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God doesn't play dice with the Universe : 'ईश्वर ब्रह्माण्ड के साथ पासे नहीं खेलता'
चंदन श्रीवास्तव
यह कहा था अल्बर्ट आइंस्टीन ने। 'ईश्वर ब्रह्माण्ड के साथ पासे नहीं खेलता।' उन्होँने क्वांटम फिजिक्स के कुछ अनिश्चित परिणामों के मद्देनजर यह टिप्पणी की थी। उनका आशय था कि ब्रह्माण्ड के नियम पूरी तरह निश्चित हैं। ईश्वर इसे कभी भी अनिश्चितता में नहीं ढकेलता।
तो क्या आइंस्टीन ईश्वर में विश्वास करते थे? मुझे नहीं पता। लेकिन यदि वह करते रहे हों तो आश्चर्य कैसा। पार्टिकल्स, सब-पार्टिकल्स और कॉस्मोलॉजी पर काम करने वाले भौतिक शाष्त्री अक्सर ही रहस्यमयी ईश्वर में यकीन करते पाए जाते हैं।
भौतिक विज्ञान की स्ट्रिंग थ्योरी को तो विज्ञान कम फिलोसफी ज्यादा माना जाता है। वास्तव में जब आप पार्टिकल्स से लगाए कॉस्मोलॉजी को पढते हैं तो किसी रहस्यमयी ईश्वर में यकीन किये बिना नहीं रह पाते। सूक्ष्मता के स्तर पर इतना सूक्ष्म की हम गुरुत्वाकर्षण के कारक पार्टिकल जिसे ग्रेविटॉन का नाम दिया गया है, उसे देख और जान तक नहीं सके हैं। और विशालता के स्तर पर इतना विशाल की हमारा सौर-मंडल और हमारी आकाशगंगा इसमें धूल के कण के बराबर भी हैसियत नहीं रखती। नियम ऐसे सटीक कि एक कण का खरबवां हिस्सा भी उसका पालन करता है तो सूर्य से अरबों गुना बड़े नक्षत्र और पिण्ड भी। और फिर जब वैज्ञानिक इन नियमों को और भीतर तक समझने जाते हैं तो ब्रह्मांड मानो उनसे कहता है कि ये सभी नियम स्वयं मुझ पर,मेरे विस्तार पर लागू नहीं होते।
मैं कभी-कभी सोचता हूं कि महान बलिदानी भगत सिंह को ये सब पढ़ने का अगर मौका मिला होता तो क्या वह 'मैं नास्तिक क्यों हूँ' लिखते? लेकिन आस्तिकों या मैं कहूं religious लोगों को इससे खुश होने की आवश्यकता नहीं। क्योंकि ये वैज्ञानिक जितना किसी रहस्यमयी ईश्वर में विश्वास नहीं करते उससे कहीं ज्यादा सख्ती और निर्ममता से आपके Religion और Religious Gods को नकारते हैं। वास्तव में वे नकारे जाने वाली एक काल्पनिक चीज ही हैं।
फिर भी अगर ईश्वर जरूरी है तो हमें एक नए ईश्वर की परिकल्पना करनी चाहिए, जो जरा प्रैक्टिकल हो। ऐसा ईश्वर जो उसे न मानने वालों के कत्ल का आदेश न देता हो या जो इंसानों की जातियां बनाकर उनमें भेदभाव न करता हो।