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मोदी: द लास्ट मुगल ऑफ RSS-भाजपा

Shiv Kumar Mishra
28 Oct 2023 9:26 AM GMT
मोदी: द लास्ट मुगल ऑफ RSS-भाजपा
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Modi The Last Mughal of RSS BJP

उत्तर प्रदेश में नारायण दत्त तिवारी ने कांग्रेस की जड़ें ऐसी खोद डालीं कि उनके बाद 1989 से अब तक वहां कांग्रेस का कोई नेता मुख्यमंत्री नहीं बन पाया। ठीक इसी तरह राहुल गांधी की 'भारत जोड़ो यात्रा' के बाद भारतीय राजनीति में आये जबरदस्त परिवर्तन से बैकफुट पर चले गए नरेंद्र मोदी यह समझ गये हैं कि देश की जनता उनके नाम पर भाजपा को वोट देने वाली नहीं है, इसलिए वे चाहते हैं कि उनके बाद भाजपा का कोई नेता प्रधानमंत्री न बने।

ताकि मोदी को जादुई जिताऊ नेता के तौर पर RSS-भाजपा में लंबे समय तक याद किया जाए। मोदी के पराभव की शुरुआत हिमाचल से हुई जहां विधानसभा चुनाव में एक बागी नेता ने अपना नाम वापस लेने को मोदी के साथ हुई फोन-वार्ता को ठुकराते हुए सार्वजनिक कर दिया।

राज्य में भाजपा 224 सीटों में से 48 सीटें खोकर केवल 65 सीटों पर सिमट गई। उसके बाद कर्नाटक में कांग्रेस द्वारा बजरंग दल और सिमी को प्रतिबंधित करने की चुनावी घोषणा को मोदी ने 'बजरंग बली' बनाने की जो धूर्तता दिखाई, उस पर राज्य की जनता ने जरा भी ध्यान नहीं दिया।

नतीजतन पोस्टरों से पहली बार मोदी को हटाकर पार्टी अध्यक्ष जेपी. नड्डा की तस्वीर लगाने के बावजूद भी भाजपा को सत्ता गंवानी पड़ी। उत्तर प्रदेश में घोसी विधानसभा उपचुनाव में पूरा केंद्रीय मंत्रिमंडल, चार राज्यों के मुख्यमंत्री व पार्टी अध्यक्ष तथा दर्जनों विधायक-सांसदों की अक्षौहिणी सेना उतारने के बाद भी मोदी की ऐतिहासिक हार हुई।

पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में मिजोरम के मुख्यमंत्री ने तो मोदी को हाथ ही जोड़ लिये हैं कि महाराज चुनाव प्रचार के लिए आप हमारे राज्य में तशरीफ़ न लायें। आने की जबरदस्ती कर भी दोगे तो मैं आपके साथ एक ही मंच पर साथ बैठ नहीं सकूंगा।

उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री आदित्यनाथ और राजनाथ सिंह के साथ मोदी ने लंबे समय से 36 का आंकड़ा बना रखा है तो मोदी को प्रधानमंत्री बनाने के लिए ये दोनों क्षत्रप मेहनत क्यों करेंगे। ओडिशा में नवीन पटनायक अपनी अलग ढपली बजाते हैं। वे एनडीए का हिस्सा जरूर हैं लेकिन प्रदेश की जनता में उनका ही सिक्का चलता है। मोदी वहां गौण हैं।

राजस्थान और मध्यप्रदेश में टिकटों के बंटवारे पर जैसा घमासान तथा जबरदस्त विरोध सड़कों पर दिखाई दे रहा है, उसकी उम्मीद मोदी को स्वप्न में भी नहीं रही होगी। छत्तीसगढ़ और तेलंगाना में भाजपा का सूपड़ा साफ होने के आसार दिखाई दे रहे हैं।

बंगाल में ममता बनर्जी के आगे मोदी की एक नहीं चलती। दक्षिणी राज्यों में तो भाजपा वैसे ही कमजोर है। केरल जैसे धुर दक्षिणी राज्य में भाजपा का खाता ही नहीं खुलता, भले ही केरल में आरएसएस हजारों शाखा लगा ले।

