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#नरेंद्र_मोदी_किसान_विरोधी ट्रेंड कर गया, किसानों के लिए बड़ी खुश खबरी मोदी की हार!
किसानों के मार्च ही हजारों तस्वीरों में से यह तस्वीर ऐतिहासिक है। ऐसा नहीं है कि पहली बार किसी किसान से पुलिस की भिड़ंत हुई हो। हर रोज होती रहती है, लेकिन पहली बार है कि देश का किसान ऐसे लट्ठ लेकर पुलिस से भिड़ पड़ा है। एक किसान के आगे पुलिस के कितने जवान लाचार या इसे कहते हैं, 56 इंची सीना या फिर किसानों को पीटती मोदी की पुलिस, इसमें से कोई भी सुर्खियां लगाकर किसान हितैषी, मानवता रक्षक बना जा सकता है।
फेसबुक, ट्विटर पर सब बन भी रहे हैं। किसी ने सचमुच इस तस्वीर को ध्यान से देखने, समझने की कोशिश की है क्या? बूढ़े किसान के सामने खड़ा एक भी पुलिस वाला क्या किसान को लठियाने की मुद्दा में दिख रहा है? जवाब है- कतई नहीं। दोनों को एक दूसरे की लाचारी पता है, लेकिन किसानों को इस तरह से जवानों के सामने खड़ा करने वाले नेताओं (राजनीतिक दलों और किसानों के) को क्या ये बात पता नहीं है? अच्छे से पता है। क्या सचमुच ये किसान और किसानों की हितैषी भाषा बोलने वाले, किसानों के हितैषी हैं। इस देश का किसान बड़ी मुश्किल से जूझ रहा है और, सच यही है कि अगर देश में किसी को सबसे ज्यादा मदद की जरूरत है तो वो किसान ही है, लेकिन इसी सिक्के का दूसरा पहलू यह भी है कि किसान को लगातार लाचार बनाने का काम ऐसे किसान आन्दोलनों ने किया है।
भारतीय किसान यूनियन का काम ही सरकारों से किसानों पर लाठीबाजी करके अपनी हैसियत बढ़वा लेना है। वरना सोचिए कि जिस स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट लागू करने की सबसे बड़ी मांग लेकर किसान दिल्ली तक आए, उन्हीं स्वामीनाथन की बात क्यों नहीं सुन पा रहे? एमएस स्वामीनाथन ने साफ कहा कि देश में पहले बार किसी सरकार ने किसानों को बेहतर जीवन देने के लिए जरूरी कदम चरणबद्ध तरीके से किए हैं। दिक्कत ये है कि किसानों को कर्ज लेकर माफ कराने वाले समूह के तौर पर चिन्हित कराने वालों की दुकानदारी खत्म होती दिख रही है। निश्चित तौर पर सरकार के तय न्यूनतम समर्थन मूल्य पर किसानों की उपज की खरीद बड़ी समस्या है और इसके लिए सरकारों पर दबाव बनाने का काम भारतीय किसान यूनियन और दूसरे किसान संगठन मजबूती से कर सकते हैं। अगर किसानों को फिलहाल घोषित न्यूनतम समर्थन मूल्य ही मिल जाए तो किसी किसान को आत्महत्या करने की जरूरत नहीं होगी। हर किसान के बच्चे को पढ़ाने की फीस आसानी से भरी जा सकेगी। हर किसान आगे खेती में प्रयोग के लिए तैयार हो सकेगा, लेकिन इस सबसे किसान यूनियन के नेताओं को नेतागीरी छोड़कर ज्यादा मेहनत करनी पड़ेगी, किसानों को बेहतर उपज तैयार करने से लेकर बेहतर कीमत हासिल करने के तरीके बताने पड़ेंगे और इसके लिए खुद भी बहुत तैयारी करनी पड़ेगी। इसमें किसान खुशहाल हो जाएगा और किसानों के बीच यूनियन के नेताओं की प्रतिष्ठा भी बढ़ेगी, लेकिन इससे सरकार पर दबाव कहां बन पाएगा।
इससे किसान आन्दोलन के अगुवा के तौर पर समझौता करने वाली तस्वीर भी नहीं दिखेगी। इससे सरकार को घुटनों पर ला देने वाली खबर भी नहीं बनेगी। इसीलिए किसान नेता लम्बे और दुरुह रास्ते को छोड़कर सीधे किसान को अपना खेत-खलिहान ठीक करने के बजाय सरकार से लड़ाने में जुटा है। स्वामीनाथन की रिपोर्ट के आधार पर मांग करते किसान को नेता ये भी नहीं बता रहा है कि स्वामीनाथन क्या कर रहे हैं। कर्जमाफी मांग रहा है, जो किसानों को सीधे समझ में आता है। किसान को उपज की न्यूनतम कीमत लेकर अधिकतम कर्जमाफी के लिए तैयार कर रहा है। ऐसे किसान उपज की न्यूनतम कीमत लेते, कब न्यूनतम उपज उगाने लगेंगे, ज्यादा दूर की बात नहीं दिखती। सरकारों के लिए भी कर्जमाफी आसान रास्ता है। वोट दिलाता है। दुर्भाग्य ये कि नरेंद्र मोदी ने भी कर्जमाफी की जमीन पर वोटबैंक की फसल तैयार करने की कोशिश की। इस सबके बीच किसानों के लिए अच्छी खबर ये है कि #नरेंद्र_मोदी_किसान_विरोधी ट्रेंड कर गया है। मेरी नजर में किसानों का कर्ज माफ करने वाली हर सरकार, किसान विरोधी है।
लेखक वरिष्ठ पत्रकार और विश्लेषक है