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अंग्रेजों के दिल दहलाने वाले जुल्म जिनको सुनने से ही रुह कांप उठती है उनकी चर्चा नहीं होती देश में, कांग्रेसी विधायक रफीक जानते तो जवाब देते भाजपा विधायक को?

Mohammed Hafeez Pathan
2 May 2025 8:45 PM IST
अंग्रेजों के दिल दहलाने वाले जुल्म जिनको सुनने से ही रुह कांप उठती है उनकी चर्चा नहीं होती देश में, कांग्रेसी विधायक रफीक जानते तो जवाब देते भाजपा विधायक को?
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पराधीन भारत में जब हम अंग्रेज़ो के गुलाम थे तब हम सब भारत वासी भारतीय थे हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई सब अगड़े पिछड़े एक भारतीय थे स्वतंत्र भारत वर्ष में हम हिन्दू मुस्लिम स्वर्ण अगड़े पिछड़े दलित आदिवासी में बांट दिए गए हैं?

मोहम्मद हफीज (जयपुर) : बड़े दुःख के साथ लिखना पड रहा है कि पराधीन भारत में जब हम अंग्रेज़ो के गुलाम थे तब हम सब भारत वासी भारतीय थे. हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई सब अगड़े पिछड़े एक भारतीय थे. स्वतंत्र भारत वर्ष में हम हिन्दू मुस्लिम स्वर्ण अगड़े पिछड़े दलित आदिवासी में बांट दिए गए हैं. यह काम सत्ता की कुर्सी प्राप्त करने हेतु सत्ता पिपासु नेताओं द्वारा किया जा रहा है. देश वासियों से उनके भारतीय होने नागरिक होने का अधिकार छीना जा रहा है वोटों की फ़सल लूटने के लिए नागरिकों को उन्मादी भीड़ में बदला जा रहा है. अब अपराधी और उसके अपराध को धार्मिक जातीय आईने से देख कर उसका महिमा मंडन कर गुणगान किया जाता है!

आज जिस अयोध्या से देश में धार्मिक उन्माद नफ़रत की राजनीति का श्री गणेश हुआ उसी अयोध्या के कुबेर टीला नामी जगह पर इमली के पेड़ के पास आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया ने सन् 1857 में सबसे पहले अयोध्या में आजादी का बिगुल फूंकने वाले बाबा राम शरण दास और मोलवी आमीर अली दोनों को एक फांसी के फंदे पर लटका दिया था. यह इतिहास आज भी लिखा है हर कोई अयोध्या जाकर इसे देख सकता है. देश में अंग्रेजों के भयानक जुल्मों सितम जिनको सुनकर आज भी आत्मा कांप उठती है. उन भयानक अंग्रेजी सरकार के अत्याचारों की बात नहीं होती है क्योंकि जब अंग्रेजों के भयानक जुल्मों सितम की बात होगी तो अंग्रेजों के मुखबिर उनके अत्याचारी शासन के सहयोगी देशी राजे रजवाड़ों की भी बात होगी!

इसे दुर्भाग्य मानें या सो भाग्य अंग्रेजों के साथी राज परिवार आज सबसे ज्यादा सत्ताधारी पार्टी भाजपा में है. इसी कड़ी में हरियाणा राज्य के हांसी में हुकमचंद जेन मुनीर बेग ने अंग्रेजी हुकूमत से जबरदस्त लोहा लिया अंग्रेजी हुकूमत इनसे परेशान हो गईं. नाभा पटियाला पटोदी कश्मीर रियासतों की मदद से इन्हें अंग्रेजों ने पकड़ा फिर हुकमचंद जेन को उसके मजहब के खिलाफ जिंदा कबर में दफना दिया और मुनीर बेग को उसके मजहब के खिलाफ जिंदा चिता में जलाया गया!

देश के बंगाल बिहार राज्यों में सबसे पहले वर्ष 1773 में फकीर सूफी और संन्यासी विद्रोह हुआ जिसके नायक मजनूं शाह फकीर भवानी पाठक संन्यासी थे. लेखक इतिहासकार बंकिमचंद्र चटर्जी जिनकी किताबें आक्सफोर्ड हावर्ड यूनिवर्सिटी में पढ़ाई जाती है. वह अपनी किताब आंनद मठ में इसके बारे लिखते कई बार आई ए एस के एग्जाम में पूंछा जाता है कि फकीर एवं संन्यासी आंदोलन का उल्लेख किस किताब में है.

