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प्रचारकों की सरकार और प्रचारक मीडिया...

Desk Editor
3 Sep 2021 5:24 AM GMT
प्रचारकों की सरकार और प्रचारक मीडिया...
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प्रधानमंत्री को संरचना परियोजनाओं की चिन्ता तब है जब सैकड़ों पद खाली हैं, लाखों बेरोजगार हैं और भयंकर मंदी चल रही है

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा है कि अदालती फैसलों के कारण अटकी संरचना परियोजनाओं की सूची बनाई जाए। उन्होंने विभागों से कहा है कि समय सीमा निकल जाने के कारण हुए नुकसान का आकलन भी किया जाए। वैसे तो इस खबर में कोई बुराई नहीं है पर यह उस देश के प्रधानसेवक की प्राथमिकता है, अदालती फैसले पर प्रतिक्रिया भी, जहां सैकड़ों लोग ऑक्सीजन बिना अस्पतालों में मर गए। सरकार ऑक्सीजन की व्यवस्था करने का प्रचार करती रही और बाद में कह दिया कि कोई आंकड़ा नहीं है। यह खबर अंदर होने की सूचना टाइम्स ने पहले पन्ने पर छापी है।

यह उस देश का हाल है, जहां अक्सर आंकड़े नहीं मिलते हैं और पीएम केयर्स सरकारी नहीं है, आरटीआई से बाहर है। पीएम केयर्स के धन से खरीदे गए वेंटीलेटर घटिया निकले पर किसी कार्रवाई की खबर नहीं है। प्रधानमंत्री को संरचना परियोजनाओं की चिन्ता तब है जब सैकड़ों पद खाली हैं, लाखों बेरोजगार हैं और भयंकर मंदी चल रही है, पेट्रोलियम पदार्थों पर 50 प्रतिशत से ज्यादा टैक्स वसूला जा रहा है और बीड़ी सिगरेट जैसे सिन (पाप करने जैसे) उत्पादों पर 75 प्रतिशत टैक्स की सिफारिश के बावजूद टैक्स 50 प्रतिशत ही है। महंगाई चरम पर है और दिल्ली दंगों की जांच के लिए पुलिस की खिंचाई हो चुकी है।

(टाइम्स ऑफ इंडिया, 3 सितंबर 2021)

इसी अखबार में आज ही पेज 11 पर खबर है, "मेरे जैसे पायलट अच्छे नेता बनते हैं : राहुल गांधी"। इस खबर में राहुल गांधी ने विमान दुर्घटना में मारे गए अपने चाचा और राजनेता संजय गांधी तथा पेशेवर पायलट व पिता राजीव गांधी की तुलना की है। इसमें कोई दो राय नहीं है कि राजीव गांधी पेशेवर पायलट होते हुए भी अच्छे नेता बने। राहुल गांधी ने बताया है कि क्यों संजय गांधी दुर्घटना में मारे गए। आप उनसे असहमत हो सकते हैं पर यह एक विवेकपूर्ण तर्क है। इसकी तुलना, मेरा कोई नहीं है इसलिए मैं भ्रष्टाचार किसके लिए करूंगा से कीजिए। अब आप याद कीजिए कि बाद वाले बयान को कितना प्रचार मिला है और राहुल गांधी के इस बयान को कितना महत्व दिया गया है। प्रचारकों का यह खेल ब्रांडिंग कहलाता है। आप ब्रांड नाम वाले नेता का काम देखिए और पप्पू की बातें सुनिए फिर समझिए कि देशहित कहां फंसा हुआ है।

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