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सोशल मीडिया में ब्राह्मणों को गाली देने की अवाध परम्परा: आखिर सभी मिलकर ब्राह्मणों को गाली क्यों देते हैं!

Shiv Kumar Mishra
29 Nov 2021 10:06 AM GMT
सोशल मीडिया में ब्राह्मणों को गाली देने की अवाध परम्परा: आखिर सभी मिलकर ब्राह्मणों को गाली क्यों देते हैं!
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सोशल मीडिया में ब्राह्मणों को गाली देने की अवाध परम्परा के बीच कुछ ऐसे तथ्य भी आ जाते हैं जो यह बताते हैं कि आखिर सभी मिलकर ब्राह्मणों को गाली क्यों देते हैं!

ऐसा लगता है कि "ब्राह्मण" सिर्फ अपने ज्ञान बजह से निशाने पर रहा है।आज उसका ज्ञान क्षीण हो रहा है।इसलिये वह निरन्तर पतनशील है।लेकिन योग्य ब्राह्मण आज भी सम्मानित है।

एक तथ्य और है !जो लोग ब्राह्मण को गाली देने के लिये रोज नए शव्द खोजते रहते हैं वे मौका मिलने पर खुद ब्राह्मण बनना चाहते हैं।

खैर अभी आप पंडित विनोद शर्मा दिल्ली बाले की ओर से भेजा हुआ यह प्रसंग पढिये!

हाँ कुछ लोगों के मन में मुझे गाली देने की आकांक्षा बलवती हो सकती है! वे शौक से ऐसा कर सकते हैं लेकिन इस जगह पर नही!क्योंकि ब्राह्मण कुल में पैदा जरूर हुआ हूँ लेकिन मुझमें ऐसा कोई लक्षण नही है! ब्राह्मणों में परशुराम मेरे आदर्श रहे हैं।और हां मैं किसी का उधार नही रखता!तत्काल लौटाता हूं।वह भी देने बाले के घर जाकर!

इसलिए इस प्रसंग को एक किस्से की तरह पढिये!समझ में आ जाये तो ठीक!वरना जय बजरंगी!

महर्षि भृगु का परिचय संक्षेप में!!!!!!

आज मैं उस ऋषि का परिचय कराना चाहूँगा जिनका नाम ऋग्वेद के दुसरे श्लोक में आया है। ऋग्वेद के दुसरे श्लोक में दो ऋषियों का नाम आया है । पहला भृगु ऋषि तथा दूसरा अंगीरा ऋषि । अंगीरा ऋषि भृगु जी के बड़े भाई माने जाते है । लेकिन भृगु ऋषि की ख्याति ज्यादा है।

भृगु ऋषि की एक ज्योतिष की पुस्तक है जो सबसे पुरानी ज्योतिष ग्रन्थ मानी जाती है । भारत में भृगु जी की ज्योतिष ग्रन्थ " भृगु संहिता " विख्यात है । पुराणो में भी भृगु ऋषि की बहुत सी कथा आती है जिनमे एक कथा बहुत ही विख्यात है ।

पौराणिक कथा है कि एक बार मुनियों की इच्छा यह जानने की हुई कि ब्रह्मा,विष्णु तथा शिव- इन तीनों देवों में सर्वश्रेष्ठ कौन है? परंतु ऐसे महान देवों की परीक्षा की सामर्थ्य कौन करे? उसी मुनि मण्डली में महर्षि भृगु भी विद्यमान थे। सभी मुनियों की दृष्टि महर्षि भृगु पर जाकर टिक गयी, क्योंकि वे महर्षि के बुद्धिबल, कौशल, असीम सामर्थ्य तथा अध्यात्म-मन्त्रज्ञान से सुपरिचित थे।

अब तो भृगु त्रिदेवों के परीक्षक बन गये। सर्वप्रथम भृगु अपने पिता ब्रह्मा के पास गये और उन्हें प्रणाम नहीं किया, मर्यादा का उल्लंघन देखकर ब्रह्मा रुष्ट हो गये। भृगु ने देखा कि इनमें क्रोध आदि का प्रवेश है, अत: वे वहाँ से लौट आये और महादेव के पास जा पहुँचे, किंतु वहाँ भी महर्षि भृगु को संतोष न हुआ।

