
तीर के सही निशाने पर लगने से क्या लालटेन की लौ को बचा पायेगें लालू के पुत्र तेजस्वी!

कहावत है कि राजनीति में कब क्या हो किसी को पता नही. खासकर बिहार के संदर्भ में तो यह सौ फीसदी सटीक बैठती है. कभी बिहार में लालू के डर से कांपने वाले राजनीतिक दल के नेता अब लालू को ही डराने में लगे है. बिहार की सत्ता पर कांबिज होने के बाद लालू ने सबसे पहले अपने उन सहयोगी दलो का ही शिकार किया था जिसके सहयोग से वे गद्दी पर बैठे थे. चाहे वे बीजेपी हो ,कांग्रेस हो या वामपंथी या समाजवादी पार्टिया.
शायद ही ऐसा कोई दल बचा हो जिसके कुनबे को ढाहने में लालू ने महत्वपूर्ण भूमिका नही निभाई हो . लेकिन राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव और उनके सुपुत्र तेजस्वी यादव शायद यह भूल चुके है कि जमाना बदल गया है और पानी सिर से उपर चला गया है.पिछले सप्ताहही राजद के द्वारा एक मिलन समारोह का आयोजन किया गया था और तेजस्वी की मौजूदगी में जद यू के पूर्व एम एल सी और एक नेत्री को राजद में शामिल कराया गया था. इस अवसर पर जहा उस एमएलसी ने दावा किया था कि जद यू में कुछ बचा नही है और तेजस्वी का दावा था कि कई बड़े नेता जद यू के जल्द ही राजद में शामिल होंगें.
यह एलान करते वक्त तेजस्वी ने यह तनिक भी नही सोचा कि चुनाव के ठीक पहले अपने दुश्मन को वह क्यो अपनी रणनीति का खुलासा कर रहें है. बिहार की राजनीति में नीतीश कुमार के बारे में कहा जाता है कि वह कब क्या करेगें उनके साथ दिन रात साया की तरह रहने वाले यानि साया को भी पता नही चलता है. बकौल लालू के शब्दो में तो नीतीश के पेट में दांत है. ऐसे में तेजस्वी ने ये कैसे समझ लिया कि नीतीश चाचा अपने भतीजे को खुला मैदान दे देंगे. हुआ भी वही एक सप्ताह के अंदर ही नीतीश ने अपने सिपहसलारो के माध्यम से ऐसा तीर चलाया कि राजद इस झटके से छटपटा उठी.शायद यही कारण था कि 5 एमएलसी के जाने के बाद तेजस्वी नीतीश के खिलाफ कोई बड़ा बयान नही दे पाये . देते भी कैसे खेल की शुरूआत तो उन्होनें की थी.
इसके पहले भी लालू और उनका परिवार नीतीश के चाल से मात खा चुकी है और 2017 में सत्ता गवां चुकी है. उस समय भी सत्ता गवाने के कुछ देर पहले तक भी लालू को इसकी भनक नही मिली. लालू की विरासत संभाल रहे तेजस्वी ये क्यो नही समझ पा रहे कि जिन चााचाओं ने उनके पिता को गद्दी से उतारने में कोई कसर नही छो़डी वो उन्हें कैसे छोड़ देगें.
ऐसे में अब सियासी हलको में यह चर्चा तेज हो चुके है कि कमर आलम और रणविजय सिंह जैसे लालू के वफादार जब उनका साथ छोड़ सकते है तो आगे किस पर भरोसा किया जा सकता है. कारण ये दोनो की राजनीतिक पूंजी ही लालू प्रसाद है. फिर रघुवंश बाबू का प्रकरण तो सब पोल खोल के ही रख देता है. ऐसे में राजनीतिक जानकार मान रहे है कि कही ना कही तेजस्वी की रणनीति ही राजद को नुकसान पहुचाने में कारगर रही.और अगर समय रहते लालू नही कोई ठोस कदम उठाते है तो क्या नीतीश के तीर से बुझते हुए लालटेन की लौ को बचा पायेगें.
हालांकि अभी बिहार के महागठबंधन के नेताओं की अहम बैठक हुई उसके बाद विधानसभा चुनाव साथ लड़ने का एलान किया है. नेताओं की बातचीत वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए हुई है. यह जानकारी कांग्रेस प्रभारी शक्ति सिंह गोहिल ने दी है.




