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भारत के बैंकिंग इतिहास में अभूतपूर्व स्थिति है एक बैंक दूसरे बैंक को दीवालिया घोषित करने को आमादा,बचे है सिर्फ 5 दिन!

भारत के बैंकिंग इतिहास में अभूतपूर्व स्थिति है एक बैंक दूसरे बैंक को दीवालिया घोषित करने को आमादा,बचे है सिर्फ 5 दिन!
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वित्त मंत्रालय को 7 साल बाद होनी वाली दोगुनी अर्थव्यवस्था का तमगा हासिल करने में ज्यादा रुचि है और सिर्फ 4 दिन बाद दीवालिया घोषित होने वाले सार्वजनिक क्षेत्र के दूसरे सबसे बड़े बैंक पीएनबी की कोई फिक्र नही है .
ये भारत के बैंकिंग इतिहास में अभूतपूर्व स्थिति है एक बैंक दूसरे बैंक को दीवालिया घोषित करने को आमादा है सिर्फ 4 दिन बचे हैं और वित्त मंत्रालय कह रहा है कि 2025 तक भारत की अर्थव्यवस्था दोगुनी हो जाएगी, यानी वित्त मंत्रालय को 7 साल बाद होनी वाली दोगुनी अर्थव्यवस्था का तमगा हासिल करने में ज्यादा रुचि है और सिर्फ 4 दिन बाद दीवालिया घोषित होने वाले सार्वजनिक क्षेत्र के दूसरे सबसे बड़े बैंक पीएनबी की कोई फिक्र नही है.
हमे लग रहा है कि हम शेक्सपियर के मशहूर ड्रामे कॉमेडी ऑफ एरर्स का नया संस्करण देख रहे है.
जिस दिन यह पीएनबी घोटाला सामने आया था वित्त मंत्रालय के बैंकिंग विभाग में संयुक्त सचिव लोक रंजन ने कहा था 'यह एक बड़ा मामला नहीं है और ऐसी स्थिति नहीं है जिसे कहा जाए कि हालात काबू में नहीं है' आज जब हालात काबू करने की बात आयी है तो एक नया शगूफा उछाल दिया गया है.
आप शुरुआत से देखिए इस मामले से अब तक कैसे निपटा गया है. सबसे पहले अरुण जेटली जी बोले कि इस महाघोटाले के लिए रेग्युलेटर्स-ऑडिटर्स की अपर्याप्त निगरानी और ढीले बैंक प्रबंधन जिम्मेदार है रेग्युलेटर्स ही नियम तय करते हैं और उन्हें तीसरी आंख हमेशा खुली रखनी चाहिए.
फिर वित्त मंत्रालय के वित्तीय सेवा विभाग ने इस बारे में आरबीआइ को पत्र लिख कर पूछा कि आखिर इतना बड़ा मामला किस तरह से उनकी नजर से बचा रह गया किन वजहों से यह गड़बड़ी हुई है आपने क्या समीक्षा की ? निगरानी तंत्र क्यो फेल हुआ.
फिर बीच मे पीएनबी का वर्जन सामने आया जिसे दबा दिया गया वित्त मंत्रालय को सौंपी गई अपनी रिपोर्ट में पीएनबी ने कहा कि पिछले नौ वर्षों से आडिट नहीं हुआ जिससे यह घोटाला सामने नहीं आ सका। पीएनबी ने अपनी रिपोर्ट में आरबीआइ सहित आडिट एवं नियामक अधिकारियों की चूक की बात कही जिससे जालसाजी बेरोकटोक जारी रही। पीएनबी ने बताया कि पिछला आडिट 31 मार्च 2009 को किया गया था जबकि नियमानुसार आरबीआइ के लिए अनुसूचित बैंकों का हर साल आडिट करना अनिवार्य है.
फिर रिजर्व बैंक के गवर्नर कथा पुराणों की भाषा मे जवाब देने लगे कि आरबीआई के पास पंजाब नेशनल बैंक जैसे घोटालों को रोकने और उनसे निपटने के पर्याप्त अधिकार नहीं हैं और इसलिए वे सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को नियंत्रित नहीं कर सकते, कहते-कहते वे पीएनबी घोटाले को लेकर यहां तक कह गए, "मैं आज यह बताने जा रहा हूं कि आरबीआई में हमें भी बैंकिंग क्षेत्र की धोखाधड़ी और अनियिमितताओं को लेकर गुस्सा आता है और हम आहत और दर्द महसूस करते हैं। यह कुछ कारोबारियों और बैंकों की मिलीभगत से देश के भविष्य को लूटने का काम है."
आपने कभी सर्कस देखा है कभी कोई जिमनास्ट कलाबाजियां खाते हुए रिंग में आता है कभी कोई लड़की रीछ के मुँह को रस्सी से बांधकर लाती है कभी कोई जगलर गेंद उछालते हुए चक्कर लगाता है कभी कोई जोकर हँसते हुए रोने का नाटक करता है.
किन बंदरों के हाथ मे उस्तरा सौप दिया है ?, हम लोगो ने ?
गिरीश मालवीय
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