

सोशल मीडिया पर नजर पड़ी तो देखा कि कविवर रामेश्वर प्रशांत नही रहे. जानकर काफी दुख हुआ. वह लम्बें समय से बीमार चल रहे थे और आज उन्होने अंतिम सांस ली.इस खबर की जानकारी मिलते ही स्व प्रशांत की तस्वीरे एक - एक करके सामने आने लगी.
श्यामल शरीर दुबली पतली काया और कंधे में झोला लटकाये साईकिल की सवारी करने वाले प्रशांत जी यो कहे कि पुराने लोकोक्ति को पूरी तरह से चरितार्थ करते थे यानि सरस्वती पुत्रो को दरिद्रता वरदान में मिलती है. लेकिन कभी उन्होनें हिम्मत नही हारी. उनसे वैचारिक समानता नही होने के बावजूद पारिवारिक संबंध रहा . उनकी रचनाये तो क्रांतिकारी थी ही विचार से भी क्रांतिकारी रहे.
उन्हें देखकर कविवर नाागर्जुन और निराला की सूरत भी हर समय सामने आती थी कि भूखे पेट से ही क्रांतिकारी रचना हो सकती है. हालांकि उनके रचनाधर्म को उनके बेटे विनिताभ भी आगे बढा रहे हैं लेकिन दूसरा कोई रामेश्वर प्रशांत होना इस जमाने में संभव नही. भले ही आप हमें छोड़ कर चले गये लेकिन आपकी स्मृतिया सदैव जिंदा रहेगी. विनम्र श्रद्दांजलि.




