लाइफ स्टाइल

कोई तो दुकान संभालेगा, रिया चलते चलते जेल गयी तो कंगना आ गई

Shiv Kumar Mishra
11 Sep 2020 5:39 PM GMT
कोई तो दुकान संभालेगा, रिया चलते चलते जेल गयी तो कंगना आ गई
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लगभग चालीस दिन तक इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने उसके दम पर अपनी दुकान (क्षमा करें बदहवासी में जबान कंगना की तरह थोड़ी तेज चल गई है) नहीं अपना चैनल चला लिया

रिया चक्रवर्ती उतनी बुरी नहीं थी। लगभग चालीस दिन तक इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने उसके दम पर अपनी दुकान (क्षमा करें बदहवासी में जबान कंगना की तरह थोड़ी तेज चल गई है) नहीं अपना चैनल चला लिया। रिया चलते चलते जेल गयी तो कंगना आ गई। कंगना उतनी नहीं चलेगी हालांकि उसकी स्टार वेल्यू ज्यादा है।

रिया और कंगना का आधारभूत अंतर यह है कि रिया पर्दे के पीछे थी। उसे सामने लाने में इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने केवल अपना दमखम ही नहीं लगाया बल्कि अपनी बची-खुची प्रतिष्ठा भी बेच डाली। यह होती है प्रतिबद्धता। पत्रकारिता में प्रतिबद्धता का बड़ा मोल है। यह विवाद का विषय हो सकता है कि इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की प्रतिबद्धता पत्रकारिता के प्रति है या किसी और के प्रति। इसके उलट प्रिंट मीडिया ने इस दौरान अपनी स्याही बिखरने नहीं दी।

सुशांत की मौत और रिया के तथाकथित षड्यंत्र के समाचार अधिकतर अंदर के पृष्ठों पर ही रहे। समाचार पत्र 'जो दिखता है वो बिकता है' के सिद्धांत पर चलते भी नहीं। टीवी के समाचार चैनल देखने के बाद भी समाचार पत्रों में उनकी तस्दीक की जाती है।काश कि रिया चीनी लड़की होती। तब इलेक्ट्रॉनिक मीडिया को दो खबरों पर निरंतर मेहनत नहीं करनी पड़ती। फिर क्या होता? जैसे चीनी सामान का होता है। रिया भी यूज एंड थ्रो कर दी जाती जैसे अब होगी।

Shiv Kumar Mishra

Shiv Kumar Mishra

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