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लेह डायरी

Desk Editor
23 Sep 2021 10:43 AM GMT
लेह डायरी
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लेह में जाड़ा दस्तक दे चुका है। तापमान 11 डिग्री चल रहा है। स्वेटर या जैकेट पहनना पड़ता है। गुरुद्वारे के बाहर गर्मा-गर्म चाय सूरज पासवान दे रहे थे। वे झारखंड से हैं और गुरुद्वारे में काम करते हैं। अब लेह वाले हो चुके हैं

लेह डायरी : विवेक शुक्ला, वरिष्ठ पत्रकार

लद्दाख की राजधानी लेह से ज़ांस्कर और सिंधु नदियों के संगम को देखने के लिए जाते हुए रास्ते में पवित्र गुरुद्वारा पत्थर साहब में दर्शन करने के लिए रुके तो ब्रेकिंग न्यूज आ रही थी कि 'दलित चरणजीत सिंह चन्नी पंजाब के नए चीफ मिनिस्टर होंगे।' पर यहां आने वालों को किसी के धर्म या जाति को जानने की फुर्सत नहीं थी।

बाबा नानक सन् 1517 में इस स्थान पर आए थे। वे घुमक्कड़ संत थे। ये गुरुद्वारा लेह-करगिल रोड पर है। बाबा जी के जीवन से जुड़े इस गुरुद्वारे में प्रसाद के रूप में किशमिश दी जा रही थी। मैंने इससे पहले कभी किसी गुरुद्वारे में किशमिश का प्रसाद नहीं लिया था।

वे भाग्यशाली ही होते हैं जिन्हें यहां के चारों तरफ फैली विशाल पर्वतमालाओं और नीले आकाश का मंजर बार-बार देखने को नसीब होता है। सारे माहौल में फैली आध्यत्मिक शांति को महसूस किया जा सकता है।

लेह में जाड़ा दस्तक दे चुका है। तापमान 11 डिग्री चल रहा है। स्वेटर या जैकेट पहनना पड़ता है। गुरुद्वारे के बाहर गर्मा-गर्म चाय सूरज पासवान दे रहे थे। वे झारखंड से हैं और गुरुद्वारे में काम करते हैं। अब लेह वाले हो चुके हैं।

गुरुद्वारा के दर्शन करने के बाद जैसे ही आगे बढ़े तो जगह-जगह मोटर साइकिलों पर सवार नौजवान लड़के-लड़कियां मिलते रहे। कुछ सड़क के एक तरफ खड़े होकर फोटो ले रहे थे। ये दिल्ली, मनाली और कुछ मुंबई तक से मोटर साइकिलों पर ही इधर आ जाते हैं। इनके जज्बे और हिम्मत को सलाम। इतने कठिन रास्तों को ये मोटर साइकिलों में नाप देते हैं।


ये सब Pangong Lake तक जाते हैं। यह लेक 134 किमी लंबी है और लद्दाख़ से तिब्बत जाती है। इसका पानी बिलकुल नीला दिखाई देता है। आसमान को छूते पहाड़ों के नीचे यह झील शांत बहती है। इसे निहारने का सुख अप्रतिम है। यह लेह से 235 किलोमीटर दूर है।

लेह में बुद्ध धर्म का प्रभाव साफ तौर पर दिखाई देता है। लेह शहर में आपको कई बुद्ध विहार मिलेंगे। दो-तीन मस्जिदें भी हैं। मंदिर एक भी नहीं है। हमें गणपति बप्पा मोरया मंदिर लेह-करगिल रोड पर ही मिला। यह उस जगह बना हुआ है जहां पर सेना की एक यूनिट तैनात है। यह सैनिकों का मंदिर है। इससे बीस-पच्चीस किलोमीटर तक कोई आबादी नहीं है।

लेह में मुंबई, दिल्ली और गुजरात के सैकड़ों टुरिस्ट रोज आ रहे हैं। गनीमत है कि कोई भी बिना मास्क के नहीं होता। कई स्थानीय लोगों से बात करने पर लगा कि ये लद्दाख को केन्द्र शासित प्रदेश बनाए जाने से खुश हैं। इनका मानना है कि जम्मू-कश्मीर का हिस्सा रहते हुए इन्हें कोई पूछने वाला नहीं था। अब यहां का टुरिज्म सेक्टर लंबी छलांगे लगा रहा है। इससे स्थानीय नौजवानों को रोजगार मिल रहा है और होटल तथा बाजार गुलजार रहने लगे हैं।


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