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सोमनाथ दा का जाना समाजवादी विचारधारा का एक और सूर्यास्त

सोमनाथ दा का जाना समाजवादी विचारधारा का एक और सूर्यास्त
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पंश्चिम बंगाल के बर्धमान , जाधवपुर और बोलपुर से 10 बार सांसद रह चुके, 1996 में सर्वश्रेष्ठ सांसद का खिताब पा चुके और चौदहवी लोकसभा 2004 से 2009 में अध्यक्ष रहकर समूचे देश की संसदीय प्रणाली में अपनी अमिट छाप छोड़ चुके सोमनाथ चटर्जी अब हमारे बीच नही रहे.समूचे जीवन सामजवाद की चादर लपेटे सोमनाथ दा को 2008 में यू पी ए की मनमोहन सिंह की सरकार से समर्थन वापस लेने के बाद सीपीएम नेतृत्व द्वारा पद छोड़ने का निर्देश मिला था. लेकिन सोमनाथ दा ने स्पीकर को किसी पार्टी का व्यक्ति नही मानते हुए इस्तीफा देने से साफ इंकार कर दिया. जिस वजह से पार्टी ने उनके शरीर पर से लाल चादर हटा लिया लेकिन सोमनाथ दा ने अंत तक दिल में लाल झंडे को समाये रखा.


उनके अध्यक्षीय काल में लोकसभा के कार्रवायी का सीधा प्रसारण शुरू किया गया और शून्य काल की कार्रवायी प्रसारित की गयी. कई मुद्दो पर विधायका और न्यापालिका की टकराहट भी सामने देखने को मिली लेकिन कानून के प्रखर जानकार सोमनाथ दा ने सुप्रीम कोर्ट को भी आईना दिखाया . शायद यही वजह रही कि पार्टी द्वारा निकाले जाने के बाद लग भग सभी दलों के नेता और समर्थको की सहानुभूति सोमनाथ दा के साथ रही. लोकसभा अध्यक्ष से हटने के बाद भी वे जीवन के अंतिम सांस तक समाजवादी विचारधारा से जुड़े रहे.


भले ही सोमनाथ दा रूह के रूप में हमारे बीच नही दिख रहे लेकिन उन्होने अपना पूरा शरीर दान देकर यह संदेश देने की कोशिश की है वे सोम यानि गरीबो सच्चे हिमायती थे. सावन की सोमवारी को सोमनाथ का जाना सचमुच आश्चर्जनक हे कि उनके मातापिता ने जो उनका नामकरण किया उस पर सही मायने में औघर शिव की काया थी.सोमनाथ दा के जाने से पूरा देश मर्माहत है और हम कह सकते है कि वामपंथी विचार धारा का एक और महत्वपूर्ण हस्ताक्षर का आज अस्त हो गया है. ऐसे दादा को भला कौन लाल सलाम नही कहेगा.

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अशोक कुमार मिश्र

अशोक कुमार मिश्र

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