हमसे जुड़ें

विनोबा भावे का एक किस्सा जब वह लखनऊ आए

Desk Editor
27 Sep 2021 10:47 AM GMT
विनोबा भावे का एक किस्सा जब वह लखनऊ आए
x
विनोबा हर तरह के धर्मों के अध्ययन के बारे में अपने अनुभव के बारे में लिखते हैं, 'मैंने जितनी श्रद्धा से हिंदू-धर्मग्रंथों का अध्ययन किया, उतनी ही श्रद्धा से कुरान का भी किया। गीता पाठ करते समय मेरी आँखों में अश्रु भर जाते हैं, वैसे ही कुरान और बाइबिल का पाठ करते समय भी होता है। क्योंकि सबमें मूल तत्व का ही वर्णन है

हाफिज किदवई

विनोबा भावे का एक क़िस्सा हमसे भी सुन लीजिये,कोई नही सुनाएगा।एक बार कहीं जाने के लिए अपने साथियों के साथ विनोबा लखनऊ आए।लखनऊ में बस स्टैण्ड तक पहुँचे।बस में ज़बरदस्त भीड़ थी।लोग तले ऊपर चढ़े जा रहे थे।कंडक्टर के पास उनके एक साथी ने कहा की हम आठ दस लोग हैं, हमे भी जाना है।कंडक्टर ने कहा यहाँ कहाँ जगह है, अगली बस से जाओ।उसके बहुत कहने पर भी कंडक्टर ने चढ़ने ही नही दिया।

उनके साथ एक बूढ़ा आदमी भी था,जिनको मामूली सा भाँप,उन्होंने बस में बिना चढ़ाए,झिड़क कर उतार दिया ।बस आगे बढ़ गई।बस बाराबंकी पहुँचती की उससे पहले कंडक्टर सस्पेंड हो गए ।पता चला उन्होंने विनोबा भावे को बस में चढ़ने नही दिया ।अब लगे इधर उधर की सिफारिश में मगर कोई रास्ता नही।महीने भर के बाद किसी ने सुझाया की विनोबा ही तुम्हे बहाल कर सकते हैं,उन्ही के पाँव पकड़ लो।बेचारे विनोबा के पास पहुँचे और माफ़ी तलाफ़ी की,आखिर विनोबा पसीज गए और जनाब वापिस नौकरी पर लौटे।

यह क़िस्सा मैंने खुद उन कंडक्टर साहब से सुना था।सुनाते में वह बताते रहे की इतना सादा इंसान,गन्दी सफ़ेद चादर,बेतरतीब सफ़ेद पीली दाढ़ी,हमे लगा कोई होगा गाँव सांव का मगर भय्या उस दिन से कान पकड़ा की कोई हो,उसे झिड़कना नही चाहिए मगर वह इतने ही सीधे थे तो हमे सस्पेंड नही करवाना चाहिए था।डाँट लेते,मार लेते।अब इन्हें कौन बताए वह अहिंसक विनोबा थे।खैर विनोबा की ज़िन्दगी खुद में एक सन्देश है,बहुत कुछ सीखने के लिए।गाँधी जी की छाँव जिनपर पड़ी,उनमे विनोबा ही तो थे जो लम्बे वक़्त तक उन्हें जीते रहे।विनोबा भावे के बहुत से किस्से याद हैं मगर करें क्या,यह मन मानने को तैयार ही नहींकी लोग अभी भी इन्हें या इनके जैसे किरदारों को पढ़ना चाहते हैं।आज विनोबा का जन्मदिन है।

आजका दिन गुज़रते गुज़रते एक क़िस्सा और पढ़ते चलें ,विनोबा ने वैसे तो ज़्यादातर धर्म ग्रन्थो का अध्ययन किया और उसे अपने शब्दों में लिखा।उन्ही में से कुरान पर उनके सार को खूब अहमियत मिली।उनके कुरान सार के बारे में मौलाना मूसदी ने कहा कि पचीस मौलवी दस साल बैठकर और दसों लाख खर्च करके भी जो काम नहीं कर पाते ऐसा यह काम हुआ है। जब विनोबा जी कुरान का अध्ययन कर रहे थे, जब यह बात गांधीजी को पता चली। तो उन्होंने कहा कि हममें से किसी को तो यह करना ही चाहिए था। विनोबा कर रहा है, यह आनंद का विषय है। कुरान के अध्ययन के बारे में विनोबा लिखते हैं उन्होंने सन् 1939 में कुरान शरीफ का अंग्रेजी तर्जुमा देखा था, लेकिन उससे संतोष नहीं हुआ। विनोबाजी ने अरबी भाषा सीखकर पूरा कुरान सात बार पढ़ा। कम-से-कम 20 साल उसका अध्ययन किया।इतना दूसरे मज़हब को कौन पढ़ता है।

विनोबा हर तरह के धर्मों के अध्ययन के बारे में अपने अनुभव के बारे में लिखते हैं, 'मैंने जितनी श्रद्धा से हिंदू-धर्मग्रंथों का अध्ययन किया, उतनी ही श्रद्धा से कुरान का भी किया। गीता पाठ करते समय मेरी आँखों में अश्रु भर जाते हैं, वैसे ही कुरान और बाइबिल का पाठ करते समय भी होता है। क्योंकि सबमें मूल तत्व का ही वर्णन है।खैर विनोबा तो सब रास्ते दिखा ही गए हैं।आज उनके जन्मदिन पर जिसे वह रास्ता दिखाई दे वह बढ़ चले,बाकि लोगों का क्या है,वह मस्त रहें,मौज करें क्योंकि विनोबा ,उनके गुरु और साथी नीव तो डाल कर इमारत खड़ी कर गए।हम चाहे उसे चमकाए या खण्डहर बनाएँ।


Next Story