अब वे विष्णु के पास गये। देखा कि भगवान नारायण शेष शय्या पर शयन कर रहे हैं और माता लक्ष्मी उनकी चरण सेवा में निरत हैं। नि:शंक भाव से भगवान के समीप जाकर महामुनि ने उनके वक्ष:स्थल पर तीव्र वेग से लात मारी, पर यह क्या? भगवान जाग पड़े और मुस्कराने लगे। भृगु जी ने देखा कि यह तो क्रोध का अवसर था, परीक्षा के लिये मैंने ऐसे दारूण कर्म किया था, लेकिन यहाँ तो कुछ भी असर नहीं है।

भगवान नारायण ने प्रसन्न्तापूर्वक मुनि को प्रणाम किया और उनके चरण को धीरे-धीरे अपना मधुर स्पर्श देते हुए वे कहने लगे- 'मुनिवर! कहीं आपके पैर में चोट तो नहीं लगी? ब्राह्मणदेवताआपने मुझ पर बड़ी कृपा की। आज आपका यह चरण-चिह्न मेरे वक्ष:स्थल पर सदा के लिये अंकित हो जायगा।' भगवान विष्णु की ऐसी विशाल सहृदयता देखकर भृगु जी ने यह निश्चय किया कि देवों के देव देवेन्द्र नारायण ही हैं।

ये महर्षि भृगु ब्रह्मा जी के नौ मानस पुत्रों में अन्यतम हैं। एक प्रजापति भी हैं और सप्तर्षियों में इनकी गणना है।सुप्रसिद्ध महर्षिच्यवनइन्हीं के पुत्र हैं प्रजापति दक्षकी कन्या ख्याति देवी को महर्षि भृगु ने पत्नी रूप में स्वीकार किया, जिनसे इनकी पुत्र-पौत्र परम्परा का विस्तार हुआ। . महर्षि भृगु के वंशज 'भार्गव' कहलाते हैं। महर्षि भृगु तथा उनके वंशधर अनेक मन्त्रों के दृष्टा हैं।

ऋग्वेद में उल्लेख आया है कि कवि उशना (शुक्राचार्य) भार्गव कहलाते हैं। कवि उशना भी वैदिक मन्त्रद्रष्टा ऋषि हैं। ऋग्वेद के नवम मण्डल के 47 से 49 तथा 75 से 79 तक के सूक्तों के ऋषि भृगु पुत्र उशना ही है। इसी प्रकार भार्गव वेन, सोमाहुति, स्यूमरश्मि, भार्गव, आर्वि आदि भृगुवंशी ऋषि अनेक मन्त्रों के द्रष्टा ऋषि हैं। ऋग्वेद में पूर्वोक्त वर्णित महर्षि भृगु की कथा तो प्राप्त नहीं होती, किंतु इनका तथा इनके वंशधरों का मन्त्रद्रष्टा ऋषियों के रूप में ख्यापन हुआ है। यह सब महर्षि भृगु की महिमा का ही विस्तार है।

भूत, भविष्य एवं वर्तमान बताने वाले भृगुजी विश्व के अद्वितीय ज्योतिषी माने जाते हैं। उनके सदृश 'न भूतो न भविष्यति' कोई हो सकेगा।भविष्य में जन्म लेने वाले मानवों के जीवन का लेखा-जोखा भृगुजी ने हजारों वर्ष पूर्व देदिया था अपनी अभूतपूर्व कृति 'भृगु संहिता' में।

उनका कमाल देखकर हम चमत्कृत हो जाते हैं कि ज्योतिषी कैसे पति की कुंडली के आधार पर उसकी पत्नी का भविष्य कथन पूर्ण शुद्धता से कर देते थे।

'भृगु संहिता' में प्रश्नकर्ता के प्रश्नों से तथा जन्मकुंडली प्रस्तुत करने पर उनसे पूरी शुद्धता से उसका भूत, भविष्य एवं वर्तमान का विवरण दे सकते हैं।चलचित्र की भांति ज्योतिषी के सामने ऐसे प्रश्नकर्ता एवं कुंडली प्रस्तुत करने वाले के भूत, वर्तमान एवं भावी जीवन के चित्र आ जाते हैं। भृगु संहिता विश्व के ज्योतिष ज्ञान का आदि ग्रंथ है।

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