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जेएनयू में पूर्व छात्र सुनील की याद में सभा थी, उमड़ी भीड़ पता होता और तैयारी करके जाता!
30 नवंबर को जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय गया था। एक पूर्व छात्र सुनील की याद में सभा थी। सुनील अर्थशास्त्र में एम ए थे। उसके बाद पढ़ाई का विचार छोड़ जीवन के क्षेत्र में लौट गए और प्रयोग करने लगे। वे चाहते तो इस विषय में दुनिया के हर श्रेष्ठ विश्वविद्यालय में पढ़ने से लेकर पढ़ाने के अवसर का लाभ उठा सकते थे। लेकिन चले गए होशंगाबाद। जहां तवा नदी पर बन रहे बांध से आदिवासी जन विस्थापित हो गए थे।
सुनील ने सभी को संगठित किया और जलाशय में मछली मारने के अधिकार की लड़ाई शुरू कर दी। अंत में सरकार को मछली पालन का अधिकार देना पड़ा। तवा जलाशय का यह प्रयोग काफी चर्चित हुआ था क्योंकि आदिवासी मछली पकड़ना नहीं जानते थे। कम से समय में ट्रेनिंग देकर उन्हें इतना सक्षम कर दिया कि साल का राजस्व सवा करोड़ तक पहुंच गया। अर्थशास्त्र का यह प्रतिभाशाली छात्र अपने विस्थापितों को आर्थिक गतिविधियों की मुख्यधारा में ले आया। लेकिन बाद में सरकार को लगा कि इससे आदिवासियों में चेतना आ रही है तो इस सफल प्रोजेक्ट को बंद कर दिया।
यह सुनील के गांधीवादी समाजवादी जीवन का छोटा सा परिचय है। उनका जीवन बताता है कि अच्छी शिक्षा से लैस कोई प्रतिभाशाली युवक गांवों की तरफ लौटता है तो सकारात्मक बदलाव कर देता है। बहुत मुश्किल है सभी के लिए कर पाना लेकिन जो कर गए उनके लिए बहुत आसान भी था। आज भी बहुत से छात्र गांवों या पिछड़े इलाके में काम करने जाते हैं। संख्या कम है मगर नीयत वही है जो सुनील की थी। कैंसर के कारण 54 साल ही उम्र मिली। अच्छी बात है कि उनके मित्र उन्हें याद रखना चाहते हैं। अपने सीमित संसाधनों के दम पर उनकी स्मृति में हर साल एक व्याख्यान कराते हैं।
जे एन यू के छात्रों का शुक्रिया। शनिवार को मुझे सुनने आए। प्रतिभाशाली छात्रों के बीच बोलने की अपनी सकुचाहट होती है। इतनी जगह बोल आया हूं लेकिन जे एन यू जाते समय बार बार ये ख़्याल धक्का मार रहा था कि जे एन यू में क्या बोलेंगे। लेकिन सभागार के बाहर से ही जो प्यार मिला वह अभिभूत करने वाला था। सभागार में जगह नहीं थी फिर भी खड़े रहे और कार्यक्रम शुरू होने के बहुत पहले से वहां पहुंच गए थे। बहुत से छात्र सभागार के बाहर शीत में खड़े होकर सुनते रहे। यह जानकर मेरा सर झुक गया। मुझे इसका बिल्कुल अंदाज़ा नहीं था। वर्ना और अच्छी तैयारी कर जाता। मेरी आदत है। जब तक तैयारी नहीं हो जाती है मुझे बोलने में आनंद नहीं आता है। लेकिन आप सभी ने मेरा उत्साह बढ़ा दिया। हर दौर में जे एन यू बरकार रहे। जे एन यू को बदनाम करने की कोशिशें चलती रहेंगी लेकिन इस यूनिवर्सिटी ने वाकई छात्रों के बीच एक सपना दिखाया है कि यूनिवर्सिटी जे एन यू जैसी होनी चाहिए। फिर से शुक्रिया दोस्तों।
रवीश कुमार
रविश कुमार :पांच दिसम्बर 1974 को जन्में एक भारतीय टीवी एंकर,लेखक और पत्रकार है.जो भारतीय राजनीति और समाज से संबंधित विषयों को व्याप्ति किया है। उन्होंने एनडीटीवी इंडिया पर वरिष्ठ कार्यकारी संपादक है, हिंदी समाचार चैनल एनडीटीवी समाचार नेटवर्क और होस्ट्स के चैनल के प्रमुख कार्य दिवस सहित कार्यक्रमों की एक संख्या के प्राइम टाइम शो,हम लोग और रविश की रिपोर्ट को देखते है. २०१४ लोकसभा चुनाव के दौरान, उन्होंने राय और उप-शहरी और ग्रामीण जीवन के पहलुओं जो टेलीविजन-आधारित नेटवर्क खबर में ज्यादा ध्यान प्राप्त नहीं करते हैं पर प्रकाश डाला जमीन पर लोगों की जरूरतों के बारे में कई उत्तर भारतीय राज्यों में व्यापक क्षेत्र साक्षात्कार किया था।वह बिहार के पूर्व चंपारन जिले के मोतीहारी में हुआ। वह लोयोला हाई स्कूल, पटना, पर अध्ययन किया और पर बाद में उन्होंने अपने उच्च अध्ययन के लिए करने के लिए दिल्ली ले जाया गया। उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक उपाधि प्राप्त की और भारतीय जन संचार संस्थान से पत्रकारिता में स्नातकोत्तर डिप्लोमा प्राप्त किया।