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कुछ के लिए कोरोना है ग्रहण, तो कुछ के लिए अवसर, बाजार और कारोबार में उलट पुलट हुए सारे समीकरण

कुछ के लिए कोरोना है ग्रहण, तो कुछ के लिए अवसर, बाजार और कारोबार में उलट पुलट हुए सारे समीकरण
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अभी इसी पोस्ट पर कमेंट सेक्शन में मैं एक खबर का लिंक दूंगा, जिसमें बताया गया है कि लखनऊ में दुकानें तो खुलने लगीं लेकिन ग्राहक कोरोना के डर से नदारद हैं। दरअसल, कोरोना जब तक रहेगा, यही डर लगभग कारोबार के लिए बिक्री पर ग्रहण बनकर मंडराता रहेगा। यही नहीं, सरकार ने भले ही ज्यादातर शहरों के बाजारों को फिर से खोल कर कारोबार को दोबारा पटरी पर लाने की कोशिश की हो मगर फिर से लोगों के बाहर निकलने से कोरोना के केसेज बढ़ने और उसके चलते सरकार के लिए फिर से बाजार बंद कर देने की मजबूरी का खतरा भी टला नहीं है।

यानी कोरोना जब तक वैक्सीन या किसी दवा से काबू में नहीं आता, कारोबार खुलने पर भी न चलने या दोबारा बंद हो जाने की सर पर लटकती दुधारी तलवार के बीच किए जाएंगे। जाहिर है, इससे ज्यादातर सेक्टर के कारोबार में बिक्री और आय को गहरा झटका लग सकता है। कोई बड़ी बात नहीं कि हर सेक्टर के छोटे और मझौले कारोबारी ही नहीं बल्कि बड़ी बड़ी कंपनियां और बैंक आदि संस्थान बिक्री और आय के घटने से धराशाई हो जाएं।

ज्यादातर सेक्टर के लिए ऐसे हालात में कारोबार के लिए अगले चंद महीने अस्तित्व की लड़ाई साबित होने जा रहे हैं। लेकिन कुछ सेक्टर तो यह लड़ाई लड़ने लायक भी नहीं बचे हैं। जैसे कि मॉल/ मल्टीप्लेक्स, बड़े स्टोर/ शोरूम, होटेल्स/ रिजॉर्ट, फिल्म/टीवी इंडस्ट्री, एविएशन इंडस्ट्री या अन्य परिवहन उद्योग आदि। क्योंकि जब तक कोरोना का खौफ रहेगा, ये सेक्टर ही सरकार के लिए कोरोना फैलाने वाले सबसे बड़े केंद्र के रूप नजर आते रहेंगे। लिहाजा या तो पूरी तरह से खुल नहीं सकेंगे या फिर खुलने के बावजूद ग्राहकों/ कमाई को तरसेंगे।

इसी तरह, आने वाले कुछ महीनों तक स्कूल और धार्मिक गतिविधियों पर भी सरकारी लगाम तो कसी ही रहेगी, इनसे जुड़े या इन पर निर्भर उद्योगों के लिए भी लगभग बंदी का दौर ही रहना है। मीडिया उद्योग में अखबार तो शायद इस साल अपने वजूद की लड़ाई ही लड़ेंगे। ज्यादातर अखबार इसी साल इतिहास बन जाएंगे, ऐसा स्पष्ट नजर आ ही रहा है। क्योंकि एक तो बाकी सेक्टरों की खस्ता हालत से उन्हें मिलने वाला विज्ञापन लगभग न के बराबर रह जाएगा, दूसरा कोरोना का कैरियर समझा जाने के कारण वैसे भी लोग अखबार से मुंह मोड़ ही रहे हैं।

ज्यादातर बैंक और अन्य वित्तीय संस्थान भी ऐसे हालात में कब तक कारोबार कर पाएंगे, यह भी अब कुछ पक्का नहीं रहा है। होम लोन लेने वाले लोग भी घटेंगे क्योंकि होम लोन लेकर घर खरीदने वाले मध्य आय वर्ग की नौकरी आदि के लिए आने वाला समय बेहद कठिन है। लेकिन रियल एस्टेट और सोना चांदी में निवेश करने वालों की तादाद फिर भी बढ़ेगी। खरीदार भले ही नदारद रहें, मगर निवेशक इसलिए मजबूरन रियल एस्टेट और सोने चांदी में ही निवेश करेंगे क्योंकि लगभग हर सेक्टर की खस्ता हालत के बाद धनवान लोग फिल्म/ टीवी, परिवहन, बड़े स्टोर/ शोरूम, होटल/ रिजॉर्ट, पर्यटन, माल/ मल्टीप्लेक्स/ ऑफिस जैसे कामर्शियल स्पेस में लगाने की बजाय पैसे किसी सुरक्षित जगह लगाने के लिए रियल एस्टेट और सोने चांदी को ही तरजीह देंगे। यही कारण है कि सोने के भाव लगातार बढ़ते जा रहे हैं और अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञ भी मान रहे हैं महज एक साल में सोना बढ़कर दुगने पर पहुंच सकता है। जबकि रियल एस्टेट सेक्टर में भी आवासीय परियोजनाओं में निवेश करने के लिए निवेशकों की चहल पहल नजर आने लगी है।

कोरोना की आपदा में अवसर सिर्फ रियल एस्टेट, सोने चांदी के लिए ही नहीं है बल्कि फार्मा, हेल्थकेयर, एफएमसीजी, ऑनलाइन कारोबार आदि चंद अन्य सेक्टरों में भी है। बैंक भी होम लोन की कमी से होने वाले घाटे की भरपाई के लिए इन्हीं सेक्टर के लोन पर अंततः फोकस करके खुद को बचाने की भरपूर कोशिश करेंगे। शेअर बाजार भी कोरोना में कारोबार का अवसर तलाश लेने वाले सेक्टर से अपनी सेहत को उतार - चढ़ाव के बीच बचाए रखेगा।

मध्य वर्ग या निम्न आय वर्ग के साथ साथ ज्यादातर सेक्टर के व्यापारी भले ही बर्बाद होकर देश की अर्थव्यवस्था को रसातल में पहुंचा दें लेकिन ज्यादातर धनवान निवेशक महज चंद सेक्टरों में धन लगाकर अपने धन को बढ़ाने की जुगत लगाने में कामयाब हो ही जाएंगे...

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