

सियासत में अक्लमंद आदमी (सयाने) कभी बातचीत को बंद नहीं करते है अर्थात संबाद चालू रखते है. बात है बिहार दोनों सयाने नेता नीतीश कुमार और लालूप्रसाद यादव की. बात नीतीश की हो लालू की सयानेपन की तो कोई किसी से कम नहीं नजर आता है. तभी तो नीतीश ने लालू को फोन कर उनके मिजाजपुर्सी की. अभी विरोधी खेमों है तो क्या रिश्ता तो छोटे बड़े भाई का है. रिश्ते दोनों निभाना जानते है ये सभी को मालूम है.
उनका लालू को फोन करना था और इधर राजनैतिक गलियारों में एक नई बात चल पड़ी. बीजेपी से परेशान नीतीश कुमार क्या फिर लालू के नजदीक आना चाहते है. कभी सीटों के बंटवारे पर तो कभी बिहार राज्य को विशेष राज्य के पैकेज पर बीजेपी से नाराजगी बनी हुई है. पहले बीजेपी जदयू केवल दो दल थे अब इनकी संख्या भी चार हो गई है. क्योंकि बीजेपी के साथ रालोसपा और लोजपा पहले से है. तो सीटों के बंटवारे पर झगड़ा होना कोई बड़ी बात नहीं है. लेकिन पीएम के खुद कहने के बाबजूद अब बिहार को विशेष पैकेज न मिलना एक सबसे बाद सवाल नीतीश की नाक का बन गया है. बात वही हुई चौवे जी थे छब्बे बनने गए दुवे बनकर लौटे.
अतीत में भी लालू कई मौकों पर काम आए अपने इस छोटे भाई के। फिर जरूरत पड़ेगी तो न क्यों करेंगे? भले उनका बेटा तेजस्वी हाथ धोकर अपने चाचा के पीछे क्यों न पड़ा हो? आखिर उसे उपमुख्यमंत्री पद से हटना पड़ा तो खफा होना स्वाभाविक है. अब तो मुख्यमंत्री पद का ख्वाब देखता होगा. उम्र कम है तो क्या?
कम उम्र में भी प्रफुल्ल कुमार महंत असम के मुख्यमंत्री बने ही थे. तेजस्वी अब क्यों चाहेगा कि उसे चाचा की शरण में जाना पड़े. गठबंधन की नौबत आए भी तो नेतृत्व नीतीश का कतई स्वीकार्य नहीं होगा आहत तेजस्वी को. यह बात अलग है कि अभी तो लालू को ही बेटे की काबीलियत पर भरोसा नहीं होगा. दरअसल भाजपा के साथ रहते हुए भी नीतीश ने अपने तेवर बदले हैं. केंद्र की सरकार ही नहीं भाजपा पर भी दबाव बनाने के लिए कई मांगें उठा कर पैतरेबाजी शुरू कर दी है नीतीश ने. वे चाहते हैं कि भाजपा उनका सम्मान करे.
लोकसभा चुनाव में भी अहमियत कम न हो। फिलहाल तो गठबंधन में सब सामान्य ही दिख रहा है। पर सियासत में विकल्प तो हर कोई सारे ही खुले रखता है. फिर नीतीश तो यों भी दूरदर्शी कहे जाते हैं. समर्थक यही बात सम्मान के साथ कहते हैं तो विरोधी तंज कसते हुए. और हां, अगर दूरदर्शी न होते तो भला पंद्रह साल तक मुख्यमंत्री बने रहने का नया कीर्तिमान कैसे कायम कर पाते. अब देखना है फोन की बातचीत का असर क्या होता है.




