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"आजादी की लड़ाई में दिल्ली की महिलाओं की बड़ी भूमिका"
पानी के बुलबुले नहीं हम रग-रग में आजादी बहती है. बहुत ताकत है बाजुओं में. लड़-जाएंगे, भिड़ जाएंगे. कदम न पीछे खिसकाएंगे. कफन चले हैं लेकर, आजादी की चाहत के साथ. हर किसी ने भरी हुंकार. देश का गौरव बढ़ाएंगे, देश को स्वाधीन बनाएंगे. इसी जोश-जुनून के साथ हर युवा, हर नारी. घरों में बैठीं महिलाएं सब के दिल-दिमाग में देश को स्वाधीन बनाने की युक्तियां ही पकती थीं। अब तो देश आजादी के 71 बसंत देख चुका है। लेकिन तब सन् 47 की लड़ाई में आजादी के लिए दिल्ली की महिलाओं ने खुद को मिटाकर कैसे देश का गौरव जीता... उन्हीं किस्सों से रूबरू कराएंगे. ये आजादी हमें यूं ही नहीं मिल गई थी, इसके लिए सैंकड़ों वीरों ने कुर्बानी दी थी। सिर पर कफन बांधे युवाओं की टोलियां होती थीं...तो महिलाओं के कदम भी कहीं पीछे नहीं डिगते थे। कितने आजादी के वीरों ने सीने पर हंसते-हंसते गोलियां खाईं थीं। कई रातें फाकाकशी में गुजारीं थीं तो कईयों ने अपनों को घर समेत खोया था। इतनी कुर्बानियों और बलिदानों की आहुति के बाद तब जाकर आजादी की लौ जली थी जो आज 71 बरस बाद भी निरंतर जल रही है। आजादी के इस आंदोलन में देश के हर कोने से लोगों ने शिरकत की थी। दिल्ली ने खूब बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया था। युवा, बुजुर्ग, महिलाएं सभी महात्मा गांधी की एक आवाज पर जेल जाने को तैयार थे...!!
दोस्तों...आजादी की लड़ाई में दिल्ली की महिलाओं ने भी बड़ी भूमिका निभाई है। लेकिन इन महिलाओं को उस योग्य बनाने में दिल्ली के इंद्रप्रस्थ कॉलेज का अहम योगदान है। वर्ष 1924 में यह महज स्कूल था और जामा मस्जिद के पीछे छिप्पीवाड़ा में दो कमरों में दो लड़कियों के साथ शुरू हुआ था। इसके संस्थापक आजादी की लड़ाई लड़ रहे थे। उनको इसका आभास था कि महिलाएं आजादी की लड़ाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं। लेकिन इसके लिए जरूरी था कि वह शिक्षित हों और उनके भीतर देश के प्रति समर्पण हो। थियोसोफिकल सोसायटी की प्रमुख एनी बेसेंट के प्रयास से वर्ष 1938 में अलीपुर हाउस की बिल्िडग इस कॉलेज को मिली और कॉलेज बाद में दिल्ली विश्वविद्यालय से संबद्ध हुआ। कॉलेज की शिक्षिका डॉ. मनस्विनी एम योगी बताती हैं कि एडविना माउंटबेटन का योगदान भी इस कॉलेज को स्थान दिलाने में अहम था। कॉलेज में आज भी उस दौर की हस्तलिखित पत्रिकाएं और अन्य सामग्रियां रखी गई हैं। वर्ष 2001 में दिल्ली सरकार ने इस कॉलेज को धरोहर का दर्जा दिया है। कॉलेज की प्रिंसिपल डॉ. बबली मोइत्र सरॉफ कहती हैं कि कॉलेज आज जिस मुकाम पर है उसमें यहां से पढ़ने वाली छात्राओं का भी अहम योगदान है। आजादी की लड़ाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली सुचेता कृपलानी, प्रसिद्ध उर्दू लेखिका कुर्तुनल हैदर, राजनेता अंबिका सोनी व सामाजिक कार्यकर्ता अरुणा रॉय सहित ऐसी कई महिलाएं हैं जिन्होंने अपने-अपने क्षेत्र में काफी काम किया है। उन्होंने बताया कि कॉलेज की कई छात्राएं प्रशासनिक पदों पर भी हैं। यहां पढ़ने वाली छात्राएं इस कॉलेज के ऐतिहासिक गौरव और धरोहर को संजोए हुए हैं और इसकी आभा देश-विदेश में फैला रही हैं। यह बेहद दिलचस्प है कि कभी पर्दे में बग्गी पर यहां पढ़ने के लिए लड़कियां आती थीं, लेकिन आज वह सार्वजनिक मंचों पर अपनी आवाज बुलंद कर रही हैं...!!
देश आजादी की 71वीं सालगिरह धूम-धाम से मनाने जा रहा है जिसमें न्यायपालिका, कार्यपालिका, विधायिका और प्रेस भी शहीदों के बलिदान की जमकर जय-जयकार करेंगे। लेकिन क्या देश की सवा सौ करोड़ की जनता को इस आजादी का लाभ मिल पायेगा। इसकी उम्मीद उसे अभी दूर-दूर तक कहीं भी नजर नहीं आ रही है...!!
लेखक- कुंवर सी• पी• सिंह वरिष्ठ पत्रकार है