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पत्रकार अवधेश कुमार ने लिखा मार्मिक लेख, जीवन और मृत्यु के संघर्ष से बाहर निकल रहा हूं
देश के जाने माने पत्रकारों में गिने जाने वाले अवधेश कुमार ने आज फेसबुक पर बडी ही मार्मिक बात लिखी है. जिसे सुनकर सभी हैरान रह गये. पढिये उनके द्वारा लिखा गया ये लेख..
नमस्कार मित्रों
पिछला तीन सप्ताह काफी बीमार रहा। अभी भी गंभीर रुप से बीमार हूं, लेकिन पिछले बुधवार, गुरुवार, शुक्रवार और शनिवार को जिस तरह जीवन और मौत के बीच संघर्ष चला उससे थोड़ा बेहतर हूं। इसी कारण लेखन और अन्य गतिविधियों से दूर रहा हूं। फेसबुक पर निजी बातें मैं शेयर न के बराबर करता हूं। हालांकि कुछ लिखने की स्थिति में भी नहीं था। किंतु सोशल मीडिया पर बीमारी के बारे में लिखने पर मैं देखता हूं कि लोग शीघ्र स्वस्थ होने की कामना जैसी पंक्तियां लिखकर अपने कर्तव्यों की इतिश्री मान लेते हैं जिनका व्यवहार में कोई अर्थ नहीं होता। कुछ लोग बीमार पड़ने पर शुभकामनाएं के लिए स्वयं ही आग्रह करते हैं कि उनके लिए यह ठीक होगा। किंतु इसका एक दुष्परिणाम यह हुआ है कि लोगों का व्यवहार बदल गया है। वो ऐसे ही कुछ लिखकर मान लेते हैं कि हमने अपना दायित्व पूरा कर लिया। अगर किसी की मृत्यु हो गई तो वे श्रद्धांजलि और शोक भी व्यक्त कर देते हैं। किसी के पास तो इसके लिए भी समय नहीं होता और वे अंग्रेजी में रिप लिखकर अपनी महानता प्रदर्शित करते हैं।
इसका इतना बुरा प्रभाव है कि बीमार होने पर व्हाट्सऐप या मेसेज से सूचना दीजिए तो ज्यादातर लोग फेसबुक की तरह का ही जवाब दे देते हैं। इसमें सूचना देना मैं निरर्थक मानता हूं। मैंने मना कर दिया था कि कोई फेसबुक आदि पर न लिखे। कुछ ऐसे हैं कि आप बीमार हैं, इलाज करा रहे हैं और फोन करके जिसने फोन उठाया उसको इलाज से लेकर क्या खाएं न खाएं आदि का सुझाव देने लगते हैं। हमारे देश में हर व्यक्ति के पास दूसरे के बीमार होने पर सुझावों का भंडार है। इसमें आज के समय में लोगों को न बताना ही सबसे सुरक्षित उपाय है। ऐसे लोग कम बचे हैं जो पूरी बात जानने, कोई सहयोग या मदद हो सकती है तो उसको ऑफर करने, आवश्यकतानुससार सूचना मिलते ही मिलने जाने, अपने संपर्क के लोगों से विचार कर बीमार को ठीक कराने आदि की कोशिश करते हैं।
मैं कई बार बता चुका हूं कि मेरे पेट में हमेशा समस्या रही है और वह हर कुछ महीने पर मुझे कुछ दिनों के लिए पटक देता है। किंतु इस बार ज्यादा भयावह था। दर्द और दस्त के कहर ने मुझे यह सोचने के लिए मजबूर कर दिया कि अब जब मेरा अंतिम समय आ ही गया है तो मुझे उसके लिए मानसिक रुप से पूरी तरह तैयार हो जाना चाहिए। इस संतोष के साथ दुनिया से विदा होना चाहिए कि मैंने अपने जीवन में अधर्म का कोई कार्य जानबूझकर नहीं किया। संकुचित स्वार्थ को कभी हाबी नहीं होने दिया। एक पत्रकार होने के नाते राष्ट्र,धर्म और मानवता की ही सेवा की। अपने घोर विरोधियों का भी कभी बुरा न चाहा, न किया। कोई मुझे मेरा दुश्मन मान ले, मैंने किसी को अपना दुश्मन नहीं माना। जितनी कल्पना नहीं की उससे ज्यादा लिखा और बोला। अनेक गैर राजनीतिक संघर्षों में भाग लिया। लोगों को परिवार के साथ या जरुरत पड़े तो परिवार का त्याग करके भी देश और समाज के लिए काम करने को प्रेरित किया। मनुष्य हैं तो करने की चाहत बहुत ज्यादा होती है लेकिन कोई भी जितना सोचता है उतना कर नहीं पाता है। इसलिए जितना कर पाए उसका संतोष लेकर मृत्यु के लिए तैयार होना ही श्रेष्ठ विकल्प है। हमारे यहां कहा भी गया है कि मृत्यु के समय आपके अंतर्मन में जो चलता रहता है उसी अनुसार आपका अगला जन्म या मोक्ष निर्धारित होता है। दर्द और कराह के बीच मैंने अपने को दुनिया से विदा होने के लिए तैयार कर लिया था। राष्ट्र जीवन में भी कुछ सपने थे जिनमें जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने तथा अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि के स्थान पर भव्य मंदिर का निर्माण शामिल था। ये दोनों अपने जीवन में देख पाया। यह संतोष का सबसे बड़ा विषय रहा। तो मृत्यु के लिए पूरी तरह तैयार था।
