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भारत रत्न शहनाई उस्ताद बिस्मिल्लाह खां के अंतिम जन्मदिन की तस्वीर - हमारा प्रयास और हम।
शिवनाथ झा
सन 2006 में, जिस दिन उस्ताद अंतिम सांस लिए, आँखें बंद किये, शहनाई की धुन शांत हुई, देश की आवादी क़रीबा 117 करोड़ थी। लेकिन उनके 'मृत्युलेख' (ओबिचुरी) में सिर्फ हमारा प्रयास और हम थे - हमें फक्र है, गुमान नहीं। आपको नमन उस्ताद। प्रयास जारी है शहीदों के वंशजों की खोज हेतु, उन्हें एक सम्मानित जीवन देने के लिए।
उस दिन मंगलवार था। तारीख 2006 का 21 मार्च । सुबह-सवेरे स्नान-ध्यान कर गोदौलिया चौक पर फल खरीद कर उसे बंधवा रहा था। एक रिक्शा वाले महाशय को रोक रखा था। उसे पता था कि मुझे कहाँ जाना है। गोदौलिया चौक से लंका की ओर जाने वाली सड़क की दाहिने कोने पर चाय की चुस्की भी ले रहा था। इन कार्यों से निवृत होकर रिक्शा पर सवार होकर अपने तीसरी कक्षा में पढ़ने वाले पुत्र और उन्हें विद्यालय में पढ़ाने वाली शिक्षिका पत्नी के साथ सराय हरहा की ओर उन्मुख था। सुबह-सवेरे बनारस की सड़कों पर भीड़ नहीं थी। जो दिख रहे थे वे सभी बाबा विश्वनाथ के दरवार में अपनी उपस्थिति दर्ज करने जा रहे थे। सड़क पर दक्षिण भारत के लोग, विशेषकर महिलाएं अधिक दिख रही थी। मन में भारत के उस रत्न के लिए अगाढ़ प्रेम लिए अपनी पत्नी से बात करते, पुत्र का प्रश्नोत्तर देते आगे बढ़ रहा था।
तभी मुंबई से मेरे अजीज फ़ारुख़ शेख साहब का नंबर मोबाईल पर ट्रिंग-ट्रिंग किया। फोन उठाते ही फ़ारुख़ साहब पहले आदाव झा साहव बोले और उसी सांस में यह भी पूछे कि आप सभी उस्ताद साहब के घर जब पहुंचेंगे मुझे उस्ताद साहब से अवश्य बात करा देंगे। उनसे बात होना मेरे लिए जीवन का मकसद मिलना जैसा है। उन्हें विश्वास दिलाते फोन रखा। अब तक हम उस्ताद बिस्मिल्लाह खान के घर की ओर जाने वाली संकीर्ण गली की नुक्कड़ पर पहुँच गए थे। फिर पैदल चलते उनके घर पहुंचे। उस्ताद अपने मकान के तीसरी मंजिल पर एक छोटे से कमरे में बैठे थे। उनकी शहनाई उनके तकिये के पास थी। वे हम सबों की प्रतीक्षा कर रहे थे। खास कर दरभंगा के बहु की, मेरी पत्नी की। दरभंगा की मिट्टी, महाराजा साहब का मुख, उनकी बोली, राजाबहादुर साहब का स्नेह उस दिन भी उन्हें उसी तरह याद था, वे अपने होठों से दोहरा रहे थे, जैसे कल की ही बात हो।
विगत दिनों बनारस ब्लास्ट के कारण उस दिन यानी 21 मार्च को हम उस्ताद बिस्मिल्लाह खां का जन्मदिन नहीं मना रहे थे। खां साहब का कहना था कि आज नहीं, आगे मनाएंगे। फिर 25 मार्च 2006 को 91 वां जन्मदिन का जश्न निश्चित हुआ। मोनोग्राफ ऑन उस्ताद बिस्मिल्लाह खां की सौ प्रतियां भी ले गया था। बनारस में 91 किलो का केक बनाया गया। तीन किलो चांदी की शहनाई ले गया था उस्ताद के सम्मानार्थ जिसे वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल के सौजन्य से बनवाया गया था दिल्ली के चांदनी चौक से।
बनारस उस दिन पूरे बनारस सराय के लोग सराय हरहा के उस ऐतिहासिक मकान में उपस्थित थे। उस्ताद ने कहा भी: "देखो !!! कोई छूटे नहीं, सबों को केक जरूर मिले।।मेरे जन्मदिन का केक है।" फिर मोनोग्राफ ऑन उस्ताद बिस्मिल्लाह खान का लोकार्पण किये। उपस्थित लोगों में बांटे। मेरी पत्नी का हाथ पकड़कर एक इक्षा जाहिर किये कि "वे दरभंगा के महाराजा के पोखर में एक बार फिर डुबकी लगाकर नहाना चाहते हैं। महाराजा का महल देखना चाहते थे। मरने से पहले दिल्ली के इण्डिया गेट पर शहीदों को अपनी शहनाई की धुन से आमंत्रित कर उन्हें पुनः उसी धुन से विसर्जित करना चाहते हैं।" यह सभी इच्छाएं हमें पूरी करनी थी और हमने शुरुआत इण्डिया गेट से की।
परन्तु ना उस्ताद जानते थे और ना हम कि बाबा विश्वनाथ की नगरी में, बिस्मिल्लाह खां के उस घर में भारत रत्न उस्ताद अपना अंतिम जन्मदिन मना रहे हैं। बाबा विश्वनाथ, जिनकी सेवा वे जीवन पर्यन्त करते रहे, उन्हें अपने पास बुलाने के लिए तारीख मुकर्रर कर दिए हैं। उस्ताद के जन्म की तारीख (21 मार्च) से ठीक 152 दिन बाद तिरपनवाँ दिन, यानी 21 अगस्त , 2006 को। उस दिन सोमवार था । उस दिन भी हम बनारस के हेरिटेज अस्पताल में सपरिवार उपस्थित थे। भारतरत्न की मृत्यु के बाद भारतवर्ष का प्रतिष्ठित समाचार एजेंसी प्रेस ट्रस्ट ऑफ़ इण्डिया ने उस्ताद का मृत्युलेख रिलीज किया। सन 2006 में भारत की आवादी तक़रीबन 117 करोड़ थी और वस्ताद बिस्मिल्लाह खान के उस मृत्युलेख में हमारा प्रयास और हम अकेला भारतीय थे जिसे पीटीआई ने शब्दवद्ध किया था।
आपको नमन उस्ताद -
प्रयास जारी है शहीदों के वंशजों की खोज हेतु, उन्हें एक सम्मानित जीवन देने के लिए।