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मुस्लिम 'बहनों' को इंसाफ का हवाई जुमला फेकने वाले अब अपने वास्तविक चरित्र में दिखने लगे हैं.सुप्रीम कोर्ट और फिर उसके बाद लोकसभा में मुस्लिम 'बहनों' के प्रति ड्रामाई सहानुभूति की पटकथा की पोल खुल ही गयी है.
जरा इसे गौर से समझिये. सत्तानशीनों ने इन 'बहनों' को तीन तलाक के अभिषाप से मुक्ति दिलाने का बीड़ा उठाया. तीन बार तलाक बोलने वालों को क्रिमिनल घोषित किया. इस क्राइम के बदले तीन साल की सजा मुकर्रर करने का बिल लोकसभा में पास करवा लिया.
राज्यसभा में विपक्षियों ने पूछा- भैया यह बताओ कि जब तलाकपीड़ित इन मुस्लिम ' बहनों' के पति तीन साल जेल में रहेंगे तो इन 'बहनों' की दाल रोटी कैसे चलेगी? आप इन 'बहनों' को इंसाफ व हक दिला रहे हैं तो जरा बताओ कि यह कौन सा इंसाफ है कि इन 'बहनों' के पति को जेल में डाल दो और बहन को भीख मांगने के लिए सड़क पर छोड़ आओ. जब इन 'बहनों' की चिंता है तो जेल में उनके पतियों के रहने के दौरान उन्हें मायके में रखोगे या भीख मंगवाओगे? विपक्ष तो छोड़िये खुद एनडीए के घटक दल टीडीपी ने पूछा अगर इन बहनों की चिंता है तो ईमानदारी से सरकार तीन साल तक इन बहनों और उनके बच्चों की दाल रोटी का इंतजाम करे.
इन कठिन और व्यावहारिक सवालों ने इन 'बहनों' के भाइयों का असली चेहरा बेनकाब कर दिया है. टस से मस नहीं हो रहे. सांप सुंघ गया है. सत्तानशीनों की अब बोलती बंद है. लोकसभा में पास हो चुका तलाक बिल अब राज्यसभा में अटक चुका है. लेकिन मुस्लिम बहनों के ये नये नवेले हमदर्द भाई टस से मस नहीं हो रहे.
हाये रे ऐसे भाई!!! कंश मामा का नाम तो सुन रखा है, पर ऐसे भाइयो को क्या नाम दिया जाये? ऐसे भाई इस ब्रह्माँड पर किसी को ना मिले.इन मामलों पर राजनीति की कुछ तहें खोलता एक लेख आपके लिए है. इनबाक्स में लिंक देख सकते हैं. एक दम हटके है. गारंटीड.
इर्शादुल हक़ वरिष्ठ पत्रकार की कलम से
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