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जातिगत जनगणना देश में परमाणु विस्फोट होगा जानिए कैसे?
जाति भारत की विशिष्टता है। जाति भारत से अलग हुए पाकिस्तान, बांग्लादेश के अलावा एक समय तक हिंदू राष्ट्र रहे नेपाल, और उन सब देशों में पाई जाती है, जहां जहां खुद को हिंदू कहने वाले रहते हैं।
ब्रिटिश सरकार ने भारत के लोगों को लोगों को अनेकों देशों में मजदूरों के रूप में भेजा। इन सभी देशों में जाति भी है वहां के लोगों में जातिगत भेदभाव भी। अफ्रीका, कनाडा, ब्रिटेन, इटली, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया जहां भी भारतीय पहुंचे, वहां जातिगत बहिष्कार और भेदभाव दोनों हैं। पहले केवल भारत को ही जाति से जूझना पड़ता था, अब अनेकों विकसित देशों को भी जाति से लड़ना पड़ रहा है।
जाति की जड़ें भारत में ही हैं। जाति, जो वर्ण व्यवस्था की पैदाइश है, न केवल भारतीय समाज में ऊंच नीच की जननी है, अपितु भारत में तमाम तरह की बुराइयों की जड़ है। इसने व्यक्ति की काबिलियत को रौंदा है। यह समाज में प्रत्येक व्यक्ति के सम्मान की स्थापना के खिलाफ अपमान की पाठशाला है। यहां तक कि यह इंसानी योनि से पैदा व्यक्ति को कमतर और दो कौड़ी के धागे के संस्कार वाले व्यक्ति को उच्चतर मानती है। डॉक्टर अंबेडकर के अनुसार इसने व्यक्ति और समाज की एक ऐसी बिल्डिंग बनाई है, जिसमें व्यक्ति जिस मंजिल में पैदा होगा, उसी में मरेगा।
जाति व्यवस्था ने सौ में से दस व्यक्तियों को जन्म के आधार पर बौद्धिक, राजनीति और व्यापार के योग्य मान कर शेष 90 लोगों को इनसे वंचित करने का काम किया है।
तो सौ में से दस इन व्यक्तियों के हित क्या हैं?
सौ में से दस इन लोगों की सत्ता, सम्मान, कारोबार और समृद्धि का कारण शेष 90 लोगों को अज्ञानी मायाजाल में फंसाए रखना है। उनका यह मायाजाल लोकतांत्रिक सत्ता संतुलन की वजह से नहीं है। देश की न्यायप्रणाली पर उनका कब्जा उनकी बौद्धिक क्षमता की वजह से नहीं है। उनका राजनीति और इसके नेतृत्व पर एकाधिकार का कारण उनकी राजनीतिक क्षमता या उनका बहुसंख्या में होना नहीं है।
असल में इनकी संख्या बहुत ही कम है। जैसे दलित केवल अपने बूते पर एक या दो से अधिक संसदीय सीटें नहीं जीत सकते, वैसे ही यह भी केवल अपनी जाति के बूते पर एक भी संसदीय या विधान सभा सीट नहीं जीत सकते।
इनके हित देश के दलित, आदिवासी और पिछड़ी जातियों के सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक हितों से अलग हैं। सरकार किसी की भी हो, सौ में से दस वाले यह लोग हमेशा सरकार के हिस्सा रहे।
एक समय में भारत लोकतंत्रों का देश था। इन्होंने अपने वर्णगत और जातिगत स्वार्थों के लिए इन लोकतंत्रों को तबाह किया। दलितों और पिछड़ी जातियों ने जब साम्राज्य बनाए, तो इन्होंने पुष्यमित्र शुंग के रूप में साम्राज्यों की वारिसों की हत्या की। यह कश्मीर पर हुए आक्रमण में विधर्मी विदेशी आक्रांताओं के आगे नतमस्तक हुए और कश्मीर को विधर्मी को सौंप खुद भी उनके धर्म में चले गए। इन्होंने ही भागते हुए बाबर को बुलाया, अपनी बहन बेटियों उसे सौंपी और शासन-प्रशासन के हिस्से बने।
इतिहास गवाह है कि प्लासी के युद्ध के असली मीर जाफर या जयचंदों में भी यही थे। इन्होंने ही जंग में पीठ दिखाई और भारतीयों पर जुल्म करने वालों के यही दलाल थे। अंग्रेजों के फर्माबादार यही लोग अंग्रजों के हाथों किसानों, दस्तकारों और भारतीय बाजार को तबाह किसने करवाया? भारत के विभाजन की नींव या असली बीज किसने बोया? क्या द्विराष्ट्र का सिद्धांत हिंदू महासभा ने नहीं दिया? ब्रिटिश सरकार जब भारत से है, क्या तब शासन, प्रशासन, न्यायपालिका और सेना पर इन लोगों का एकाधिकार नहीं था।
जातिवार जनगणना से क्या होगा?
जातिगत जनगणना देश में परमाणु विस्फोट है। इसकी चमक, जानकारी और असलियत से सौ में से दस का पूरी तरह भंडाफोड़ हो जायेगा। पिछले कई दशकों में सरकार की नीतियों ने किसको पढ़ाया? किसको रोजगार दिया? किसको डॉक्टर - इंजीनियर या मैनेजर बनाया?.पंचायत से पार्लियामेंट तक राजनीति पर किसका कब्जा है? कौन कच्चे मकानों में और किसके मकान पक्के हैं? जातिवार जनगणना के बाद पास कृषि जमीन, आवास, बिजनेस, उद्योग या व्यापार केवल सौ में से दस वालों तक सीमित नहीं रहेगा। यह सौ में नब्बे वालों को भी पता चल जायेगा। 90 वालों को पता चल जायेगा कि उनके राज्यों और केंद्र में कितने अधिकारी, क्लर्क, ओवरसियर, सेक्शन ऑफिसर्स, ज्वाइंट सेक्रेटरी या चपरासी हैं। देश के शासन, प्रशासन और साधन पर सौ में दस वालों का पूरा कब्जा है, जिसका जातिवार जनगणना पूरा भंडाफोड़ कर देगी।
क्या सत्ता, प्रशासन, न्यायपालिका, मंत्रिमंडल, और नीति निर्धारण मशीनरी पर काबिज यह लोग अपना भांडा फोड़ने देंगे?
बात समझ में आए, तो संघर्ष कीजिए। सौ में से केवल यह दस ही लोग हैं। 90 लोग तो हम ही हैं। जीत हमारी सुनिश्चित है। बस रणभेरी के देरी है। बजाइए और जोर से बजाइए।