आंनद मठ किताब में इस फकीर सूफी संत साधूं आंदोलन के बारे में सम्पूर्ण जानकारी है. जिसमें लिखा है कि उन दिनों बिहार बंगाल राज्यों में अकाल पड़ा था. लोग भूख से परेशान थे और अंग्रेजों के गोदाम अनाज से भरें पड़े थे. फकीर सूफी साधू संत आंदोलन के लीडर थे मजनूं शाह फकीर और भवानी पाठक जों आपस में गहरे दोस्त थे. ये साधूं संत फकीर सूफी जनता को अपने साथ लेकर अंग्रेजों के गोदामों पर धावा बोलकर ताले तोड़कर सारा अनाज गरीबों में बांट देते!

यह वह समय था जब देश में हिन्दू और मुस्लिम यानि हम मिलकर अंग्रेजों से लड़ते थे. देश में उस समय के हुक्मरानों अंग्रेजी सरकार को भी हिन्दू मुस्लिम एकता से नफ़रत थी और आज के नेताओं को भी हिन्दू मुस्लिम एकता से ही नफ़रत है. देश में शासन करने वाले बदलें है पहले विदेशी गोरी चमड़ी के शासक थे अब स्वदेशी हमारे अपने जेसे काली चमड़ी के शासक राज कर रहे हैं पर शासन करने के तोर तरीके वही है जो गोरी चमड़ी वाले आकाओं से चलें आ रहें हैं.

आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के डायरेक्टर रहें आनंद भट्टाचार्य ने वर्ष 2013 में अपनी किताब में लिखा है की बिहार बंगाल के घने जंगलों का फायदा उठाकर मजनूं शाह फकीर सूफी और भवानी पाठक संन्यासी के बाद पचास साल तक यह फकीर सूफी संत साधूं आंदोलन चलता रहा मजनूं शाह फकीर भवानी पाठक संन्यासी के बाद मूसा शाह चिराग अली ने इस आंदोलन को जिंदा रखा!

अंग्रेजी इतिहासकार ऐलेस मेली ने अपनी किताब दा हिस्ट्री ऑफ बिहार बंगाल एंड उड़ीसा के पेज नंबर 85/86/88पर फकीर एवं संन्यासी आंदोलन के बारे में लिखा है

सबसे पहले 1857 में अंग्रेजों देश छोड़ो यह मुल्क हमारा है सबसे पहले यह फतवा जारी करने वाले मोलवी अल्लामा फजले हक खेराबादी थे. बाद में जिनसे यह फतवा वापस लेने पर अंग्रेजों ने मोलवी फजले हक को मालामाल करने की पेशकश की पर मोलाना नहीं टूटे. आखिर में उनको काला पानी की सजा मिली वहीं मोलाना ने इस दुनिया को अलविदा कहा और अपने आप को वतन के लिए कुर्बान कर दिया.

1857 की लडाई में उस समय का सबसे बड़ा इनाम जिंदा या मुर्दा लाने पर अंग्रेजों ने दिलावर जंग अहमदुल्ला शाह मद्रासी पर रखा. इसका उल्लेख आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया की किताब में है. अहमदुल्ला शाह मद्रासी ने पूरे देश में घूम कर अंग्रेजों के खिलाफ जबरदस्त लड़ाई का माहौल बना दिया था. जिससे अंग्रेज़ घबरा उठें और उन पर 50हजार रुपए का इनाम घोषित किया. जिसे राजा पवई ने धोखे से अहमदुल्ला शाह मद्रासी का सर काट कर अंग्रेजों को सोपकर इनाम वसूल किया! अहमदुल्ला शाह मद्रासी का कटा सिर देख कर अंग्रेजी अफसर ने कहा कि यह हमारा सबसे शक्तिशाली दुश्मन था जों अब मर गया है.

अंग्रेजी अधिकारी लेफ्टिनेंट हडसन वह अफसर हैं जिन्होंने 1857 की जंग में क्रांतिकारियों से लड़कर बड़ी मेहनत से दिल्ली को दुबारा जीता था. हडसन अपनी किताब में लिखते हैं कि हमारे पास इंग्लैंड से टेलिग्राम आया कि दरअसल 1857 की बगावत मुस्लिम उलेमाओं मोलवियो की थी. इसलिए जंहा कहीं दाढ़ी टोपी धारी देखो उन्हें सीधा गोली मारदो फिर क्या था. हम निकल पड़े उनकी तलाश में हम जिधर भी दाढ़ी टोपी धारी देखते सीधा गोली मार देते. हमारी गोलीयों से हमने कई सेंकड़ों को सीधे गोलियों से भून डाला!

