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वैश्या--- बहरहाल चलिये कल सुबह डॉक्टर साहब देखेंगे तब वही कंडीशन बता पाएंगे। आप निश्चिंत रहें हम लोग अच्छे से देखभाल करेंगे इनकी
वैश्या-- बहरहाल चलिये कल सुबह डॉक्टर साहब देखेंगे तब वही कंडीशन बता पाएंगे। आप निश्चिंत रहें हम लोग अच्छे से देखभाल करेंगे इनकी।
अभी तक आपने पढ़ा, अब आगे
भाग 5-
मधु की आंखे लगातार समंदर बनी जा रहीं थीं। वह राजू के पास ही रहना चाहती थी। मगर सुषमा ने धीरे से कहा माही चल कल सुबह हम लोग फिर आ जाएंगे। आज देर हुई तो कल दीदी तुझे आने नहीं देगी। आज तेरी वजह से मेरा धंधा खोटा हो गया है।
मधु भींगी आंखों से सुषमा की तरफ देखा और अस्पताल के गेट की तरफ बढ़ने लगी।
क्या हुआ राजू ठीक तो है न.? कोठे पर पहुँचते ही दीदी ने सवाल किया...और यह तूने क्या हाल कर लिया है माही...हमारे धंधे में मर्दों से जात-जज्बात नहीं जोड़े जाते माही।यहां मर्द मने तिजोरी औरत मने चाभी होता है।
राजू अच्छा मर्द है इसलिए तुझे जाने दिया। अपना खयाल रख...ज्यादा रोयेगी धोयेगी तो बच्चे पर फर्क पड़ेगा। और जा खाना दवा खाकर आराम कर,कल मैं भी चलेगी तेरे साथ।
सुषमा जा देख तेरा एक पुराना कस्टमर इंतजार कर रहा है...साल्ला तीन दफा दारू पीकर उल्टियां कर चुका है। कोठे का रेगुलर ग्राहक न होता तो लात मारकर बाहर करवा देत्ति हरामी को।
अच्छा दीदी देखती हूँ... कहकर सुषमा चली गई।
मधु अपने कोठरी में पड़ी अपनी किस्मत को कोसे रही थी। हर दफा किस्मत ने मुझसे दगा किया। आखिर क्या गलती की मैंने...यही न एक बेवफा धोखेबाज से मोहब्बत कर बैठी थी। जिसकी सजा पर सजा मिले जा रही है।
हां गुनाह तो बड़ा है... अपने मासूम माँ-बाप का दिल दुखाया था जो मैंने। यह सोचकर वह सिसकने लगी। उसकी आंखों में बचपन से लेकर जित्तू से मिलने तक कि बातें चलचित्र की तरह चलने लगीं। ऊपर से राजू की चिंता उसकी आँखों से नीद को कोसों दूर कर चुके थें।
दीदी उठो अस्पताल चलना है न...मधु ने कोठा मालकिन को हौले से झकझोरते हुये कहा...
दीदी ने हड़बड़ाकर घड़ी की तरफ देखते हुये कहा...अरे पागल हो गई है क्या रे तू...अभी भोर के सवा चार बज रहे हैं। एक अजनबी मर्द के चक्कर पगला गई है क्या...सुन माही जाकर सो ले और मुझे सोने दे दस बजे से पहले उठने उठाने जाने की बात की न तो....फेर तू जानना।
भुनभुनाते हुये हुं s इन लड़कियों को थोड़ा छूट दे दो तो हरामजदगी पर उतर आती हैं ।
मधु डरकर वापस अपनी कोठरी में लौट आई।
ओय माही उठ...चल तैयार हो जा...चलते हैं राजू को देखने।
मधु ने आँख खोला तो 11 बज रहे थें। सोचते-सोचते कब उसे नींद आ गयी उसे पता ही नहीं चला।
जल्दी से तैयार होकर दीदी के साथ अस्पताल पहुँची तो डॉक्टर राजू को चेक कर रहे थें।
आप लोग इनके परिवार से हैं। मधु और दीदी को राजू की तरफ निराश भाव से देखते ही डॉक्टर ने सवाल किया।
देखिये मरीज की हालत फिलहाल स्थिर है। मगर अगले तीन दिन इनके जिंदगी के बेहद अहम हैं। इंजेक्शन दे दिया गया है। कुछ देर में होस में आने की पूरी सम्भावना है।
मगर डॉक्टर साहब यह ठीक तो हो जायेंगे न। थरथराते होठों से मधु ने सवाल किया।
बेटा,हर डॉक्टर चाहता है कि जिस मरीज का वह ईलाज कर रहा है वह ठीक हो जाये। यह हमारे पेशे औऱ साख का भी सवाल होता है। बाकी हम प्रयास कर सकते हैं,परिणाम तो ईश्वर के हाथ हैं।
डॉक्टर साहब आप ईलाज करिये जो पैसा लगेगा मैं लगा देगी। डॉक्टर से बोलते हुए दिदी ने कहा।
अरे नहीं बात पैसे वैसे की नही है। यह चैरिटी हॉस्पिटल है,यहां न्यूनतम खर्च लगता है वह भी सिर्फ जांच का।
बातचीत हो ही रही थी तबसे राजू की पलकों पर कुछ हलचल हुई और उसने आंखे खोल दी। पहले कुछ देर उसने छत की तरफ शून्य में देखा फिर मधु की तरफ देखते हुए वह दर्दभरी मुस्कान से देखने लगा।
मधु की आंखे भी खुशी और दुख के मिश्रित भाव लिये बहने लगें।
उसने आंखों के इशारे से मधु को अपने पास बुलाया।
देखिये मरीज को उठाने या ज्यादा बुलवाने का प्रयास मत करियेगा। वरना घातक होगा। डॉक्टर ने हिदायत देते हुए कहा।
क्रमशः ....
विनय मौर्या।
बनारस।