किसान आंदोलनकारियों से माफी मांगने के बाद एमएसपी का वादा नहीं निभाने और फिर महिला पहलवानों के आंदोलन की अमानवीय ढंग से घनघोर उपेक्षा से न सिर्फ जाटलैंड बल्कि पूरे देश में मोदी के खिलाफ वातावरण बना है। रही-सही कसर मणिपुर के साथ शत्रुओं जैसे व्यवहार ने पूरी कर दी है।

नूंह और गुरुग्राम में दंगा भड़काने की कोशिश नाकाम रही। ताज़ा मामला इजरायल-फिलिस्तीन युद्ध का है जिसमें दशकों पुरानी विदेश नीति को लात मारकर खुद को वैश्विक नेता साबित करने की मूर्खता का परिचय देने के पांचवें दिन विदेश मंत्री से फिलिस्तीन के समर्थन में न केवल बयान दिलवा दिया बल्कि हवाई जहाज में भरकर वहां दवाइयां व अन्य सामग्री भेजी। जिसका धक्का मोदी को लगा है।

सरकारी कर्मचारी पुरानी पेंशन को लेकर आक्रोशित हैं ही। व्यापारी वर्ग जीएसटी तथा बड़े-बड़े कॉरपोरेट घरानों द्वारा सारा बिजनेस हड़प लेने से दुखी है। निम्न आय वर्ग महंगाई से जूझ रहा है। युवा बेरोजगारी से परेशान है। महिलाओं को विधाई संस्थाओं में आरक्षण के प्रयास को राहुल गांधी ने ओबीसी का मुद्दा उठाकर पलीता लगा दिया तो वह भी बूमरैंग कर गया है। रही-सही कसर जातिगत जनगणना ने पूरी कर दी है।

जिस तरह विपक्षियों और असहमतों के विरुद्ध सीबीआइ, ईडी और इनकम टैक्स के छापे डलवाये जा रहे हैं, पत्रकारों और लेखकों को फर्जी मुकदमे लगाकर जेल भेजा जा रहा है, उससे मोदी का तानाशाही रवैया खुलकर सामने आ गया है।

गोदी मीडिया ने अपनी विश्वसनीयता खो दी है जिससे लोगों ने उसपर ध्यान देना बंद कर दिया है। सोशल मीडिया पर भी अब मोदी के कटखने अंधभक्तों की संख्या में भी तेजी से गिरावट आई है। अब लोगों ने काट खाने के लिए दौड़ पड़ने के बजाय मुद्दों और तथ्यों को पढ़ना और सोचना सीख लिया है।

मोदी ने जिस तरह गुजरात में पार्टी के सभी बड़े नेताओं को ठिकाने लगा दिया, उसी तरह प्रधानमंत्री बनने के बाद प्रोपेगंडा-तंत्र के जरिए 'मोदी का कोई विकल्प नहीं' की अवधारणा को मजबूत कर एक-एक कर सभी बड़े नेताओं को किनारे करते हुए अपना एकाधिकार कायम कर लिया।

यहां तक कि आरएसएस के प्रियपात्र नितिन गडकरी और राजनाथ सिंह भी को भी साइडलाइन कर दिया है। इससे पार्टी व आरएसएस के भीतर मोदी के प्रति अंदर से वितृष्णा का भाव भर गया है। उधर इंडिया गठबंधन ताकतवर बनता जा रहा है। उसमें फूट डालने की कोशिशें विफल रही हैं क्योंकि वे समझते हैं कि यदि मोदी 2024 में फिर सत्ता पर काबिज हो गए तो देश का संविधान खत्म कर आरएसएस-भाजपा का गुंडाराज क़ायम हो जाएगा। 'इंडिया' के सामने 'अभी नहीं तो कभी नहीं' की स्थिति है।

ऐसे विभिन्न कारणों से मोदी और आरएसएस को स्पष्ट दिखाई दे रहा है कि चुनावी बाजार में मोदी एक खोटा सिक्का है जो अब प्रचलन से बाहर हो गया है। स्थिति को विपरीत देखकर अब मोदी भी नारायणदत्त तिवारी के नक्शे कदम पर चलते हुए 'मैं नहीं तो कोई नहीं' की चाल चल रहे हैं।

Shiv Kumar Mishra

Shiv Kumar Mishra

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