किंतु शायद अभी आयु बची है और किसी जन्म के अपराध या पाप का कष्ट भी भुगतना हो या संभव है बीमारी ठीक भी हो जाए। किस अस्पताल मंे कहां जाएं यही समझ नहीं आ रहा था। कई अस्पतालों मेें बात की गई लेकिन बेड उपलब्ध नहीं हो रहे थे। मैं किसी से ज्यादा बात करने की स्थिति में भी नहीं था। मेरे मित्र वरिष्ठ पत्रकार अनिल जैन जी का फोन आ गया यह जानने के लिए कि लंबे समय से कहीं आपका कुछ लिखा नहीं पढ़ा, फेसबुक से भी क्यों गायब हैं तथा आपका राष्ट्र के नाम कोई संदेश भी नहीं सुना। मैं टीवी पर बहस करता हूं तो मित्र अनिल जैन मुझे हमेशा यह कहकर चिढ़ाते और आनंद लेते हैं कि आप तो राष्ट्र के नाम संदेश देते हैं। मैं फोन उठा नहीं पा रहा था लेकिन संयोग से उनका नाम देखते ही फोन उठा लिया। उन्होंने वरिष्ठ सर्जन डॉ. बिनोद शामल का नाम सुझाया एवं उनको फोन कर दिया। डॉ. बिनोद शामल के पास नर्सिंग होम नहीं है, केवल सर्जिकल सेंटर है। कोविड के कारण उनका स्टाफ भी नहीं आ रहा था। लेकिन उन्होंने मुझे बचाने के लिए पूरी ताकत लगा दी। दो-ढाई घंटे सुबह और उतनी ही देर शाम को उपचार शुरु किया। साथ में टेस्ट भी कराते रहे। स्थिति नियंत्रित हुई। अभी तक उन्हीं के उपचार में हूं। अपनी ओर से मैंने केवल तीन मित्रों को फोन किया- दीपक चौरसिया जी, अशोक श्रीवास्तव जी और कुमार राकेश जी। दीपक जी ने पूरी गंभीरता से लिया और अभी भी ले रहे हैं। अशोक जी ने कुछ किया नहीं लेकिन कहा कि कोई भी आवश्यकता हो तुरत बताइएगा। कुमार राकेश जी ने फोन नहीं उठाया और आज तक उनका कॉल बैक भी नहीं आया। हालांकि जो डॉ बिनोद शामल कुमार राकेश जी को जानते हैं और उन्होंने भी उनको बता दिया था कि अवधेश जी बहुत कष्ट में हैं। एक दिन मैंने अपने वृहत्तर परिवार का सदस्य मानकर पत्रकार अभिताभ को भी फोन कर दिया कि बीमार हूं। बीमारी की अवस्था में जल्दी नाम भी याद नहीं आता कि किसको फोन करना चाहिए। इस काल में मेरा पूरा परिवार दिन-रात खड़ा रहा।
लगभग सारे टेस्ट हो चुके हैं। एक-दो टेस्ट स्थिति ठीक होने और शरीर की सहन क्षमता बढ़ने के बाद होगी। अभी लिक्विड डायट पर हंू। फोन पर बहुत कम बात कर पाता हूं। थोड़ी देर बात करने पर गला, जीभ सब सूख जाता है। हालांकि आज से थोड़ा-थोड़ा लेटे रहकर लिखना भी आरंभ कर रहा हंूं। टीवी डिबेट में भी निमंत्रण आने पर घर से भाग लूंगा। काम में थोड़ी सक्रियता होने से भी ध्यान बंटता है।
डॉ. बिनोद शामल अभी तक मान रहे हैं कि यह सर्जरी का मामला है। दो गैस्ट्रो सर्जन का ओपिनियन ले चुका हूं। पत्रकार होने की समस्या यह है कि डॉक्टर भी स्पष्ट ओपिनियन देने से बचते हैं। पता नहीं क्यों। तो देखते हैं। मैं और मेरे छोटे भाई राम कुमार सर्जरी का मन बना चुके हैं। इस बीच दिल्ली के अस्पतालों और डॉक्टरों का अनुभव काफी बुरा रहा है। उस पर आगे लिखूंगा। अपने मित्रों में डॉक्टर और गैस्ट्रो के जानकार...यदि चाहेंगे तो उनके ह्वाट्सऐप नंबर पर या यहां भी टेस्ट रिपोर्ट डाल सकता हूं।
जिन लोगों को मेरे यहां से बीमारी की सूचना नहीं दी जा सकी वे लोग अन्यथा न लेंगे क्योंकि स्थिति ही वैसी थी जिसमें उपचार के साथ मेरी सेवा ज्यादा जरुरी थी जिस पर परिवार और मेरे सहयोगियों का फोकस था और है। अपनों की सूची इतनी लंबी है कि सबको बताना संभव भी नहीं हो सकता।