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करण थापर के साथ इंटरव्यू में गांधी के पोते राजमोहन गांधी ने, राजनाथ सिंह के उस बयान की सविनय धज्जियाँ उड़ा दी हैं

Desk Editor
19 Oct 2021 10:18 AM GMT
करण थापर के साथ इंटरव्यू में गांधी के पोते राजमोहन गांधी ने, राजनाथ सिंह के उस बयान की सविनय धज्जियाँ उड़ा दी हैं
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राजमोहन गांधी बताते हैं कि गांधीजी ने अपनी ओर से नहीं लिखा, बल्कि विनायक सावरकर के छोटे भाई नारायण राव ने पत्र लिखकर गांधीजी से मदद की गुहार की थी क्योंकि ब्रिटिश राज की रहम-सूची (1919) में सावरकर नाम नहीं निकला था

करण थापर के साथ इस इंटरव्यू में इतिहासकार और गांधीजी के पोते राजमोहन गांधी ने रक्षामंत्री राजनाथ सिंह के उस बयान की सविनय धज्जियाँ उड़ा दी हैं, जिसमें रक्षामंत्री ने कहा कि "महात्मा गांधी ने उनसे कहा था कि आप (विनायक दामोदर सावरकर) मर्सी-पिटीशन (रिहाई की लिए रहम की याचना) दायर करो। महात्मा गांधी के कहने पर उन्होंने मर्सी-पिटीशन फ़ाइल की थी।"

राजमोहन गांधी बताते हैं कि गांधीजी ने अपनी ओर से नहीं लिखा, बल्कि विनायक सावरकर के छोटे भाई नारायण राव ने पत्र लिखकर गांधीजी से मदद की गुहार की थी क्योंकि ब्रिटिश राज की रहम-सूची (1919) में सावरकर नाम नहीं निकला था। गांधीजी मदद करना चाहते थे। उन्होंने अपने पत्रोत्तर में छोटा और स्पष्ट पत्र लिखने की सलाह दी। (ख़याल करें कि हिंदू राष्ट्र के नाम पर अपनी सघन सांप्रदायिक गतिविधियाँ सावरकर ने अंगरेज़ों के रहम पर जेल बाहर आने के बाद शुरू की थीं, जिनसे आज़ादी के आंदोलन को धक्का पहुँचा।)

यह जनवरी 1920 की बात है। जबकि सावरकर ने रहम की याचना लिखने अर्थात् माफ़ी माँगने का सिलसिला 1911 में ही शुरू कर दिया था। उस वक़्त गांधीजी दक्षिण अफ़्रीका में रहते थे। 1915 में वे भारत लौटे और आज़ादी के आंदोलन की रहनुमाई की।

राजमोहन कहते हैं कि राजनाथ सिंह द्वारा गांधीजी द्वारा 1920 में दिए गए एक पत्र के जवाब को सावरकर द्वारा नौ साल पहले (और उसके बाद 1920 तक तो अनेक बार) माँगी गई माफ़ी का आधार बताना "बेतुका, अकल्पनीय और हास्यास्पद" है।

एक महत्त्वपूर्ण और सुनने लायक संवाद, जो सत्ता के उच्च स्तर से इतिहास को बदलने की कोशिश और नई पीढ़ी के समक्ष तथ्यों की हेराफेरी परोसने की क़वायद का पर्दाफ़ाश करता है।

- ओम थानवी

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