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बिहार से राज्य सभा चुनाव का संकेत....

बिहार से राज्य सभा चुनाव का संकेत....
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बिहार मे राज्य सभा की खाली 6 सीटों पर उम्मीदवारो के नामांकन के साथ ही चुनावी प्रकिया की शुरूआत आज हो गयी है.

बिहार मे राज्य सभा की खाली 6 सीटों पर उम्मीदवारो के नामांकन के साथ ही चुनावी प्रकिया की शुरूआत आज हो गयी है. हालांकि चुनाव मैदानमें खड़े 6 प्रत्याशियो का निर्विरोध चुना जाना तय है और केवल औपचारिकता वश उन्हें 15 मार्च को जीत का प्रमाण पत्र देना बाकी है. राज्य सभा और विधान परिषद का चुनाव ऐसा है जिसमें विधायकों की अहम भूमिका होती है और इसमें हार्स ट्रेडिंग की संभावना बनी रहती है जिसका सबसे बेहतर उदाहरण पड़ोसी राज्य झारखंड का पिछले कई वर्षो से देखने को मिला है.


हालांकि नीतीश राज के चलते बिहार इससे अछूता रहा है लेकिन इसी चुनाव के चलते पिछले वर्षो मे जद यू के कई विधायकों को अपनी सदस्यता खोनी पड़ी है.लेकिन सबसे बड़ा संकेत इस चुनाव में राजनीतिक है जो बहुत दिनों के बाद एक बार फिर देखने को मिल रहा है. बिहार में करीब तीन दशक से समाजवादियों की सरकार रही है और उसमें महत्वपूर्ण भूमिका राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव की रही है. चाहे सत्ता हो या विपक्ष लालू के ईर्द गिर्द यह चुनाव भी घूमता रहा है. यानि उच्च सदन में भी माई समीकरण का बोलवाला रहा है. अगर अगड़ी जातियों को उच्च सदन में भेजने की बात आयी है तो लालू ने करीब करीब परहेज किया है. लेकिन इस बार उसके विपरीत राजद ने अपने जो उम्मीदवार उतारे है उनके बारे में भले ही सोशल मीडिया में यह खबरें तैर रही है कि लक्ष्मी और सरस्वती दोनों को राजद ने उम्मीदवारी दी है.


हालांकि इसमें कुछ सच्चाई भी है लेकिन हकीकत है कि लाठी मे तेल पिलाने वाली पार्टी के दोनों उम्मीदवार उच्च शिक्षा से जुड़े है. मनोज झा जहा दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर है तो अशफाक करीम कटिहार मेडिकल कालेज के एम डी . यानि शायद पहली बार राजद ने उच्च सदन में दोनों बिहारी काबिल उम्मीदवार को उतारा है. यही वजह है कि मनोज झा ने आज पहले ही दिन अपनी काबिलियत का परिचय दिया है और कहा है कि राजद की चादर अब जातीय समीकरण से आगे फैली है. यानि राजद बदल रहा है और इस कदम के लिये तेजस्वी यादव की सराहना जरूर की जानी चाहिये जिन्होने राजद के चेहरे को माय समीकरण से निकालने का कदम उठाया है.


दूसरी तरफ शरद यादव का जद यू से नाता तोड़ने के बाद पुराने समाजवादी और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के साथ हर कदम साथ चलने वाले जद यू के प्रदेश अध्यक्ष वशिष्ठ बाबू को एक बार फिर राज्य सभा भेजकर नीतीश ने यह जताने की कोशिश की है कि वे मूलत समाजवादी है और पुरानी परंपरा के वाहक..किंग महेन्द्र के बारे में कुछ कहने की जरूरत नही इतना तो मानना पड़ेगा कि अपनी काबिलियत के चलते वे देश के कुछ गिने चुने राज्य सभा सदस्य है जिन्होनें जो चाहा पाया. भाजपा के रविशंकर प्रसाद की काबिलियत तो जग जाहिर है ही .बिहार कैबिनेट में एक भी कायस्थ नही होने की वजह से नाराज कलम जीवियो को खुश करने के लिये वर्तमान समय में रविशंकर जी से बेहतर भाजपा में दूसरा कोई उ्मीदवार नजर भी नही आता .


लेकिन सबसे दिलचस्प कांग्रेस के उम्मीदवारी की है. 2006 में फाल्गुनीराम के बाद करीब 12 वर्षो के अंतराल में कांग्रेस का कोई बिहारी नेता राज्य सभा की दहलीज पर गया है.हालांकि 2010 तक आर के धवन ने बिहार का प्रतिनिधित्व किया है लेकिन वह औपचारिकता रही है.यानि हम कह सकते है कि सभी दलों ने अपने वोटों के समीकरण से अलग इस बार उम्मीदवार का चयन किया है और अपने विरोधियो के वोट बैेक में सेंधमारी की कोशिश की है.जैसे राजद में एक भी ब्राह्मण सांसद और विधायक नही है लेकिन उसने राज्य सभा में मनोज झा को भेजकर यह संकेत दिया है कि वो ब्राहम्ण विरोधी नही है .


वही जद यू में एक भी बड़े राजपूत नेता नही है लेकिन वशिष्ठ बाबू को भेजकर नीतीश ने यह भी संदेश दिया है कि वे हमारी पूंजी हैं. भूमिहार उ्मीदवार देकर जद यू और कांग्रेस ने भी एक मजबूत जाति को अपने खेमें में लाने की कोशिश की है. इन उम्मीदवारों के खिलाफ कोई आपराधिक मुकदमें भी नही रहे हैं या कोई नेता विवादों में भी नही रहे हैं. यानि बिहार बदल रहा है. अगर बिहार जातीय कुनबे और आपराधिक छवि से बाहर निकल पाता है तो यह आने वाली पीढ़ी के लिये शुभ संकेत है. ऐसे देखिये आगे - आगे होता है क्या.

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