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- एक गुरुदक्षिणा
बाल मजदूरी से बाल अधिकारों के पैरोकार बनने तक अनिल का सफर बस यह बताता है कि अगर आपमें हिम्मत है और मेहनत करने का माद्दा है तो कोई भी अपने जीवन की दशा-दिशा बदल सकता है। उत्तर प्रदेश के रहने वाले अनिल गरीबी में पैदा हुए। लाचारी ऐसी थी जीवन की कि खेलने कूदने की उम्र में उन्हें पेट भरने के लिए मेहनत मजूरी शुरू करनी पड़ी। कच्ची उम्र में ही सुबह छह बजे से बिना रुके हाड़तोड़ मेहनत और खाने के नाम पर कभी रूखा सूखा तो कभी वो भी नहीं मिलता। वो जान नहीं पाया कि बचपन क्या होता है। उसके हिस्से में आई बस कमरतोड़ मेहनत और ऊपर से मालिक की डांट फटकार। छोटी सी उम्र में जीवन व्यर्थ लगने लगा।
लेकिन तभी किस्मत पलटी और उसका मुक्तिदाता बना बचपन बचाओ आंदोलन (बीबीए)। बीबीए की स्थापना नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित बाल अधिकार कार्यकर्ता कैलाश सत्यार्थी ने की है। बीबीए ने एक छापे में अनिल को बाल मजदूरी के चंगुल से आजाद कराया। उसकी मदद से अनिल की उम्मीदों को पंख लग गए। बाल आश्रय केंद्र में उसे स्कूली शिक्षा का अवसर मिला और पढ़ाई पूरी करने के बाद कुछ और करने के बजाय उसने केएससीएफ के साथ जुड़ने का विकल्प चुना। अनिल इस बारे में स्पष्ट था कि बचपन बचाओ आंदोलन ने उसे बाल मजदूरी से मुक्ति दिलाई और अब वह जीवन में कुछ करने लायक हुआ है तो कुछ सार्थक काम करेगा और वह है बाल मजदूरी में फंसे उसके जैसे बच्चों को बचाने का। अपनी पढ़ाई से और उससे भी ज्यादा जीवन के अनुभवों से वह बाल मजदूरी के दुष्परिणामों और बच्चों से जुड़े मुद्दों से भली भांति परिचित था। उसने पहले अपने गांव में फिर धीरे-धीरे दूसरे गांवों में बाल मजदूरी के खिलाफ लोगों को जागरूक करना शुरू किया और अंतत: केएससीएफ के सरवाइवर लेड इंटेलीजेंस नेटवर्क का हिस्सा बन गया। इस नेटवर्क में वो युवा शामिल किए जाते हैं जो खुद पहले बाल मजदूर रह चुके होते हैं। इस नेटवर्क का काम है बच्चों को बहला फुसला कर बंधुआ मजदूरी या अन्य घृणित कार्यों में धकेलने वाले गिरोहों के बारे में जानकारी जुटाना और फिर उस जानकारी का बच्चों को छुड़ाने में इस्तेमाल करना।
कभी बाल मजदूर रहा यह युवा आज रोजाना 50 गांवों का दौरा करता है। सुबह नौ बजे से उसका स्थानीय लोगों और संगठनों के साथ भेंट मुलाकातों और बैठकों का सिलसिला शुरू हो जाता है। इन मुलाकातों से उसे स्थानीय जनता के हाल चाल की जानकारी और खास तौर से बच्चों के बारे में पुख्ता खबर रखने में मदद मिलती है। अनिल की ये खुफिया जानकारियां बहुत काम की हैं। भेंट मुलाकातों में पता चल जाता है कि कौन बच्चा बाल मजदूरी के दलदल में फंसा हुआ है, कौन सा परिवार या बच्चा ट्रैफिकर के निशाने पर हो सकता है। साथ ही ट्रैफिकिंग में कौन से लोग शामिल हैं और कहां बाल विवाह जैसी घटनाएं हो रही हैं? पहले से जानकारी के कारण जरूरी कदम उठा कर इसे रोकने में मदद मिलती है। अपनी हिम्मत, हौसले, बोलचाल और अनथक मेहनत से अनिल आज औरों से अलग दिखता है। वह इन सारे कार्यों का श्रेय बचपन बचाओ आंदोलन और केएससीएफ को देता है। यदि बीबीए ने उसे बाल मजदूरी से मुक्ति नहीं दिलाई होती तो शायद वह अब भी उसी हाल में होता। इन संगठनों ने उसे आपदा को अवसर में बदलना सिखाया और समझाया कि किस तरह वह अपने कड़वे अनुभवों का इस्तेमाल दूसरों का जीवन बचाने और बदलने में कर सकता है। अनिल की कहानी हमें बताती है कि किस तरह शिक्षा और पैरोकारी हमें गरीबी और शोषण के दुष्चक्र से बाहर निकाल सकते हैं।
अनिल सभी को बस एक सलाह देता है, “हमेशा सतर्क रहें और बच्चों के खिलाफ कोई अपराध होते देंखें तो तत्काल संबंधित प्राधिकारियों को इसकी सूचना दें। किसी का बचपन छीन लेने से जघन्य कोई अपराध नहीं हो सकता।“
जीवन में तमाम दुश्वारियां झेलने के बावजूद अनिल भविष्य के प्रति बहुत आशावादी है और दूसरों के जीवन में एक सकारात्मक बदलाव का वाहक बनना चाहता है। खाली समय में आम युवाओं की तरह वह भी गाने सुनता है, टीवी देखता है, लेकिन बच्चों पर कोई संकट आए तो दिन रात एक कर देता है। बच्चों के लिए एक बेहतर दुनिया की आकांक्षा और इसके लिए सब कुछ झोंक देना ही वो चीज है जो अनिल को औरों से अलग करती है। वह अपने गांव देहात के लोगों के लिए हीरो है। लेकिन अनिल कहता है कि उसने बस थोड़ी सी चीजें नोबेल शांति पुरस्कार कैलाश सत्यार्थी के जीवन से सीखी हैं। बचपन बचाने का मतलब देश व समाज का भविष्य बचाना है। उन्होंने मुझे एक अंधेरे जीवन से निकाल कर रोशनी दी। अब यही मेरी गुरुदक्षिणा है।