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कभी-कभी सरकारी स्तर पर ऐसे निर्णय होते हैं जिन्हेें देखकर आश्चर्य होता है। अभी रेल मंत्रालय ने ऑनलाइन टिकट बुकिंग को लेकर कुछ बदलाव किए हैं।
अवधेश कुमार
कभी-कभी सरकारी स्तर पर ऐसे निर्णय होते हैं जिन्हेें देखकर आश्चर्य होता है। अभी रेल मंत्रालय ने ऑनलाइन टिकट बुकिंग को लेकर कुछ बदलाव किए हैं। कहा गया है कि यह दलालों के हस्तक्षेप को रोकने और आम लोगों की परेशानी को बचाने की दिशा में उठाया गया कदम है। अगर आप नए नियमों को देखें तो दलालों पर नकेल कसेगा या नहीं यह कहना मुश्किल है, पर नियमित यात्रा करने वाले आम यात्रियों के लिए मुश्किल अवश्य पैदा हो जाएगी।
नए नियम के अनुसार तत्काल श्रेणी में एक आइडी से लॉगिन करने पर सिर्फ एक ही टिकट की बुकिंग होगी। दूसरे टिकट के लिए फिर से लॉगिन करनी होगी। एक लॉगिन से एक दिन में दो टिकट और एक महीने में छह टिकट से अधिक की बुकिंग नहीं होगी। इसके अलावा, एडवांस रिजर्वेंशन का ओपनिंग टिकट भी अब दो से अधिक बुक नहीं कर सकते हैं। एक यूजर एक बार में दो विंडो से अपनी आइडी को ऑपरेट नहीं कर सकेगा। एक बार में दो से अधिक तत्काल टिकट की बुकिंग नहीं होगी। एक आइडी पर महीने में छह से अधिक टिकट बुक नहीं किए जा सकते हैं। हालांकि आधार लिंक आइडी से महीने में 12 टिकट तक बुक करने की छूट दी गई है। लेकिन इसमें कम से कम एक यात्री का आधार वेरीफाइड होना आवश्यक है।
कई बार हमें कई जगहों की यात्रा एक साथ करनी होती है तो उसके अनुसार हम अपनी कई टिकटों की बुकिंग कराते हैं। कोई जरुरी नहीं कि ऐसा करने वाला दलाल ही हो। एक दिन में दो टिकट से ज्यादा होगा ही नहीं। यह कैसा फरमान है? इसी तरह महीने भर में केवल छः टिकट। विचित्र है। अगर हमें महीना में 20 जगह जाना हो तो क्या करेंगे? बहुत लोगों की तो नौकरी या व्यापार ही यात्राओं पर निर्भर है। ज्यादातर आम यात्रियों का जो आइडी है वह आधार से जुड़ा नहीं है। कारण, इसे अनिवार्य नहीं बनाया गया था। देश भर में कुछ लोगों का रोजगार टिकट बुकिंग से ही चलता है। उन्हें एजेंट कहते हैं। उनके रोजगार पर भी इसका असर होगा।
पता नहीं ऐसे नियम बनाने वाले इसके दूसरे पक्ष पर भी सोचते हैं या नहीं। यह सब नौकरशाहों पर अत्यधिक निर्भरता को दर्शाता है। नौकरशाह ऐसे ही उटपटांग नियम बनाकर ये दिखाने की कोशिश करते हैं कि उन्होंने भ्रष्टाचार को रोकने के लिए उपाय कर दिए हैं। लेकिन मंत्री कैसे इसे हरि झंडी दे देते हैं। इसका अर्थ ही मंत्री भी जमीनी वास्तविकता पर काम करने की जगह नौकरशाहों पर ज्यादा निर्भर हैं।
यह निहायत ही अव्यावहारिक और जन विरोधी बदलाव है। मेरा मानना है कि दलालों को रोकने के लिए दूसरे तरह की कानूनी कार्रवाई का रास्ता अपनाया जाए। दलाली में भी ज्यादातर रेलवे कर्मचारियों की मिली भगत से होता है। दलालों की जिस तरह से व्यापक छानबीन कर कार्रवाई करनी चाहिए वैसा हो इन चार सालों में सरकार ने किया नहीं और अब ऐसे बेतुके नियम लेकर सामने आ गए हैं।
मेरी मांग है इस नए नियम को तत्काल वापस लिया जाए। दलालों की पहचान और उनकी पकड़-धकड़ के लिए सघन अभियान चलाया जाए।
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