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देश की जीडीपी बड़ी, तो देश का व्यापार घाटा अपने 5 सालो के उच्चतम स्तर पर क्यों?
शिव कुमार मिश्र
8 March 2018 9:26 AM IST

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हर हफ्ते 15 दिनों में किसी वैश्विक एजेंसी से अपनी आर्थिक नीतियों की झूठी वाहवाहियो की रिपोर्ट अखबारों में छाप दी जाती है
नोटबन्दी के बाद से ही देश की अर्थव्यवस्था लगातार गर्त में जाती जा रही है ओर इसी बात को छुपाने के लिए बढ़ती जीडीपी के झूठे आंकड़ों से जनता को भरमाया जाता है.............. हर हफ्ते 15 दिनों में किसी वैश्विक एजेंसी से अपनी आर्थिक नीतियों की झूठी वाहवाहियो की रिपोर्ट अखबारों में छाप दी जाती है और जनता को अच्छे दिन आने का झूठा यकीन दिलाया जाता है
जीडीपी की वृद्धि दर 7.2 प्रतिशत होने का ढ़ोल पीटा जाता है लेकिन किसी को कानो कान खबर नही होने दी जाती कि देश का व्यापार घाटा अपने 5 सालो के उच्चतम स्तर पर पुहंच चुका है.
देश का ट्रेड डेफिसिट यानी व्यापार घाटा जनवरी में 56 महीने के पीक लेवल पर पहुंच गया हैं निर्यात और आयात में अंतर ही व्यापार घाटा कहलाता है.
फेडरेशन ऑफ इंडियन एक्सपोर्ट ऑर्गनाइजेशंस के डायरेक्टर जनरल अजय सहाय बता रहे हैं कि 'ट्रेड डेफिसिट खतरनाक लेवल पर पहुंच गया है। इस रफ्तार से तो यह इस साल 150 अरब डॉलर तक चला जाएगा।'
सहाय जी ने चिंता जताते हुए कहा है कि , 'फिनिश्ड गुड्स के आयात को बढ़ावा दिया जा रहा है क्योंकि पहले जो टैक्स छूट मिलती थी, वह अब खत्म हो गई है। यह फिक्र की बात है।'
आंकड़ों से यह भी साफ होता है कि भारत का आयात बिल पिछले साल के 380.36 अरब डॉलर को पार करने की ओर है। आयात में तेजी लगातार तीसरे महीने में जारी है और जनवरी महीने में आयात 26.10 प्रतिशत बढ़ा है, जो इसके पहले महीने के 21.1 प्रतिशत की तुलना में ज्यादा है। इसकी वजह से चालू वित्त वर्ष के पहले 10 महीने का आयात बिल 379 अरब डॉलर हो गया है।
कारोबारी घाटा 56 माह के उच्ततम स्तर पर पहुंचते हुए जनवरी में 16.3 अरब डॉलर हो गया, जो दिसंबर में 14.9 अरब डॉलर था। यह पिछले साल जनवरी मेंं 9.91 अरब डॉलर था। चालू वित्त वर्ष में जनवरी तक घाटा बढ़कर 131.14 अरब डॉलर हो गया है, जो पिछले साल की समान अवधि मेंं 114.9 अरब डॉलर था.
नोटबन्दी के बाद निर्यात के मोर्चे पर देश का कमजोर प्रदर्शन दक्षिण एशिया के अन्य देशों से एकदम विरोधाभासी है। वे निर्यात के बल पर ही तरक्की कर रहे हैं। वियतनाम को रिकॉर्ड वृद्धि हासिल हो रही है। विडंबना यह है कि 2.5 लाख करोड़ डॉलर की भारतीय अर्थव्यवस्था की तुलना में 22,300 करोड़ डॉलर की अर्थव्यवस्था वाले वियतनाम की हालत में यह बेहतरी नीतिगत सुधारों की बदौलत आ रही है लेकिन हमने मोदीजी के राज में अर्थव्यवस्था में सुधार के नाम पर जो नीति अपनाई है उससे देश का निर्यात बहुत बुरी तरह से प्रभावित हुआ है.
आइये देखते हैं कि चीन से भारत के व्यापार के क्या हाल है आंकड़ों बताते हैं एक्सपोर्ट के हिसाब से भारत चीन के लिये दुनिया का 24वां बड़ा देश है, जो चीन को अपने प्रोडक्ट एक्सपोर्ट करता है। वहीं, चीन के लिए भारत 7 वां सबसे बड़ा एक्सपोर्ट डेस्टिनेशन बन चुका है। यानी भारत को सामान बेचने के मामले में चीन काफी आगे हैं.
2017 में भारत से चीने में एक्सपोर्ट 39% बढ़ा, जो अब 1 लाख करोड़ से ज्यादा हो गया है। वहीं, इस दौरान भारत के इंपोर्ट भी 14.5% की बढ़ोत्तरी दर्ज की गई यानी आयात से डेढ़ गुना ज्यादा चीन ने माल बेचा है वह भी तब जब चाइनीज लड़ियों का बहिष्कार अपने चरम पर था पता नही यह आंकड़े देखकर स्वदेशी आंदोलन वाले कौन से बिल में छुप जाते हैं
भारत और चीन के बीच बीते एक साल में कारोबार करीब 19% बढ़कर 5.5 लाख करोड़ रुपए तक पहुंच गया, साफ दिख रहा है कि नोटबन्दी और जीएसटी की मार से भारत के उद्योग धंधे जो पिटे है उसकी पूर्ति चीन से बेतहाशा आयात बढ़ाकर की गयी है
चीन जैसे बड़े देश को तो छोड़िए कनाडा के साथ हमारा व्यापार संतुलन गड़बड़ाया हुआ है कनाडा तक ने भारत में अपना निर्यात करीब 1000 मिलियन डॉलर बढ़ा लिया है.
मोदीजी की आर्थिक नीतियों से देश का व्यापार उद्योग अपनी अंतिम साँसे ले रहा है जिसकी परिणिति बढ़ते हुए एनपीए में देखने को मिल रही हैं, कल रात आती अपुष्ट खबरे के अनुसार वीडियोकॉन के मालिक वेणुगोपाल धूत भी 44000 करोड़ रुपये का कर्ज डुबोकर देश से फरार हो गए हैं, 2019 तक तो पता नही क्या क्या देखना है.
लेखक गिरीश मालवीय
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