पटना

लालू जी, तेरे बिन अपना कोई नही!

Special Coverage News
27 May 2019 7:12 PM IST
लालू जी, तेरे बिन अपना कोई नही!
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लोकसभा चुनाव परिणाम के बाद सोशल मीडिया पर राजद के एक कार्यकर्ता का वीडियो देखा. सूबे में राजद की हार से मर्माहत उस कार्यकर्ता ने इस हार की मुख्यवजह अपने नेता लालू प्रसाद यादव के बाहर नही रहने प्रदेश नेतृत्व द्वारा कार्यकर्ताओं की भावना का ख्याल नही रखने और जमीनी हकीकत के वगैर चुनावी रणनीति बनाना बतलाया. चुनावी हार के गम से प्रभावित वह कार्यकर्ता बार - बार अपने नेता तेजस्वी यादव से चुनावी समीक्षा का भी आग्रह कर रहा था.


राजद के इस कार्यकर्ता की यह भावना अकेले नही है. राजद के वरिष्ठ नेता रघुवंश प्रसाद सिंह भी मानते है कि यदि लालू बाहर होते तो चुनावी परिदृश्य दूसरा होता. आखिर लालू में वह कौन सी खासियत रही है कि राजद के कार्यकर्ता और नेता को भरोसा रहता है कि वे चुनावी सीन को बदलने का माद्दा रखते है .वजह साफ है लालू प्रसाद कार्यकर्ता और मतदाताओं का नब्ज तो पहचानते ही रहे है अपने विपक्षीयो के नब्ज को पहचानते रहे है. लालू की इस खासियत के लिये हम आपको थोड़ा पीछे ले जाना चाहते है. मंडल आयोग की सिफारिश और बाबरी मस्जिद विध्वंश के बाद बिहार की राजनीति आमूल परिवर्तन के लिये लालू ने राजनीति का अपना अलग स्टाईल अपनाया. खासकर चुनावी भाषण में अपने विरोधियो पर निशाना साधना और अपने उम्मीदवारो के जिताने के लिये नये तरकीब अपनाना लालू की खासियत रही है.


चाहे वे मुख्यमंत्री रहे या केन्द्रीय मंत्री .चुनावी सभा में लालू मंच के सामने डी ऐरिया को तोड़कर कार्यकर्तोओ और भीड़ को अपने पास बुलाकर सुरक्षा के सभी बैरिकेडिंग को तोड़वा देते थे. फिर गांव गवई की भाषा में जनता से सीधा संवाद. उम्मीदवारो के माथे पर राजद का चुनाव चिन्ह लालटेन रख देना . फिर अपने भाषण में एक से एक देहाती कहावत और विरोधियो की खिल्ली उड़ाना लालू की खासियत थी.ऐसा नही कि लालू चुनाव नही हारे. उप मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी की माने तो राज्य में लालू प्रसाद यादव ही एक ऐसे नेता रहे है जो सभी सीट पर हारने के बावजूद अंत तक जीत का दावा करने से बाज नही आते. लालू का यही बड़बोला पन राजद कार्यकर्ताओं और नेताओं की पूंजी थी.


हमें पूरी तरह से याद है कि 2015 के विधान सभा चुनाव में जब मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से पत्रकारो ने पूछा था कि आप कुछ नही बोलते है तो नीतीश ने कहा था कि हमारा काम है काम करना बोलने के लिये तो लालू जी है ही. शायद लालू का यही अंदाज उन्हें अन्य नेताओं से अलग करता रहा है और लालू प्रसाद के बेटे तेजस्वी इसे लालू वाद कहने से नही अघाते. लेकिन पिछले दो दशक से बिहार की राजनीति की धूरी बने लालू प्रसाद का लालटेन उनकी आंखो के सामने में बुझने से केवल लालू जी की तबीयत ही नासाज नही हुई है उनके हजारो चाहने वाले समर्थको की भी तबीयत बिगड़ी है.


पिछले दो महीने तक चुनाव को झेलने वाले पत्रकार हो या लालू विरोधी नेता. उनका भी मानना था कि लालू के बाहर नही रहने से इस बार बिहार क्या समूचे देश के चुनावी मजा फीका रहा. शायद यही वजह है कि लालू के चाहने वाले कार्यकर्ता भी निराश है कि उनकी पार्टी का खैवैया कोई नही है. वे गुहार लगाने के लिये भी मजबूर है कि लालू जी तेरे बिना अपना कोई नही.हालांकि राजद ने मंगलवार को चुनावी हार के कारणो के लिये समीक्षा बैठक रखी है. लेकिन देखना है कि लालू के समर्थको को तेजस्वी यह भरोसा दिलाने में कितना कामयाब होते है कि लालू की तरह हम तेरे साथ है.

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