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हे स्वयंभू हिंदू हितरक्षक श्री मोदी जी, तो हे छप्पन इंच वक्ष धारी?
शिव कुमार मिश्र
19 Dec 2017 2:42 AM GMT
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महाभारत का युद्ध चल रहा था, एक तरफ अर्जुन तो दूसरी तरफ कर्ण .........इस रण में दोनों के ही रण कौशल की परीक्षा हो रही थी. अर्जुन के प्रत्येक बाण के आघात पर कर्ण का रथ कई फिट पीछे चला जाता था वहीं अर्जुन का रथ कर्ण के बाणों के अघात पर मात्र कुछ अंगुल ही पीछे जाता था पर भगवान कृष्ण हर आघात पर कर्ण की भूरी - भूरी प्रशंसा किये जाते. कारण यह था कि अर्जुन के रथ पर भगवान स्वयं त्रिलोक का भार लिए विराजमान थे और ऊपर बजरंगबली भी पताका पर अपने बल के साथ विराजमान थे, जबकी कर्ण का रथ एक सामान्य महारथी के रथ की भांति ही था. अर्जुन के मन में संसय उत्पन्न हुआ तो भगवान ने एक पल के लिए बजरंग बली को संकेत देकर अपना बल रथ से हटा लिया फिर क्या था, कर्ण के मात्र एक बाण के आघात पर अर्जुन का रथ इतना पीछे चला गया कि अगले दिन रण भूमि तक लौट ही न सका उसी बीच चक्रव्यूह की रचना और अभिमन्यु का वध हुआ.
तो हे छप्पन इंच वक्ष धारी, आप की यह जीत मात्र चुनावी कौशल, विकास या रणनीति की जीत नहीं है ! चुनावी कौशल और रणनीति में विरोधी आप से दस गुना अधिक निपुण है. आप तो स्वयं युद्द्भूमि में गतिमान थे इसलिए इसका भान आपसे अधिक किसे हो सकता है | एक सामान्य पप्पू प्यादे के सम्मुख आप जैसे महायोद्धा को भी तुणीर के सभी तीर निकालने पर विवश होना पड़ा, इसी से विरोधी दल के रणनीतिक कौशल का आकलन हो जाता है ...!!
आप की जीत मात्र इस कारण हुई कि भ्रम में सही आप धर्म के मार्ग पर थे. धर्म मार्ग पर होने के नाते साक्षात वासुदेव जनार्दन भी आपके साथ खड़े थे ..जब जनार्दन साथ हों तो बजरंग बली का बल और जनता का साथ तो मिलना ही है. यदि वासुदेव जनार्दन और बजरंगबली न होते तो अर्जुन की भांति आपका रथ भी सैकड़ों योजन पीछे चला जाता.
इसलिए इस धर्म की जीत को विकास या कोई और नाम देकर झुठलाने का अक्षम्य पाप न करें. वैसे भी 99 पर टिका कर मधुसूदन वासुदेव ने 99 पाप पूरा होने का संकेत भी दे दिया है. वासुदेव कितने निर्मोही हैं यह सर्विदित है.
तो हे पार्थ !! धर्म की इस जीत को वक्ष चौड़ा करके धर्म की जीत कहो और उसी मार्ग पर चल पड़ो ! जनता - जनार्दन ने आपका वरण आसुरी शक्तियों के विनाश हेतु किया है न कि विकास नामक पखावज वादन हेतु. वासुदेव की अनुपस्थिति में अर्जुन का सामान्य जंगली भीलों ने क्या हाल किया था सर्वविदित है.
साभार - जनार्दन पांडेय प्रचंड
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