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- टूटे हुए सपनों की कौन...
टूटे हुए सपनों की कौन सुने सिसकी, "अटल हैं आप" हमेशा "अटल रहेंगे आप".....!
टूटे हुए सपनों की कौन सुने सिसकी
अन्तर की चीर व्यथा पलकों पर ठिठकी
हार नहीं मानूंगा, रार नहीं ठानूंगा,
काल के कपाल पे लिखता मिटाता हूं
गीत नया गाता हूं...!!
अपने लंबे राजनीतिक सफर में कई उतार-चढ़ाव देखने वाले वाजपेयी का हिंदी प्रेम जगजाहिर है... संयुक्त राष्ट्र के मंच पर हिंदी का जादू सर चढ़ कर बोला जब वाजपेयी की वाणी वहां मुखर हुई थी... एक-एक शब्द का चुन-चुन के उपयोग करने वाले वाजपेयी प्रतिकूल परिस्थितियों को अपने अनुकूल बनाने का हौसला रखते थे...!!
अपनी चिरपरिचित मुस्कुराहट, सौम्यता, शब्दों की विरासत और कई खट्टी-मीठी यादों को पीछे छोड़ कर पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी अनंत यात्रा पर निकल गए... अटल सत्य सामने है... कल और आज की राजनीति भी अलग-अलग है... इनमें नजर नहीं आएगा अजातशत्रु का अटल चेहरा... उन्हीं के शब्दों में…!!
सूर्य तो फिर भी उगेगा,
धूप तो फिर भी खिलेगी,
लेकिन मेरी बगीची की
हरी-हरी दूब पर,
ओस की बूंद
हर मौसम में नहीं मिलेगी...!!
टूटे हुए सपनों की कौन सुने सिसकी.. अन्तर की चीर व्यथा पलकों पर ठिठकी.. हार नहीं मानूंगा, रार नहीं ठानूंगा, काल के कपाल पे लिखता मिटाता हूं...!
गीत नया गाता हूं...!!
अपने लंबे राजनीतिक सफर में कई उतार-चढ़ाव देखने वाले वाजपेयी का हिंदी प्रेम जगजाहिर है... संयुक्त राष्ट्र के मंच पर हिंदी का जादू सर चढ़ कर बोला जब वाजपेयी की वाणी वहां मुखर हुई थी... एक-एक शब्द का चुन-चुन के उपयोग करने वाले वाजपेयी प्रतिकूल परिस्थितियों को अपने अनुकूल बनाने का हौसला रखते थे... दोस्तों अपनी चिरपरिचित मुस्कुराहट, सौम्यता, शब्दों की विरासत और कई खट्टी-मीठी यादों को पीछे छोड़ कर पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी अनंत यात्रा पर निकल गए... अटल सत्य सामने है... कल और आज की राजनीति भी अलग-अलग है... इनमें नजर नहीं आएगा अजातशत्रु का अटल चेहरा... उन्हीं के शब्दों में… सूर्य तो फिर भी उगेगा, धूप तो फिर भी खिलेगी, लेकिन मेरी बगीची की... हरी-हरी दूब पर, ओस की बूंद हर मौसम में नहीं मिलेगी...!!
"मौत की उम्र क्या है? दो पल भी नहीं,
ज़िन्दगी सिलसिला, आज कल की नहीं।
मैं जी भर जिया, मैं मन से मरूँ,
लौटकर आऊँगा, कूच से क्यों डरूँ...?"
आपने ख़ुद को समझा लिया और दुनिया के नाम यह सन्देश छोड़ गए पर हम इतने ज्ञानी नहीं कि ख़ुद को समझा पाएं आपका सिर्फ होना काफी था पर न होना यह एहसास बहुत अंदर तक हिला देने वाला है किसी अपने बड़े का साया सर से जाना क्या होता है देश महसूस कर रहा है और यह कभी खत्म न होने वाला एहसास है आपकी यादें इस मुल्क के जेहन में हमेशा रहेंगी क्योंकि "अटल हैं आप"
"हर चुनौती से दो हाथ मैंने किये,
आँधियों में जलाए हैं बुझते दिये।
आज झकझोरता तेज़ तूफान है,
नाव भँवरों की बाँहों में मेहमान है।
पार पाने का कायम मगर हौसला,
देख तेवर तूफाँ का, तेवरी तन गई।
मौत से ठन गई...।"
आपके बारे में सब बाते कर रहे हैं, अपने-अपने तरीके से कर रहे हैं, मैं सुबह आपकी तबियत की ख़बर से लेकर आपकी ख़बर तक कुछ नहीं बोला......कुछ भी नहीं.....पर भीतर एक तूफ़ान उठा हुआ था बुरी तरह जो आपके जाने के कुछ देर बाद अपने चरम पर आ गया, मुझे कुछ नहीं आता, कुछ और कर नहीं सकता इसलिए लिखकर दिल हल्का करने की कोशिश करता हूँ अक्सर तब जब उदास होता हूँ, ऐसा करना काम आता है लेकिन यह भी काम नहीं आ रहा आज.....आपके जाने के बाद यह उतना बुरा भी नहीं है क्योंकि ऐसे ही तो हमारी यादों, हमारे दिल में हमेशा "अटल रहेंगे आप"
कुंवर सी.पी . सिंह जर्नलिस्ट