कर्नल नील जिसने दोबारा पटना इलाहाबाद कानपुर को जीता था वह अपनी किताब में बड़े गर्व से लिखते हैं कि हमने हजारों दाढ़ी टोपी धारी के साथ दूसरे लोगों बिना मुकदमा चलाए सीधा फांसी पर लटका दिया यह कार्यक्रम 1857 से 61 तक चलता रहा. उस समय के मशहूर इतिहासकार दुर्गा दास बन्दोपाध्याय जो इलाहाबाद में ही रहते थे उस समय वह अपनी किताब में लिखते हैं कि इलाहाबाद और उसके आसपास सालों तक कोई पेड नहीं मिलता था या पेड़ चिता में जला दिए गए या फिर कब्रों में पाटिए बना कर लगा दिए गए!

आजादी के इस प्रथम संग्राम में 51200 लोगों को फांसी दी गई जिनमें 27 हजार इस्लाम धर्म के जाने-माने जा नकार मोलवी उलेमा थे. आजादी के इस प्रथम संग्राम में सबसे ज्यादा किसी का नुक़सान हुआ था. वह थे अंतिम मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर. इसको लिखा है वी डी सावरकर ने अपनी किताब 1857 आजादी समर में वी डी सावरकर को पता है. आजादी की पहली लड़ाई में सबसे ज्यादा नुक्सान उठाने वाले मुग़ल बादशाह बहादुर शाह जफर थे पर सत्ता के नशे में चूर अपना घर भरने वाले किसी बेईमान मुस्लिम कांग्रेसी विधायक मंत्री को नहीं पता हमने पढी सावरकर साहब की यह किताब वी डी सावरकर गजब के विद्वान थे ऐसे स्वतंत्रता सेनानी किसी एक समाज प्रदेश के नहीं ऐसे लोग देश की धरोहर होते हैं !

वर्ष 1861 में लंदन से निकलने वाले दा टाइम्स अखबार के जनवरी माह के अंक में दा टाइम्स अखबार के संवाददाता रसल की एक रिपोर्ट मेन पृष्ठ पर छपी जिसमें रसल लिखते हैं कि अंग्रेजी हुकूमत मुस्लिम उलेमाओं मोलवियो में दहशत डालना चाहतीं थीं. इसलिए लगभग सात सो मुस्लिम उलेमाओं को सूअर की खाल में जिंदा सिलवा कर उनकी जान ली गई और विरोध करने वाले मोलवीयो को सूअर की पोटी जबरन खिलाई गई!

अंग्रेजों की केद में बंद बहादुर शाह जफर मुग़ल बादशाह को सुबह सवेरे जगाया गया. इस बारे में जान निकलसन आपनी किताब में लिखते हैं कि हमने बादशाह से कहा कि आप नाश्ता करिए बादशाह ने मना कर दिया कि हमारी तबियत अभी नाश्ते की नहीं है इस पर हमने ज़ोर दिया नहीं आप नाश्ता करिए आपको करना पड़ेगा बादशाह के नाश्ते के लिए तीन थाल लाल कपड़े से ढंके हुए लाए जिसमें उनके दो बेटे और एक पोते का कटा हुआ सिर लाया गया हमने जंगे आजादी की लड़ाई में अपने बेटे और पोतों के सर नाश्ते की थालीयो में देखें है! बडी आसानी से मुस्लिमों को बाबर की ओलाद कह दिया जाता है हम बाबर की ओलाद नही हम हसन खान मेवाती की ओलाद है हम इब्राहिम लोदी के भाई उसके बेटे की ओलाद है जों राणा सांगा बाबर की जंग में राणा सांगा की ओर से लड़ें थे मुग़ल शासक हमारे आदर्श हमारे पूर्वज नहीं है ना कभी होंगे?

मुग़ल शासक लुटेरे थे मानते हैं पर लुटेरे डाकुओं का गिरोह भी होता है. हिन्दू हृदय सम्राट महाराणा प्रताप थे हम इससे इंकार नहीं करते महाराणा प्रताप के साथ वीर शिवाजी महाराज हिन्दू हृदय सम्राट है ये जिंदाबाद हैं और अमर है अब बात करते हैं. लुटेरे मुग़ल डाकूओं के गिरोह के सरदार राजा मानसिंह सिंह की जिसने हिन्दू हृदय सम्राट महाराणा प्रताप के उपर तलवार चलाई हमला किया युद्ध के मेदान से राणा प्रताप को भागना पड़ा. जंगलों में छिप कर घांस की रोटियां खानी पड़ी वीर शिवाजी महाराज को धोखे से पकड़ कर मुग़ल बादशाह औरंगजेब के दरबार में लाने वालाजयपुर का राजा सवाई जयसिंह था. जिसने हिन्दू हृदय सम्राट शिवाजी को केद किया था जब मुग़ल शासक लुटेरे डाकू थे तों डाकुओं के गिरोह के लुटेरे सेनापति राजा जयसिंह मानसिंह मुर्दाबाद होना चाहिए जिनकी वशंज राजस्थान सरकार में उप मुख्यमंत्री है!

