पटना

जंगल का युवराज और राजा की दाढ़ी

Shiv Kumar Mishra
30 Oct 2020 11:59 AM GMT
जंगल का युवराज और राजा की दाढ़ी
x

प्रेमकुमार मणि

28 अक्टूबर के अपने बिहार के चुनावी -भाषण में राजद नेता तेजस्वी पर तंज कसते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने जब उन्हें ' जंगल का युवराज ' कहा तब मुझे अटपटा लगा . यह सही है कि प्रधानमंत्री ने अपने स्तर से हमला -जैसा ही कुछ किया होगा . उनके मन में यह भी होगा कि मैंने कोई बहुत गंभीर हमला कर दिया है और तेजस्वी इसे सम्भाल नहीं पाएंगे . मैंने जब सुना तब मेरी प्रतिक्रिया भी यही रही कि प्रधानमंत्री क्या अब इस निचले स्तर पर उतर कर बात करेंगे ? इसलिए शाम में एक पत्रकार ने इस बावत जब मुझ से मेरी प्रतिक्रिया जाननी चाही तब मैंने यही कहा कि ऐसा बोल कर प्रधानमंत्री ने अपना मान गिराया है . उन्होंने अपने भाषण में तेजस्वी को अंडरलाइन (रेखांकित ) कर निश्चित रूप से उसका मान बढ़ाया है .

देर रात तक प्रधानमंत्री का भाषण और चेहरा मेरे ध्यान में बना रहा . प्रधानमंत्री को मवालियों की भाषा में भाषण नहीं देना था . वह गलत कर रहे हैं . उनका चेहरा भी मुझे अटपटा लगा . अपनी बढ़ी हुई दाढ़ी में वह बिहार के एक हिंसक संगठन रणवीर सेना के संस्थापक दिवंगत ब्रम्हेश्वर मुखिया जैसे नजर आने लगे हैं . बिहार में उन्हें इस धज की जरुरत महसूस हुई होगी . उन्हें यह भी लगता होगा कि यह दाढ़ी अधिक बढ़ कर अगले वर्ष तक रवीन्द्रनाथ टैगोर की तरह हो जाएगी . और तब वह बंगाल में टैगोर की प्रतिमूर्ति नजर आएंगे .. जो हो ; फिलहाल उनकी दाढ़ी उन पर बिलकुल अप्रासंगिक और फिजूल लगती है .

लेकिन स्थिर चित्त हो कर उनके भाषण के बारे में जब गहराई से सोचा ,तब उसका एक अलग अर्थ प्रस्फुटित हुआ . इस अर्थ के खुलने के साथ ही अपने प्रधानमंत्री पर थोड़ा गुमान हुआ . यह तो है कि उनकी पढाई -लिखाई चाहे जितनी और जैसी भी हुई है ,इन दिनों वह ' काबिल ' लोगों के साथ रहते हैं और ' सत्संग ' का कुछ असर तो पड़ता ही है .

जंगल का युवराज . कितना खूबसूरत शब्द -विन्यास है . अर्थ भी उतने ही गहरे हैं . जंगल का राजा ,यानी शेर . जंगल का युवराज ,यानि युवा सिंह शावक . इसमें बुरा क्या है ? कितनी खूबसूरत उपमा है ! सचमुच प्रधानमंत्री खूब तैयारी कर के आए थे . निश्चय ही उन्होंने कालिदास का नाटक ' अभिज्ञान शाकुंतलम ' हाल में ही पढ़ा ,या दुहराया है . यह शब्द -युग्म निश्चय ही वहीं से मिला होगा . नाटक के सातवें अंक में दुष्यंत जंगल जाते हैं . शकुंतला को पहचानने से उसने इंकार कर दिया था . इसलिए कि उसे दी गई अंगूठी शकुंतला ने खो दी थी और एक ऋषि के शाप के कारण दुष्यंत अपना अभिज्ञान खो देते हैं . वह शकुंतला को नहीं पहचान पाते . अपमानित शकुंतला ने जाने कितने कष्ट झेले . अंततः वह मारीच ऋषि के आश्रम में आती है और वहाँ अपने बेटे को पालती है . जंगल में आए हुए दुष्यंत की नजर अचानक एक ऐसे बच्चे पर पड़ती है ,जो सिंह -शावकों से खेल रहा है . दुष्यंत का आकर्षण बच्चे के प्रति बढ़ता है . अंततः उसे पता चलता है कि यह तो मेरा ही बेटा है . एक नाटकीय घटनाक्रम के बाद दुष्यंत और शकुंतला का मिलन होता है और जंगल का युवराज भरत पूरे देश का युवराज हो जाता है . उसके नाम पर ही इस देश का नाम भारत होता है .

प्रधानमंत्री जी आप सचमुच महान हो . नीतीश कुमार की जड़ें इतने तरीके से काट सकोगे ,मुझे उम्मीद नहीं थी . आप की होशियारी लाजवाब है . 2010 के भोजभंग का बदला आप इतने निर्मम तरीके से करोगे ,यह नहीं सोचा था . इसे ही कहते हैं दृढ -निश्चयी .

Next Story