
बिहार में नये समीकरण से बिगड़ जायेंगे चुनाव के परिणाम!

वरिष्ठ पत्रकार अशोक मिश्र
कहावत है कि राजनीति में ना कोई किसी का स्थायी दोस्त होता है और ना ही दुश्मन . और खासकर जब नेताओं की कुर्सी चली जाती है तो उसका गम भुलाये नही भूला जाता .शायद यही वजह है कि एक दूसरे के घोर राजनीतिक विरोधी रहे पूर्व विधान सभा अध्यक्ष उदय नारायण चौधरी और जीतन राम मांझी सत्ता में रहते हुए की गयी गलतियों पर पश्चाताप कर रहे हैं और एक दूसरे से इसे भूलने का आग्रह कर रहे हैं.
मौका था पूर्व मंत्री जगलाल चौधरी के जयंती समारोह का .राजधानी पटना के विद्यापति भवन में आयोजित कार्यक्रम में एक लंबे अर्से के बाद उदयनारायण और जीतन राम मांझी एक साथ मंच पर जुटे तो विधान सभा अध्यक्ष रहते हुए जीतन राम मांझी के साथ किये गये सलूक पर उदय नारायण चौधरी ने सफाई दी. श्री चौधरी ने इस पद की लाचारी और मुख्यमंत्री और सत्ता के दबाव में लिया गया फैसला बतलाया तो अपने किये पर मांझी से मांफी भी मांगी और साथ चलने का आग्रह भी किया. उदय नारायण की इस सफाई से जीतन राम मांझी को भी अपने मुख्यमंत्री पद की याद एक बार फिर ताजा हो गयी. बस क्या था मांझी ने मुख्यमंत्री पद से हटाने के लिये पूरी तरह से उदयनारायण को दोषी ठहराते हुए कहा कि अगर उनका साथ होता तो आज बिहार की राजनीतिक तस्वीर दूसरी होती.
मांझी ने उत्तरप्रदेश की घटना का हवाला देते हुए कहा कि किस तरह यू पी विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष बेनी प्रसाद वर्मा ने चार साल तक वहा की सरकार को बचाये रखा. मांझी यहा ही नही रूके उन्होनें कहा कि किस तरह उदय नारायण ने उनके 16 विधायकों को अयोग्य करार दिया . मांझी ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दिये जाने को भी भूल बतलाया और कहा कि अगर कैबिनेट के निर्णय के मुताबिक वे विधानसभा भंग करने की सिफारिश करते तो तस्वीर दूसरी होती.
मांझी ने उदयनारायण के फैसले को ऐतिहासिक भूल करार देते हुए यहा तक कह डाला कि उन्हें इतिहास माफ नही करेगा. लेकिन जीवन के शेष बचे दिनो में दलितों के हक के लिये उदयनारायण के साथ चलने पर सहमति भी दिखायी. हालांकि इस समारोह में कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष अशोक चौधरी , जद यू नेता श्याम रजक , लोजपा प्रदेश अध्यक्ष पशुपालन मंत्री पशुपति कुमार पारस समेत अनेक दलित नेता आमंत्रित थे लेकिन इनमें से कोई मौजूद नही था और कह सकते हैं कि दलित नेताओं को एक मंच पर लाने के उदयनारायण के अभियान को एक झटका है. अब देखना है कि उदयनारायण और जीतनराम मांझी का यह दलित प्रेम क्या रंग दिखाता है. यानि आगे - आगे दखिये होता है क्या.