हम हकीम खान सूरी राणा प्रताप के सेनापति के वंशज हैं जिनकी वफादारी पर मुस्लिम होने के कारण उंगली उठने पर राणा प्रताप के भरे दरबार में हकीम खान ने कहा था कि राणाजी यह पठान युद्ध भूमि से जीवित नहीं लोटेगा जब तक मेरे जिस्म में जान रहेगी मेरे हाथ से तलवार नहीं छूटेंगी?

इतिहास गवाह है मरने के बाद भी इस वीर पठान के हाथ से तलवार नहीं छूटीं अंत में हकीम खान को तलवार के साथ ही क़ब्र में दफ़नाया गया उनकी याद में मेवाड़ महाराणा आज तक एक लाख रुपए का हकीम खान सूरी पुरस्कार देते हैं उसके पुरस्कार के अलंकरण में यह लिखा है शायद सत्ता के भूखे अवसरवादी नफरती नेताओं की नजर में मादरे वतन जन्मभूमि पर अपने प्राण न्यौछावर करने वाले वीर पुरुषों की वफादारी की कीमत नहीं है वरना इतिहास केनाम पर सत्ता प्राप्ति के लिए झूठे पकवान देश की जनता को नहीं परोसते?

आइए हम बात करते हैं अब शहीदे आजम सरदार भगतसिंह की जिनके नाम से नो जवानों के खून गर्मी आ जाती है. सेन्ट्रल असेम्बली में बम फेंकने जुर्म में भगतसिंह को कोर्ट में पेश किया गया तब एक अंग्रेज अफसर ने भगतसिंह से पूछा कि हमे भारत आए डेढ़ सो साल हुए हैं और तुमने हमारे ऊपर बम फ़ेंक दिया. पठानों मुगलों ने तुम पर आठ सों साल राज किया तुमने कभी उन पर बम नहीं फेंका. तब भगतसिंह ने कहा कि सर केसा राज इन पठानों और मुगलों ने ये यहां के होकर हमारे देश की मिट्टी में मिल गये जो कमाया था यंही खर्च कर दिया ऐसा राज किया पठानों मुगलों ने कि हमारे देश का नाम सोने की चिड़िया पड गया. जीस की चहक तुम्हें सात समुंदर पार कर भारत ले आयीं और तुमने केसा राज किया स्पंज की तरह जों गंगा किनारे से सोना चांदी हीरे जवाहरात भिगो कर लंदन की टेम्स नदी किनारे सारा निचोड़ देता. जिससे सोना चांदी हीरे मोती वहां बरसते ये सारी औधोगिक क्रांति कल कारखाने सम्पन्नता उसी की देन है. भगतसिंह का यह बयान ग्रोवर एवं ग्रोवर की किताब के पेज नंबर 169 पर पढ सकते हैं.

इतना दोगलापन लाते कंहा से है इस पर राहत इंदौरी साहब का शेर पेश है

तुम जिधर भी गुजरों धमाल कर दो

हरी ज़मीनों को लाल कर दो

तुम्हें दिया है सियासत ने ये हक

तुम जिसे चाहों हराम जिसे चाहों हलाल कर दो

आगे गांधी जी की जान बचाने वाले बटक मियां अंसारी गांधी जी के असहयोग आंदोलन में भाग लेने वाले केरल के मोपिला मुस्लिम समाज के 45हजार से अधिक शहीदों भारत रत्न सीमांत गांधी खान अब्दुल गफ्फार ब्रिगेडियर उस्मान अली की बात करेंगे. जो पाकिस्तान की लड़ाई में शहीद हुए पांच हजार किलो सोना भारत सरकार को रक्षा कोष 1965 की पाकिस्तान की जंग में दान करने वाले निजाम हैदराबाद की जिनके लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने क्या कहा था और भी बहुत कुछ जों देश हित में है हमारी कोशिश है देश में भाई चारा बना रहे!

मेरी कलम पढ़ने वालों को बैचेन करतीं हैं

सबब क्या है वहीं लिखता हूं जो दिल पर गुज़रती है अंत में देश की आजादी में शहीद हुए उन लाखों लोगों की कुर्बानियों से मिलीं आजादी मे मंत्री विधायक बने घमंडी नेताओं को याद रहे जो आप राजयोग भोग रहे हो वह आजादी के शहीदों की भीख और खैरात हैं किसी की निजी जागीर नहीं?

कितने कम जर्फ है ये गुब्बारे जों चंद सांसों में फूल जातें हैं.a

और पाते ही जरासी बुलंदीया अपनी औकात भूल जाते हैं.

Mohammed Hafeez Pathan

Mohammed Hafeez Pathan

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