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मीडिया चैनलो को दी उर्जित पटेल की सुपारी, जानिए क्यों बनाया जा रहा है उसे खलनायक?
गिरीश मालवीय
सारे मीडिया चैनलो को उर्जित पटेल की सुपारी दे दी गयी है, अब उसे खलनायक बताया जा रहा है. अरुण जेटली कह रहे है उनको बाँट रहे थे हमको डांट रहे हो. उर्जित का गुनाह यह है कि उसने शाही हुक्म को ना मानने की नाफरमानी की है तो जिल्ले इलाही ने सारे मीडिया को कड़े लहजे में ताक़ीद दी है है पूरी कोशिश करो की डूबती अर्थव्यवस्था का भांडा उर्जित पटेल पर फोड़ दिया जाए.
किसी भी संस्था के लिए स्वायत्तता की बात करना गुनाहे अजीम है, ओर रिजर्व बैंक यह गुनाह कर गुजरा है यह बात फैलाई जा रही है कि मोदी जी कह रहे है कि एक बार मिल तो ले........ लेकिन विश्वस्त सूत्र बता रहे है कि उर्जित पटेल अपनी बात पहले ही सरकार के सामने रख चुके है ओर इसीलिए अब सेक्शन 7 रूपी ब्रम्हास्त्र का प्रयोग किया गया है उर्जित पटेल की भलाई इसी में है कि इस ब्रम्हास्त्र को देखते हुए प्रणाम करते हुए रिजर्व बैंक छोड़ कर निकल जाए.
वैसे उर्जित पटेल के तीन साल के गवर्नर का कार्यकाल अगले साल सितंबर में ख़त्म हो रहा है लेकिन अब लग रहा है कि मोदी सरकार इतना इंतजार भी नही करेगी. कहते है कि मोदी जी जब कुपित हो गए जब डिप्टी गवर्नर विरल आचार्य ने सारी पोल पट्टी खोल के रख दी लेकिन उस भाषण में विरल आचार्य ने एक बेहद महत्वपूर्ण बात कही थी उन्होंने इशारे इशारे में बता दिया कि सरकार क्या चाहती है अर्जेंटीना का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि अर्जेंटीना के केंद्रीय बैंक के गवर्नर को जमा पूंजी सरकार को देने के लिए मज़बूर किया गया.
आचार्य ने कहा था, ''जो सरकारें केंद्रीय बैंकों की स्वतंत्रता का सम्मान नहीं करती हैं वहां के बाज़ार तत्काल या बाद में भारी संकट में फंस जाते हैं. अर्थव्यवस्था सुलगने लगती है और अहम संस्थाओं की भूमिका खोखली हो जाती है.'' अर्जेंटीना में 2010 में ठीक ऐसा ही हुआ था. अर्जेंटीना का उदाहरण देकर विरल आचार्य ने साफ साफ संकेत दिए है कि अर्थव्यवस्था का पूरा जहाज डूबने वाला है और कल जो वित्त मंत्रालय ने कहा है कि विचार विमर्श को सार्वजनिक नही किया जाना चाहिए वह इस बात का प्रमाण है कि यही असली बात है जो मोदी सरकार को अंदर तक बेध गयी है.
मोदी सरकार ने उर्जित पटेल की नकेल कसने के लिए आरबीआई बोर्ड में एस गुरुमूर्ति को मोदी सरकार ने नामित निदेशक बनाया है, गुरुमूर्ति आरएसएस से जुड़े रहे हैं बताया जा रहा है कि पिछले हफ़्ते आरबीआई बोर्ड की जो बैठक हुई थी उसमें गुरुमूर्ति उर्जित पटेल और उनकी टीम पर भड़क गए थे.
लेकिन अब ऐसे एक या दो इश्यू नही है अब सरकार और आरबीआई के बीच बहुत सारे विवाद सतह पर दिखने लगे है सबसे बड़ा विवाद तो 12 फरवरी का वह सर्कुलर था जिसमे एक दिन का डिफॉल्ट होने पर कम्पनियों को दीवालिया करने की बात थी इसकी जद में पावर कम्पनियां आएगी जिससे अडानी ओर रिलायन्स ओर टाटा ग्रुप बुरी तरह से प्रभावित होने वाले थे वैसे भंडा तो सितंबर के आखिरी हफ़्ते में फूट जाता जब इस सर्कुलर की 6 महीने की अवधि समाप्त होने वाली थी लेकिन सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के जरिए इसे बचा लिया.
रिजर्व बैंक ने आधे सरकारी बैंकों को एनपीए बढ़ने के कारण प्रॉम्ट करेक्टिव एक्शन के तहत रखा हुआ है इस कारण इन बैंकों पर क़र्ज देने पर भी पाबंदी लगा दी है. पीसीए के तहत अगर बैंकों को कर्ज देना है, तो सरकार को पहले उन्हें रिकैपिटलाइज करना पड़ेगा लेकिन सरकार के पास पैसा नहीं है यह बात मोदी सरकार के लिए कोढ़ में खाज का काम कर रहीं है.
इस साल आरबीआई ने सरकार को महज 30 हजार करोड़ रुपये का लाभांश दिया, जबकि बजट 66 हजार करोड़ रुपये का था, इसके कारण केंद्रीय वित्त मंत्री को केंद्रीय बैंक से और भुगतान की मांग करनी पड़ी, लेकिन उसने ऐसा करने से इनकार कर दिया, आरबीआई के नचिकेत मोर सरकार द्वारा मांगे गए अधिक लाभांश का खुलकर विरोध कर रहे थे लेकिन उन्हें कार्यकाल खत्म होने से पहले ही निकाल दिया यह भी तात्कालिक विवाद की एक वजह बना.
पिछले दिनों पेमेंट रेगुलेटर पर सरकार ने आरबीआई को पूरी तरह से बायपास करने की कोशिश की आरबीआई को यह क़दम भी बहुत नागवार गुजरा है. वैसे सबसे बड़ा संकट तो NBFC कम्पनियों का है आईएलएंडएफएस डिफॉल्ट की वजह से गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनी (एनबीएफसी) सेक्टर में नकदी का भारी संकट पैदा हो गया है अगर यह सेक्टर बैठ गया तो पूरा मार्केट ही बैठ जाएगा क्योकि बैंकों का लगभग 4 लाख करोड़ रुपया इस सेक्टर में फंसा हुआ है म्यूचुअल फंडों द्वारा करीब 40 फीसदी डेट इन्वेस्टमेंट एनबीएफसी कंपनियों में किया गया है जो जल्द ही इन्हें वापस करना है, इसलिए रिजर्व बैंक पर बाजार में बड़ी मात्रा में नकदी झोंकने का दबाव बनाया जा रहा है और रिजर्व बैंक इससे इनकार कर रहा है यही आज के इस विवाद की सबसे बड़ी वजह है.
(लेखक आर्थिक जगत के जानकार है )