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तीन राज्यों में जीत कर कांग्रेस इस छोटी सी भूल से बुरी तरह हार गई लोकसभा चुनाव!
अभिषेक श्रीवास्तव
चुनाव का मौसम था। अस्सी पर पप्पू की कुख्यात अड़ी पर हम लोग बैठे चाय का इंतजार कर रहे थे। एक बुज़ुर्ग बाहर हाथ में कांग्रेस की 'न्याय योजना' का पर्चा लिए बांच रहे थे। साथी विश्व दीपक थोड़ी देर उसे देखते रहे, फिर पूछे कि ये क्या है।
बुज़ुर्ग ने तड़ से जवाब दिया जिसका आशय कुछ यूं था कि- मने अब तक अन्याय हो रहा था जो अब न्याय होगा? यह मतदान से कुछ दिन पहले और प्रियंका गांधी की रैली से दो दिन पहले की बात है। उसी दिन समझ में आ गया था कि जो बात अभिजीत बनर्जी और राहुल गांधी नहीं पकड़ सके, उसे जनता ने नरेटी से पकड़ लिया है। 'न्याय योजना' का पर्चा परोक्ष रूप से इस बात की स्वीकारोक्ति के रूप में लिया गया कि कांग्रेस ने "सत्तर" साल अन्याय किया है और खुद इस बात को मान रही है।
कहने का मतलब कि हर आर्थिक नुस्खा राजनीति के धरातल पर कामयाब हो जाए, ज़रूरी नहीं है। ज्यां द्रेज के नरेगा ने 2009 का आम चुनाव जितवा दिया लेकिन न्याय योजना काम नहीं अाई। हां, योजना के शिल्पकार को नोबेल ज़रूर मिल गया। यह नोबेल इस बात की ताकीद करता है कि चुनावी राजनीति बीते दस साल में विशुद्ध मनिपुलेशन का खेल बन चुकी है। बेहतर से बेहतर थिअरी भी पांचसाला संसदीय चुनावों के शिकंजे में फंसे लोकतंत्र की जान अब नहीं बचा सकती। पुरस्कार भले पा जाए।
लेकिन कुल मिलाकर कहना यह है की कांग्रेस का न्याय कांग्रेस को ही ले डूबा।