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बैंकिंग व्यवस्था का ऐसा पतन होगा सपने में भी नहीं सोचा होगा यह सवाल!
शिव कुमार मिश्र
1 April 2018 11:45 AM IST

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भारतीय रिजर्व बेंक के गवर्नर उर्जित पटेल ने RBI को क्या बनाया?
पीएनबी घोटाले पर जब पहली बार रिजर्व बैंक के गवर्नर उर्जित पटेल ने अपनी जुबान खोली थी तब उन्होंने छूटते ही बोला था कि उन्होंने कहा कि सरकारी बैंकों के नियमन को लेकर केंद्रीय बैंक के अधिकार निजी बैंकों के नियमन की तुलना में सीमित हैं.
यह बात बिल्कुल झूठी बात थी इस बात का विश्लेषण बाद में करेंगे, लेकिन चलिए इसे एक बार सच भी मान लिया जाए तो आज आईसीआईसीआई बैंक के मामले में रिजर्व बैंक क्यो भीगी बिल्ली बनकर बैठा हुआ है ? भाई भतीजावाद का इतना स्पष्ट उदाहरण सामने है तब रिजर्व बैंक क्यो अपने नियनम की शक्ति का इस्तेमाल नही कर रहा ? जबकि उर्जित पटेल उसके ढोल गांधीनगर में पीटे जा रहे थे.
किस घटिया तरीके से एक निजी बैंक अपने पूर्व प्रमुख का बचाव कर रहा है और सबसे बढ़कर इस मामले मे देश का रिजर्व बैंक आखिरकार कर क्या रहा है ?
उर्जित पटेल ने गांधीनगर में स्वायत्तता के न होने की बात करते हुए कहा है कि आरबीआई के पास सरकारी बैंकों के नियमन की शक्ति नहीं है.
केंद्र सरकार के मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रह्मण्यम ने इस वक्तव्य की आलोचना करते हुए कहा कि किसी केंद्रीय बैंक की स्वायत्तता सिर्फ कानून से नहीं हासिल हो सकती, बल्कि यह कार्रवाई और अच्छे निर्णय से आती है। उन्होंने कहा कि लगातार हो रहे खराब निर्णय से रिजर्व बैंक की विश्वसनीयता पर असर पड़ सकता है.
अब आते हैं कि क्या वाकई में आरबीआई की सरकारी बैंकों के नियमन की शक्ति सीमित है बिजनेस स्टैंडर्ड में अपने इसी संदर्भ में लिखे गए लेख में देवाशीष बसु एक जगह लिखते हैं.
'इस सार्वजनिक आरोप-प्रत्यारोप के कुछ ही दिन बाद मेरी मुलाकात एक सेवानिवृत्त बैंक चेयरमैन से हुई। उन्होंने मुझसे कहा, 'हकीकत में आरबीआई के पास बहुत अधिक शक्तियां हैं. यह कहना सही नहीं है कि आरबीआई के पास सरकारी बैंकों पर कोई अधिकार ही नहीं है। अगर आरबीआई किसी बैंक चेयरमैन को बुलाकर प्रभार दूसरे को सौंपने को कहता है तो उसे ऐसा करना होगा। कई मामलों में आरबीआई ने मामला वित्त मंत्रालय के हवाले करके बैंक अधिकारियों को हटवाया भी है।'
इस पूर्व बैंक चेयरमैन के पास इस बात का प्रमाण था कि कैसे आरबीआई के एक कार्यकारी निदेशक ने (जो गवर्नर और डिप्टी गवर्नर से नीचे थे) एक राजनीतिक संपर्क वाले बैंक चेयरमैन एम गोपालकृष्णन को आड़े हाथों लिया था। गोपालकृष्णन उस वक्त इंडियन बैंक के चेयरमैन एवं प्रबंध निदेशक थे। कार्यकारी निदेशक ने उनकी गड़बडिय़ों को फाइल में दर्ज करते हुए टिप्पणी की थी कि यह मामला केंद्रीय जांच ब्यूरो को सौंपा जाना चाहिए। गोपालकृष्णन और दो अन्य लोगों को धोखाधड़ी का दोषी माना गया और सन 2013 में उन्हें एक साल के सश्रम कारावास की सजा सुनाई गई'.
गोपालकृष्णन कांग्रेस के वरिष्ठï नेता जीके मूपनार के बहुत करीबी थे। उनके जरिये उनकी करीबी तत्कालीन प्रधानमंत्री पी वी नरसिंह राव तक थी। इसलिए कैबिनेट सचिव से लेकर हर कोई उनको प्रसन्नतापूर्वक सेवा विस्तार देता था। इसके बावजूद आरबीआई के अधिकारी ने जनहित में कदम उठाया और उसे इसका परिणाम भी मिला'.
वैसे अब एक बात तो सत्य है कि उर्जित पटेल ने गवर्नर पद पर रहते हुए रिजर्व बैंक की साख को मिट्टी में मिला दिया है. उर्जित पटेल ने तो रिजर्व बैंक की खूंटे से बंधी गाय से भी गयी बीती हालत कर दी है कभी इसके धोरे बांध देते हैं कभी उसके धोरे बाँधने की बात करते हैं.
बैंकिंग व्यवस्था का ऐसा पतन हो जायेगा कभी सोचा भी नही जा सकता था, समझ नहीं आ रहा कि ये हो क्या रहा है ?
गिरीश मालवीय की कलम से
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