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- गमले से बाहर निकले की...
सुनील कुमार मिश्र
स्वामी राम ने जापान के सम्राट के महल के बगीचे मे चिनार का वृक्ष देखे, वे सब एक-एक बालिश्त के थे और उनकी उम्र डेढ़-डेढ़ सौ, दो-दो सौ वर्ष थी। जिन्हें आकाश में सौ फीट, डेढ़ सौ फीट ऊपर उठ जाना चाहिए था। वो बहुत हैरान हुए कि दो सौ वर्षों का चिनार का वृक्ष और एक बालिश्त, की ऊंचाई! यह कैसे संभव हो सका है? उन्होने माली से कहा, मैं हैरान हूं कि यह वृक्ष डेढ़ सौ वर्ष का है, इसे तो आकाश छू लेना था! यह अभी एक बालिश्त का कैसे है? किस तरकीब से? उस माली ने कहा, आप वृक्ष को देखते हैं, माली जड़ों को देखता है। उसने गमले को उठा कर बताया, हम इन वृक्ष की जड़ों को नीचे नहीं बढ़ने देते, उन्हें नीचे से काटते चले जाते हैं। जड़ें नीचे छोटी रह जाती हैं, वृक्ष ऊपर नहीं उठ सकता है। आकाश में उठने के लिए पाताल तक जड़ों का जाना जरूरी है।
ठीक ऐसा ही कुछ हुआँ इस देश के साथ अतीत का भ्रामक गौरव और सृष्टि की हर चाल का पता होने के अहंकार ने हमको एक टाईम फ्रेम मे बांध दिया और हमने ऊंचाईयों छूँने के सब उपाय खुद ही अवरुद्ध कर डाले। हमने मान लिया कि जितना कुछ भी "किया जा सकता था", वो सब हमारी ऐतिहासिक धरोहर है। इससे आगे कुछ किया नही जा सकता। "अच्छा" जितना होना था हो चुका है। वर्तमान कलियुग है और शास्त्रो के हिसाब से यह युग अनाचार और हिंसा से भरपूर होगा। इसलिए जितना भी बुरा से बुरा समाज मे घटता है, हम उसकी दिखावटी आलोचना करने के तुरंत बाद कहते "कलियुग है" अब यह सब तो होना ही है"। मतलब गहरे मे स्वीकार्य है। देश के समाज को आलसी और मंदबुद्धियों की भीड़ तैयार करने मे इसी सोच को खूब पोषित किया गया। इसी के माध्यम से समाज के फर्जी पंडित, पुरोहितों और सत्ता लोलुपों ने खूब शोषण किया।
समाज का वातावरण कुछ ऐसा बनाया गया कि लोगों की आँखे चुंधिया गई और फिर उनको अंधा धर्म दिया गया और इसी के नाम पर धार्मिक बेड़ियां पहनाई गई और कहां गया कि "ये तुम्हारे आभूषण है"। तैयार मंदबुद्धि और अंधी फौज ने इनको आभूषण समझ के ही धारण किया और आज कोई भी आँख वाला इनको यह समझाने मे समर्थ नही है☛ "मूर्खों तुमको ये आभूषणों के नाम पर बेड़ियां पहना कर तुमको धार्मिक गुलाम बनाने की गहरी साज़िश रची गई है"। एक पूरा का पूरा तथाकथित अधार्मिकों का तैयार सजां संवरा गैंग है। जैसे ही तुम्हारी बौद्धिक जड़े गमले के बाहर आती है यह गैंग काट देता है..