों का पता लगाकर इसकी पहचान करने के प्रयास दशकों से किये जा रहे हैं लेकिन सफलता नहीं मिल पा रही है।
इस समय चमकी बीमारी पिछले वर्षों की तरह इस बार भी बिहार में तबाही मचाये हुये और डेढ़ सौ से ज्यादा बच्चों की देखते ही देखते अबतक मौतें हो चुकी हैं।स्थिति इतनी भयावह हो गई है कि लोग गाँव घर छोड़कर भागने लगे है। हमेशा की तरह हमारा चिकित्सा विज्ञान इस बीमारी के कारणों का पता लगाकर इसकी पहचान नहीं कर पा रहा है।इस प्राणघातक बीमारी की पहचान करने के देशी विदेशी चिकित्सकों वैज्ञानिकों को बुलाया जा चुका है फिर इस बीमारी का पता नहीं लग सका है।इस बार अकेले मुजफ्फरपुर एवं बैशाली में अबतक सैकड़ों बच्चों की मौत इस अज्ञात चमकी बीमारी से हो चुकी है।बड़े शर्म की बात है कि हर बार की तरह इस बार भी हमारे वैज्ञानिक इस मौत की आँधी बनी बीमारी की पहचान नहीं कर पा रहे हैं और इस बार भी उसे चमकी नाम दे रखा गया है।मुजफ्फरपुर के जिला अस्पताल में इस बीमारी से पीड़ित मरीजों की भीड़ लगी हुयी है लेकिन मरीजों को बेहतर चिकित्सा सुविधा उपलब्ध नहीं हो पा रही है। न तो पर्याप्त चिकित्सक है न तो दवाएं बिस्तर और न ही अन्य सुविधाएं समय पर उपलब्ध नहीं हो पा रही हैं।
महीनों से इस अस्पताल में मौत डेरा डाले तांडव नृत्य कर रही है और चीखने चिल्लाने एवं अफरातफरी का माहौल बना हुआ है। मौतों का सिलसिला जारी है लेकिन शासन प्रशासन कान में तेल डालें बैठा हुआ था और समुचित व्यवस्था नहीं कर पा रहा है।चिकित्सा सुविधाओं का अभाव एवं चिकित्सकों की मनमानी नागरिकों के आक्रोश को बढ़ा रही है।जनाक्रोश आसमान पर पहुंचने में बाद स्वास्थ्य मंत्री से लेकर मुख्यमंत्री तक अस्पताल में भर्ती मरीजों को देखने आ सके हैं और असहाय बनकर वापस जा चुके हैं। अकाल हो रही इन मौतों एवं सरकारी व्यवस्था एवं सरकार की लापरवाही से वहां पर बगावत जैसी स्थित पैदा होने लगी है और मुख्यमंत्री के पहुंचने पर गो बैक सहित विभिन्न तरह के विरोधी नारों का सामना करना पड़ चुका है। पूर्वी उत्तर प्रदेश एवं बिहार में हर साल अज्ञात बीमारी से होने अकाल मौतों का स्थाई विकल्प चिकित्सा सुविधा के रूप में उपलब्ध कराना सरकार का नैतिक दायित्व बनता है।
लोकतंत्र में जनता की सरकार होती है और सरकार जनता के लिए काम करती है। जनता मरती हो और सरकार मौज मस्ती करती हो ऐसी सरकार को प्रजातांत्रिक सरकार नहीं बल्कि राजतंत्र से भी बदतर अलोकतांत्रिक सरकार ही कहा जा सकता है। बिहार में फैला मौत का तांडव अभी भी जारी है और स्वास्थ्य विभाग एवं सरकार दोनों हाथ पर हाथ धरे घुटने टेके असहाय से खड़े देख हैं। इस बीमारी के सामने सारा चिकित्सा विज्ञान फेल दिखने लगा है।चिकित्सा विज्ञान से जुड़े देशी विदेशी सभी वैज्ञानिकों को चाहिए कि वह तुरंत इस बीमारी का पता लगाकर हर साल होने वाली बेमौत मौतो को होने से बचाए।